02-04-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - इस पुरानी
पतित दुनिया से तुम्हारा बेहद का वैराग्य चाहिए क्योंकि तुम्हें पावन बनना है,
तुम्हारी चढ़ती कला से सबका भला होता है''
प्रश्नः-
कहा जाता है,
आत्मा अपना ही शत्रु, अपना ही मित्र है, सच्ची मित्रता क्या है?
उत्तर:-
एक बाप की
श्रीमत पर सदा चलते रहना - यही सच्ची मित्रता है। सच्ची मित्रता है एक बाप को याद
कर पावन बनना और बाप से पूरा वर्सा लेना। यह मित्रता करने की युक्ति बाप ही बतलाते
हैं। संगमयुग पर ही आत्मा अपना मित्र बनती है।
गीत:-
तूने रात
गँवाई.......
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) गायन वा पूजन योग्य बनने के लिए पक्का वैष्णव बनना है। खान-पान की
शुद्धि के साथ-साथ पवित्र रहना है। इस वैल्युबुल जीवन में सर्विस कर बहुतों का जीवन
श्रेष्ठ बनाना है।
2) बाप के साथ ऐसा योग रखना है जो आत्मा की लाइट बढ़ती जाए। कोई भी विकर्म कर
लाइट कम नहीं करना है। अपने साथ मित्रता करनी है।
वरदान:-
स्व-स्थिति की
सीट पर स्थित रह परिस्थियों पर विजय प्राप्त करने वाले मास्टर रचता भव
कोई भी परिस्थिति, प्रकृति
द्वारा आती है इसलिए परिस्थिति रचना है और स्व-स्थिति वाला रचयिता है। मास्टर रचता
वा मास्टर सर्वशक्तिवान कभी हार खा नहीं सकते। असम्भव है। अगर कोई अपनी सीट छोड़ते
हैं तो हार होती है। सीट छोड़ना अर्थात् शक्तिहीन बनना। सीट के आधार पर शक्तियाँ
स्वत: आती हैं। जो सीट से नीचे आ जाते उन्हें माया की धूल लग जाती है। बापदादा के
लाडले, मरजीवा जन्मधारी ब्राह्मण कभी देह अभिमान की मिट्टी में खेल नहीं सकते।
स्लोगन:-
दृढ़ता
कड़े संस्कारों को भी मोम की तरह पिघला (खत्म कर) देती है।
अव्यक्त इशारे -
“कम्बाइण्ड रूप की स्मृति से सदा विजयी बनो''
जैसे ज्ञान स्वरूप
हो ऐसे स्नेह स्वरूप बनो, ज्ञान और स्नेह दोनों कम्बाइन्ड हो क्योंकि ज्ञान बीज है,
पानी स्नेह है। अगर बीज को पानी नहीं मिलेगा तो फल नहीं देगा। ज्ञान के साथ दिल का
स्नेह है तो प्राप्ति का फल मिलेगा।