04-11-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - अभी तुम सत्य बाप द्वारा सत्य देवता बन रहे हो, इसलिए सतयुग में सतसंग करने की जरूरत नहीं''

प्रश्नः-
सतयुग में देवताओं से कोई भी विकर्म नहीं हो सकता है, क्यों?

उत्तर:-
क्योंकि उन्हें सत्य बाप का वरदान मिला हुआ है। विकर्म तब होता है जब रावण का श्राप मिलने लगता है। सतयुग-त्रेता में है ही सद्गति, उस समय दुर्गति का नाम नहीं। विकार ही नहीं जो विकर्म हो। द्वापर-कलियुग में सबकी दुर्गति हो जाती इसलिए विकर्म होते रहते हैं। यह भी समझने की बातें हैं।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) कर्म, अकर्म और विकर्म की गुह्य गति को बुद्धि में रख अब कोई विकर्म नहीं करने हैं, ज्ञान और योग की धारणा करके दूसरों को सुनाना है।

2) सत्य बाप की सत्य नॉलेज देकर मनुष्यों को देवता बनाने की सेवा करनी है। विकारों के दलदल से सबको निकालना है।

वरदान:-
अलौकिक नशे की अनुभूति द्वारा निश्चय का प्रमाण देने वाले सदा विजयी भव

अलौकिक रूहानी नशा निश्चय का दर्पण है। निश्चय का प्रमाण है नशा और नशे का प्रमाण है खुशी। जो सदा खुशी और नशे में रहते हैं उनके सामने माया की कोई भी चाल चल नहीं सकती। बेफिक्र बादशाह की बादशाही के अन्दर माया आ नहीं सकती। अलौकिक नशा सहज ही पुराने संसार वा पुराने संस्कार भुला देता है इसलिए सदा आत्मिक स्वरूप के नशे में, अलौकिक जीवन के नशे में, फरिश्ते पन के नशे में या भविष्य के नशे में रहो तो विजयी बन जायेंगे।

स्लोगन:-
मधुरता का गुण ही ब्राह्मण जीवन की महानता है, इसलिए मधुर बनो और मधुर बनाओ।

अव्यक्त इशारे - अशरीरी व विदेही स्थिति का अभ्यास बढ़ाओ

जैसे विदेही बापदादा को देह का आधार लेना पड़ता है, बच्चों को विदेही बनाने के लिए। ऐसे आप सभी जीवन में रहते, देह में रहते, विदेही आत्मा-स्थिति में स्थित हो इस देह द्वारा करावनहार बन करके कर्म कराओ। यह देह करनहार है, आप देही करावनहार हो, इसी स्थिति को “विदेही स्थिति'' कहते हैं। इसी को ही फॉलो फादर कहा जाता है। बाप को फॉलो करने की स्थिति है सदा अशरीरी भव, विदेही भव, निराकारी भव!