04-12-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - तुम्हें अभी बाप द्वारा दिव्य दृष्टि मिली है, उस दिव्य दृष्टि से ही तुम आत्मा और परमात्मा को देख सकते हो''

प्रश्नः-
ड्रामा के किस राज़ को समझने वाले कौन-सी राय किसी को भी नहीं देंगे?

उत्तर:-
जो समझते हैं कि ड्रामा में जो कुछ पास्ट हो गया वह फिर से एक्युरेट रिपीट होगा, वह कभी किसी को भक्ति छोड़ने की राय नहीं देंगे। जब उनकी बुद्धि में ज्ञान अच्छी रीति बैठ जायेगा, समझेंगे हम आत्मा हैं, हमें बेहद के बाप से वर्सा लेना है। जब बेहद के बाप की पहचान हो जायेगी तो हद की बातें स्वत: खत्म हो जायेंगी।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) आंखों को सिविल बनाने की मेहनत करनी है। बुद्धि में सदा रहे हम प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे भाई-बहन हैं, क्रिमिनल दृष्टि रख नहीं सकते।

2) शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते बुद्धि का योग एक बाप से लगाना है, हद की सब बातें छोड़ बेहद के बाप को याद करना है। बेहद का संन्यासी बनना है।

वरदान:-
बाबा शब्द की स्मृति से कारण को निवारण में परिवर्तन करने वाले सदा अचल अडोल भव

कोई भी परिस्थिति जो भल हलचल वाली हो लेकिन बाबा कहा और अचल बनें। जब परिस्थितियों के चिंतन में चले जाते हो तो मुश्किल का अनुभव होता है। अगर कारण के बजाए निवारण में चले जाओ तो कारण ही निवारण बन जाए क्योंकि मास्टर सर्वशक्तिमान् ब्राह्मणों के आगे परिस्थितियां चींटी समान भी नहीं। सिर्फ क्या हुआ, क्यों हुआ यह सोचने के बजाए, जो हुआ उसमें कल्याण भरा हुआ है, सेवा समाई हुई है.. भल रूप सरकमस्टांश का हो लेकिन समाई सेवा है - इस रूप से देखेंगे तो सदा अचल अडोल रहेंगे।

स्लोगन:-
एक बाप के प्रभाव में रहने वाले किसी भी आत्मा के प्रभाव में आ नहीं सकते।

अव्यक्त इशारे - अब सम्पन्न वा कर्मातीत बनने की धुन लगाओ

कर्मातीत स्थिति को प्राप्त करने के लिए सदा साक्षी बन कार्य करो। साक्षी अर्थात् सदा न्यारी और प्यारी स्थिति में रह कर्म करने वाली अलौकिक आत्मा हूँ, अलौकिक अनुभूति करने वाली, अलौकिक जीवन, श्रेष्ठ जीवन वाली आत्मा हूँ - यह नशा रहे। कर्म करते यही अभ्यास बढ़ाते रहो तो कर्मातीत स्थिति को प्राप्त कर लेंगे।