ओम् शान्ति।
रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं, अब यहाँ तुम शरीर के साथ बैठे हो।
जानते हो मृत्युलोक में यह अन्तिम शरीर है। फिर क्या होगा? फिर बाप के साथ
शान्तिधाम में इकट्ठे होंगे। यह शरीर नहीं होगा फिर स्वर्ग में आयेंगे तो नम्बरवार
पुरूषार्थ अनुसार, सब तो इकट्ठे नहीं आयेंगे। यह राजधानी स्थापन हो रही है। जैसे
बाप शान्ति का, सुख का सागर है, बच्चों को भी ऐसा शान्ति का, सुख का सागर बना रहे
हैं फिर जाकर शान्तिधाम में विराजमान होना है। तो बाप को, घर को और सुखधाम को याद
करना है। यहाँ तुम जितना-जितना इस अवस्था में बैठते हो, तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के
पाप भस्म होते हैं, इसको कहा जाता है योगाग्नि। संन्यासी कोई सर्वशक्तिमान् से योग
नहीं लगाते। वह तो रहने के स्थान ब्रह्म से योग लगाते हैं। वह हैं तत्व योगी,
ब्रह्म अथवा तत्व से योग लगाने वाले। यहाँ जीव आत्माओं का खेल होता है, वहाँ स्वीट
होम में सिर्फ आत्मायें रहती हैं। उस स्वीट होम में जाने के लिए सारी दुनिया
पुरूषार्थ करती है। संन्यासी भी कहते हैं हम ब्रह्म में लीन हो जायें। ऐसा नहीं कहते
हम ब्रह्म में जाकर निवास करें। यह तो तुम बच्चे अब समझ गये हो। भक्ति मार्ग में
कितनी खिट-खिट सुनते रहते हैं। यहाँ तो बाप आकर सिर्फ दो अक्षर ही समझाते हैं। जैसे
मंत्र जपते हैं ना। कोई गुरू को याद करते हैं, कोई किसको याद करते हैं। स्टूडेण्ट
टीचर को याद करते हैं। अभी तुम बच्चों को सिर्फ बाप और घर ही याद है। बाप से तुम
वर्सा लेते हो शान्तिधाम और सुखधाम का। वही दिल में याद रहता है। मुख से कुछ बोलना
नहीं है। बुद्धि से तुम जानते हो शान्तिधाम के बाद है सुखधाम। हम पहले मुक्ति में
फिर जीवनमुक्ति में जायेंगे। मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता एक ही बाप है। बाप बच्चों को
बार-बार समझाते हैं - टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए। जन्म-जन्मान्तर के पापों का बोझा
सिर पर है। इस जन्म के पापों आदि की तो स्मृति रहती है। सतयुग में यह बातें होती नहीं।
यहाँ बच्चे जानते हैं जन्म-जन्मान्तर के पापों का बोझा है। नम्बरवन है काम विकार का
विकर्म, जो जन्म-जन्मान्तर करते आये हो और बाप की निंदा भी बहुत की है। बाप जो सर्व
को सद्गति देते, उनकी कितनी निंदा की है। यह सब ध्यान में रखना है। अब जितना हो सके
बाप को याद करने का पुरू-षार्थ करना है। वास्तव में वाह सतगुरू कहा जाता है, गुरू
भी नहीं। वाह गुरू का कोई अर्थ नहीं। वाह सतगुरू! मुक्ति-जीवनमुक्ति वही देते हैं
ना। वह गुरू तो अनेक हैं। यह है एक सतगुरू। तुम लोगों ने गुरू तो बहुत किये हैं। हर
जन्म में 2-4 गुरू करते हैं। गुरू करके फिर और-और स्थान पर जाते हैं। शायद यहाँ से
अच्छा रास्ता मिल जाए, ट्रायल करते रहते हैं और और गुरूओं से। परन्तु मिलता कुछ भी
नहीं। अभी तुम बच्चे जानते हो यहाँ तो रहना नहीं है। सबको जाना है शान्ति-धाम। बाप
तुम्हारे निमंत्रण पर आये हैं। तुमको याद दिलाते हैं, तुमने हमको कहा है कि आओ, हमको
पतित से पावन बनाओ। पावन शान्तिधाम भी है, सुखधाम भी है। बुलाते हैं हमको घर ले जाओ।
घर सबको याद है। आत्मा फट से कहेगी हमारा निवास स्थान परमधाम है। परमपिता परमात्मा
भी परमधाम में रहते हैं। हम भी परमधाम में रहते हैं।
अब बाप ने समझाया है तुम पर ब्रहस्पति की दशा बैठी हुई है। यह है बेहद की बात। बेहद
की दशा सब पर बैठी है। चक्र फिरता रहता है। हम ही सुख से दु:ख में, फिर दु:ख से सुख
में आते हैं। शान्तिधाम, सुखधाम फिर यह दु:खधाम। यह भी अब तुम बच्चे समझते हो,
मनुष्यों की तो बुद्धि में नहीं बैठता। अभी बाप जीते जी मरना सिखला रहे हैं। परवाने
शमा पर फिदा हो जाते हैं। कोई उस पर आशिक हो जल जाते हैं, फिदा हो जाते हैं, कोई
फिर फेरी पहन चले जाते हैं। यह भी बैटरी है ना, सबका बुद्धियोग उस एक से है।
निराकार बाप से जैसे बैटरी लगी हुई है। इस आत्मा के तो बहुत नज़दीक है तो बहुत सहज
होता है। बाप को याद करने से तुम्हारी बैटरी चार्ज होती जाती है। तुम बच्चों को थोड़ी
मुश्किलात होती है, इनको सहज है। फिर भी इनको पुरूषार्थ तो करना पड़ता है, जितना
तुम बच्चों को करना पड़ता है। यह जितना नज़दीक हैं, उतना फिर बोझा है बहुत। गायन भी
है जिनके माथे मामला...... इनके ऊपर तो बहुत मामले हैं ना। बाप तो है ही सम्पूर्ण,
इनको सम्पूर्ण बनना है, इनको सबकी देख-रेख बहुत करनी पड़ती है। भल दोनों इकट्ठे हैं
तो भी ख्याल तो होता है ना। बच्चियों पर कितनी मार पड़ती है तो जैसे कि दु:ख होता
है। कर्मातीत अवस्था तो पिछाड़ी में होगी, तब तक ख्याल होता है। बच्चियों की चिट्ठी
नहीं आती है तो भी ख्याल होता है - बीमार तो नहीं है? सर्विस का समाचार आने से बाप
जरूर उनको याद करेंगे। बाबा इस तन से सर्विस करते हैं। कभी मुरली थोड़ी चलती है,
यूँ तो भल 2-4 रोज़ मुरली न भी आये, तुम्हारे पास प्वाइंट्स रहती हैं। तुमको भी अपनी
डायरी देखनी चाहिए। बैज़ पर भी तुम अच्छा समझा सकते हो। जब आदि सनातन देवी-देवता
धर्म था तो और कोई धर्म नहीं था। झाड़ भी जरूर साथ में होना चाहिए। वैराइटी धर्मों
का राज़ समझाना होता है। पहले-पहले एक अद्वेत धर्म था। विश्व में शान्ति, सुख,
पवित्रता थी। बाप से ही वर्सा मिलता है क्योंकि बाप शान्ति का सागर, सुख का सागर है
ना। आगे तुम भी कुछ नहीं जानते थे। अब जैसे बाप की बुद्धि में यह सब है, ऐसे तुम भी
बनते हो। सुख का, शान्ति का सागर तुम भी बनते हो। अपना पोतामेल देखना है - किस बात
में कमी है? मैं बरोबर प्रेम का सागर हूँ, कोई ऐसी चलन तो नहीं है जिससे कोई नाराज़
होता हो? अपने ऊपर नज़र रखनी है। ऐसे नहीं समझना है कि बाबा आशीर्वाद करेंगे तो तुम
यह बन जायेंगे। नहीं। बाप कहते हैं मैं ड्रामा अनुसार अपने समय पर आया हूँ। मेरा यह
कल्प-कल्प का प्रोग्राम है। यह ज्ञान दूसरा कोई दे न सके। सत बाप, सत टीचर, सतगुरू
एक ही है। यह भी पक्का निश्चय है तो तुम्हारी विजय है। इतने अनेक धर्म जो हैं, उन
सबका विनाश होना ही है। जब सतयुगी सूर्यवंशी घराना था तो और दूसरा कोई घराना नहीं
था फिर भी ऐसे ही होगा। सारा दिन ऐसे-ऐसे अपने से बातें करते रहो। ज्ञान की
प्वाइंट्स अन्दर टपकनी चाहिए, खुशी रहनी चाहिए। बाप में नॉलेज है, वह तुमको अब मिल
रही है। उसको धारण करना है, इसमें टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए। रात को भी टाइम मिलता
है। देखते हैं आत्मा आरगन्स से काम करते-करते थक गई है तो फिर सो जाती है। बाप
तुम्हारी भक्ति मार्ग की सब थक दूर कर अथक बना देते हैं। जैसे रात को आत्मा थक जाती
है तो शरीर से अलग हो जाती है, जिसको नींद कहा जाता है। सोता कौन है? आत्मा के साथ
कर्मेन्द्रियाँ भी सो जाती हैं। तो रात को सोते समय भी बाप को याद कर ऐसे-ऐसे
ख्यालात करते सो जाना चाहिए। हो सकता है पिछाड़ी में रात-दिन तुम नींद को जीतने वाले
बन जाओ। फिर याद में ही रहेंगे, बहुत खुशी रहेगी। 84 के चक्र को फिराते रहेंगे।
उबासी वा पिनकी (झुटका) आदि नहीं आयेगी। हे नींद को जीतने वाले बच्चों, कमाई में कभी
भी नींद नहीं करना है। जब ज्ञान में मस्त हो जायेंगे तब तुम्हारी अवस्था वह रहेगी।
यहाँ तुम थोड़ा टाइम बैठते हो तो कभी उबासी या झुटका नहीं आना चाहिए। और और तरफ
अटेन्शन जाने से फिर उबासी आयेगी।
तुम बच्चों को यह भी ध्यान में रखना है कि हमको औरों को भी आप समान बनाना है। प्रजा
तो चाहिए ना। नहीं तो राजा कैसे बनेंगे। धन दिये धन ना खुटे..... दूसरे को समझायेंगे,
दान देते रहेंगे तो कभी खुटेगा नहीं। नहीं तो जमा नहीं होगा। मनुष्य तो बहुत मनहूस
भी होते हैं। धन पर बहुत लड़ाई-झगड़े हो पड़ते हैं। यहाँ बाप कहते हैं तुमको हम यह
अविनाशी धन देता हूँ तो तुम फिर औरों को देते रहो। इसमें मनहूस नहीं बनना है। दान
नहीं देते हैं तो गोया है नहीं। यह कमाई ऐसी है, इसमें लड़ाई आदि की बात नहीं, इसको
कहा जाता है गुप्त। तुम हो इनकागनीटो वारियर्स। 5 विकारों के साथ तुम लड़ते हो।
तुमको अननोन वारियर्स कहा जाता है। प्यादों का लश्कर बहुत होता है। यहाँ भी ऐसे
हैं, प्रजा बहुत है, बाकी कैप्टन, मेज़र आदि सब हैं। तुम सेना हो, उसमें भी
नम्बरवार हैं। बाबा समझेंगे यह कमान्डर है, यह मेज़र है। महारथी, घोड़ेसवार हैं ना।
यह तो बाप जानते हैं तीन प्रकार के समझाने वाले हैं। तुम व्यापार करते हो अविनाशी
ज्ञान रत्नों का। जैसे वह भी व्यापार सिखलाते हैं, गुरू चला जाता है तो उसके पिछाड़ी
चेले चलाते हैं ना। वह है स्थूल, यह फिर है सूक्ष्म। अनेक प्रकार के धर्म हैं। हर
एक की अपनी-अपनी मत है। तुम भी जाकर उन्हों का सुन सकते हो - वह लोग क्या सिखलाते
हैं, क्या-क्या सुनाते हैं। बाप तो तुम्हें 84 के चक्र की कहानी समझाते हैं। तुम
बच्चों को ही बाप आकर वर्सा देते हैं, यह ड्रामा में नूँध है। अभी कलियुग अन्त तक
यह आत्मायें आती रहती हैं, वृद्धि को पाती रहती हैं। जब तक बाप यहाँ है, संख्या
बढ़ती ही जाती है फिर इतने सब रहेंगे कहाँ, खायेंगे कहाँ? सब हिसाब रखना पड़ता है
ना। वहाँ तो इतने मनुष्य होते नहीं। खाने वाले ही थोड़े, सबकी अपनी खेती रहती है।
अनाज रखकर क्या करेंगे। वहाँ बरसात आदि के लिए यज्ञ आदि नहीं करने पड़ते, जैसे यहाँ
करते हैं। अभी बाप ने यज्ञ रचा है। सारी पुरानी सृष्टि यज्ञ में स्वाहा होनी है। यह
है बेहद का यज्ञ। वह लोग हद के यज्ञ रचते हैं बरसात के लिए। बरसात पड़ी तो खुशी हो
गई, यज्ञ की सफलता हुई। नहीं होने से अनाज नहीं होगा, अकाल पड़ जाता। भल यज्ञ आदि
रचते हैं परन्तु बारिश को नहीं पड़ना है तो क्या कर सकते हैं। आ़फतें तो सब आनी
हैं। मूसलधार बरसात, अर्थ क्वेक यह सब होना है। ड्रामा के चक्र को तो तुम बच्चों ने
समझा है। यह चक्र भी बहुत बड़ा होना चाहिए। एडवरटाइज़ बड़े-बड़े स्थानों में लगी
हुई होगी तो बड़े-बड़े लोग पढ़ेंगे। समझ जायेंगे कि अब बरोबर पुरूषोत्तम संगमयुग
है। कलियुग में बहुत मनुष्य हैं। सतयुग में थोड़े मनुष्य होते हैं। तो बाकी सब इतने
जरूर खत्म हो जायेंगे। शिव जयन्ती माना ही स्वर्ग जयन्ती, लक्ष्मी-नारायण जयन्ती।
बात तो बड़ी सहज है। शिव जयन्ती मनाई जाती है। वह है बेहद का बाप, उसने ही स्वर्ग
की स्थापना की थी। कल की बात है, तुम स्वर्गवासी थे। यह तो बहुत सहज बात है। बच्चों
को अच्छी रीति समझकर और सम-झाना है। खुशी में भी रहना है। अभी हम सदैव के लिए
बीमारियों से छूट कर 100 परसेन्ट हेल्दी, वेल्दी बनते हैं। बाकी थोड़ा समय है। भल
कितने भी दु:ख, मौत आदि होंगे, तुम उस समय बहुत खुशी में होंगे। तुम जानते हो मौत
तो होना ही है। कल्प-कल्प का यह खेल है। फिकरात कोई नहीं होती। जो पक्के हैं वह कभी
हाय-हाय नहीं करेंगे। मनुष्य कोई का ऑपरे-शन आदि देखते हैं तो चक्कर आ जाता है। अभी
तो कितना बड़ा मौत होगा। तुम बच्चे समझते हो यह सब तो होना ही है। गायन भी है मिरूआ
मौत मलू का शिकार.... इस पुरानी दुनिया में तो बहुत दु:ख उठाया है, अब नई दुनिया
में जाना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप से अविनाशी ज्ञान धन लेकर दूसरों को दान करना है। ज्ञान दान करने
में मनहूस नहीं बनना है। ज्ञान की प्वाइंट्स अन्दर टपकती रहें। राजा बनने के लिए
प्रजा जरूर बनानी है।
2) अपना पोतामेल देखना है - (क) मैं बाप समान प्रेम का सागर बना हूँ?
(ख) कभी किसी को नाराज़ तो नहीं करता हूँ? (ग) अपनी चलन पर पूरी नज़र है?