01-11-2024        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - इस समय निराकार बाप साकार में आकर तुम्हारा श्रृंगार करते हैं, अकेला नहीं''

प्रश्नः-
तुम बच्चे याद की यात्रा में क्यों बैठते हो?

उत्तर:-
1. क्योंकि तुम जानते हो इस याद से ही हमें बहुत बड़ी आयु मिलती है, हम निरोगी बनते हैं। 2. याद करने से हमारे पाप कटते हैं। हम सच्चा सोना बन जाते हैं। आत्मा से रजो-तमो की खाद निकल जाती है, वह कंचन बन जाती है। 3. याद से ही तुम पावन दुनिया के मालिक बन जायेंगे। 4. तुम्हारा श्रृंगार होगा। 5. तुम बहुत धनवान बन जायेंगे। यह याद ही तुम्हें पद्मापद्म भाग्यशाली बनाती है।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) स्वयं को संगमयुग निवासी समझकर चलना है। पुराने सम्बन्धों को देखते हुए भी नहीं देखना है। बुद्धि में रहे हम अकेले आये थे, अकेले जाना है।

2) आत्मा और शरीर दोनों को कंचन (पवित्र) बनाने के लिए ज्ञान के तीसरे नेत्र से देखने का अभ्यास करना है। क्रिमिनल दृष्टि खत्म करनी है। ज्ञान और योग से अपना श्रृंगार करना है।

वरदान:-
मनमनाभव हो अलौकिक विधि से मनोरंजन मनाने वाले बाप समान भव

संगमयुग पर यादगार मनाना अर्थात् बाप समान बनना। यह संगमयुग के सुहेज हैं। खूब मनाओ लेकिन बाप से मिलन मनाते हुए मनाओ। सिर्फ मनोरंजन के रूप में नहीं लेकिन मन्मनाभव हो मनोरंजन मनाओ। अलौकिक विधि से अलौकिकता का मनोरंजन अविनाशी हो जाता है। संगमयुगी दीपमाला की विधि - पुराना खाता खत्म करना, हर संकल्प, हर घड़ी नया अर्थात् अलौकिक हो। पुराने संकल्प, संस्कार-स्वभाव, चाल-चलन यह रावण का कर्जा है इसे एक दृढ़ संकल्प से समाप्त करो।

स्लोगन:-
बातों को देखने के बजाए स्वयं को और बाप को देखो।