04-06-2024        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - अब इस छी-छी गंदी दुनिया को आग लगनी है इसलिए शरीर सहित जिसे तुम मेरा-मेरा कहते हो - इसे भूल जाना है, इससे दिल नहीं लगानी है''

प्रश्नः-
बाप तुम्हें इस दु:खधाम से ऩफरत क्यों दिलाते हैं?

उत्तर:-
क्योंकि तुम्हें शान्तिधाम-सुखधाम जाना है। इस गंदी दुनिया में अब रहना ही नहीं है। तुम जानते हो आत्मा शरीर से अलग होकर घर जायेगी, इसलिए इस शरीर को क्या देखना। किसी के नाम-रूप तरफ भी बुद्धि न जाये। गन्दे ख्यालात भी आते हैं तो पद भ्रष्ट हो जायेगा।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अन्तकाल में एक बाप के सिवाए दूसरा कोई याद न आये उसके लिए इस दुनिया में किसी से भी दिल नहीं लगानी है। छी-छी शरीरों से प्यार नहीं करना है। कलियुगी बन्धन तोड़ देने हैं।

2) विशाल बुद्धि बन निडर बनना है। पुण्य आत्मा बनने के लिए कोई भी पाप अब नहीं करना है। पेट के लिए झूठ नहीं बोलना है। चावल मुट्ठी सफल कर सच्ची-सच्ची कमाई जमा करनी है, अपने ऊपर रहम करना है।

वरदान:-
परमात्म लगन से स्वयं को वा विश्व को निर्विघ्न बनाने वाले तपस्वीमूर्त भव

एक परमात्म लगन में रहना ही तपस्या है। इस तपस्या का बल ही स्वयं को और विश्व को सदा के लिए निर्विघ्न बना सकता है। निर्विघ्न रहना और निर्विघ्न बनाना ही आपकी सच्ची सेवा है, जो अनेक प्रकार के विघ्नों से सर्व आत्माओं को मुक्त कर देती है। ऐसे सेवाधारी बच्चे तपस्या के आधार पर बाप से जीवनमुक्ति का वरदान लेकर औरों को दिलाने के निमित्त बन जाते हैं।

स्लोगन:-
बिखरे हुए स्नेह को समेट कर एक बाप से स्नेह रखो तो मेहनत से छूट जायेंगे।