04-03-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - जिन्होंने
शुरू से भक्ति की है, 84 जन्म लिए हैं, वह तुम्हारे ज्ञान को बड़ी रूचि से सुनेंगे,
इशारे से समझ जायेंगे''
प्रश्नः-
देवी-देवता
घराने के नजदीक वाली आत्मा है या दूर वाली, उसकी परख क्या होगी?
उत्तर:-
जो तुम्हारे
देवता घराने की आत्मायें होंगी, उन्हें ज्ञान की सब बातें सुनते ही जंच जायेंगी, वह
मूझेंगे नहीं। जितना बहुत भक्ति की होगी उतना जास्ती सुनने की कोशिश करेंगे। तो
बच्चों को नब्ज देखकर सेवा करनी चाहिए।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस ड्रामा को यथार्थ रीति समझ माया के बंधनों से मुक्त होना है। स्वयं
को अकालमूर्त आत्मा समझ बाप को याद कर पावन बनना है।
2) सच्चा-सच्चा पैगम्बर और मैसेन्जर बन सबको शान्तिधाम, सुखधाम का रास्ता बताना
है। इस कल्याणकारी संगमयुग पर सभी आत्माओं का कल्याण करना है।
वरदान:-
बाप और सेवा
की स्मृति से एकरस स्थिति का अनुभव करने वाले सर्व आकर्षणमुक्त भव
जैसे सर्वेन्ट को सदा सेवा
और मास्टर याद रहता है। ऐसे वर्ल्ड सर्वेन्ट, सच्चे सेवाधारी बच्चों को भी बाप और
सेवा के सिवाए कुछ भी याद नहीं रहता, इससे ही एकरस स्थिति में रहने का अनुभव होता
है। उन्हें एक बाप के रस के सिवाए सब रस नीरस लगते हैं। एक बाप के रस का अनुभव होने
के कारण कहाँ भी आकर्षण नहीं जा सकती, यह एकरस स्थिति का तीव्र पुरूषार्थ ही सर्व
आकर्षणों से मुक्त बना देता है। यही श्रेष्ठ मंजिल है।
स्लोगन:-
नाज़ुक
परिस्थितियों के पेपर में पास होना है तो अपनी नेचर को शक्तिशाली बनाओ।
अव्यक्त इशारे -
सत्यता और सभ्यता रूपी क्लचर को अपनाओ
जब भी कोई असत्य
बात देखते हो, सुनते हो तो असत्य वायुमण्डल नहीं फैलाओ। कई कहते हैं यह पाप कर्म है
ना, पाप कर्म देखा नहीं जाता लेकिन वायुमण्डल में असत्यता की बातें फैलाना, यह भी
तो पाप है। लौकिक परिवार में भी अगर कोई ऐसी बात देखी वा सुनी जाती है तो उसे फैलाया
नहीं जाता। कान में सुना और दिल में छिपाया। यदि कोई व्यर्थ बातों का फैलाव करता है
तो यह छोटे-छोटे पाप उड़ती कला के अनुभव को समाप्त कर देते हैं, इसलिए इस कर्मो की
गहन गति को समझकर यथार्थ रूप में सत्यता की शक्ति धारण करो।