02-12-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हारा
वायदा है कि जब आप आयेंगे तो हम वारी जायेंगे, अब बाप आये हैं - तुम्हें वायदा याद
दिलाने''
प्रश्नः-
किस मुख्य
विशेषता के कारण पूज्य सिर्फ देवताओं को ही कह सकते हैं?
उत्तर:-
देवताओं की ही
विशेषता है जो कभी किसी को याद नहीं करते। न बाप को याद करते, न किसी के चित्रों को
याद करते, इसलिए उन्हें पूज्य कहेंगे। वहाँ सुख ही सुख रहता है इसलिए किसी को याद
करने की दरकार नहीं। अभी तुम एक बाप की याद से ऐसे पूज्य, पावन बने हो जो फिर याद
करने की दरकार ही नहीं रहती है।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) स्वयं को श्रेष्ठ बनाने के लिए बाप की जो श्रीमत मिलती है, उस पर चलना
है, दैवीगुण धारण करने हैं। खान-पान, चलन सब रॉयल रखना है।
2) एक-दो को याद नहीं करना है, लेकिन रिगार्ड जरूर देना है। पावन बनने का
पुरुषार्थ करना और कराना है।
वरदान:-
नीरस वातावरण
में खुशी की झलक का अनुभव कराने वाले एवरहैप्पी भव
एवरहैपी अर्थात् सदा खुश
रहने का वरदान जिन बच्चों को प्राप्त है वह दु:ख की लहर उत्पन्न करने वाले वातावरण
में, नीरस वातावरण में, अप्राप्ति का अनुभव कराने वाले वातावरण में सदा खुश रहेंगे
और अपनी खुशी की झलक से दुख और उदासी के वातावरण को ऐसे परिवर्तन करेंगे जैसे सूर्य
अंधकार को परिवर्तन कर देता है। अंधकार के बीच रोशनी करना, अशान्ति के अन्दर शान्ति
लाना, नीरस वातावरण में खुशी की झलक लाना इसको कहा जाता है एवरहैप्पी। वर्तमान समय
इसी सेवा की आवश्यकता है।
स्लोगन:-
अशरीरी
वह है जिसे शरीर की कोई भी आकर्षण अपनी तरफ आकर्षित न करे।
अव्यक्त इशारे -
अब सम्पन्न वा कर्मातीत बनने की धुन लगाओ
कर्मातीत का अर्थ
यह नहीं है कि कर्म से अतीत हो जाओ। कर्म से न्यारे नहीं, कर्म के बन्धन में फँसने
से न्यारे - इसको कहते हैं कर्मातीत। कर्मयोग की स्थिति कर्मातीत स्थिति का अनुभव
कराती है। यह कर्मयोगी स्थिति अति प्यारी और न्यारी स्थिति है, इससे कोई कितना भी
बड़ा कार्य मेहनत का हो लेकिन ऐसे लगेगा जैसे काम नहीं कर रहे हैं लेकिन खेल कर रहे
हैं।