02-07-2024        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - तुम यहाँ याद में रहकर पाप दग्ध करने के लिए आये हो इसलिए बुद्धियोग निष्फल न जाए, इस बात का पूरा ध्यान रखना है''

प्रश्नः-
कौन-सा सूक्ष्म विकार भी अन्त में मुसीबत खड़ी कर देता है?

उत्तर:-
अगर सूक्ष्म में भी हबच (लालच) का विकार है, कोई चीज़ हबच के कारण इकट्ठी करके अपने पास जमा करके रख दी तो वही अन्त में मुसीबत के रूप में याद आती है इसलिए बाबा कहते - बच्चे, अपने पास कुछ भी न रखो। तुम्हें सब संकल्पों को भी समेटकर बाप की याद में रहने की टेव (आदत) डालनी है इसलिए देही-अभिमानी बनने का अभ्यास करो।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप की याद में बैठते समय ज़रा भी बुद्धि इधर-उधर नहीं भटकनी चाहिए। सदा कमाई जमा होती रहे। याद ऐसी हो जो सन्नाटा हो जाए।

2) शरीर को तन्दुरूस्त रखने के लिये घूमने फिरने जाते हो तो आपस में झरमुई-झगमुई (परचिंतन) नहीं करना है। जबान को शान्त में रख बाप को याद करने की रेस करनी है। भोजन भी बाप की याद में खाना है।

वरदान:-
निश्चयबुद्धि बन कमजोर संकल्पों की जाल को समाप्त करने वाले सफलता सम्पन्न भव

अभी तक मैजारिटी बच्चे कमजोर संकल्पों को स्वयं ही इमर्ज करते हैं - सोचते हैं पता नहीं होगा या नहीं होगा, क्या होगा..यह कमजोर संकल्प ही दीवार बन जाते हैं और सफलता उस दीवार के अन्दर छिप जाती है। माया कमजोर संकल्पों की जाल बिछा देती है, उसी जाल में फंस जाते हैं इसलिए मैं निश्चयबुद्धि विजयी हूँ, सफलता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है - इस स्मृति से कमजोर संकल्पों को समाप्त करो।

स्लोगन:-
तीसरा, ज्वालामुखी नेत्र खुला रहे तो माया शक्तिहीन बन जायेगी।