05-02-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - इस शरीर रूपी कपड़े को यहाँ ही छोड़ना है, इसलिए इससे ममत्व मिटा दो, कोई भी मित्र-सम्बन्धी याद न आये''

प्रश्नः-
जिन बच्चों में योगबल है, उनकी निशानी क्या होगी?

उत्तर:-
उन्हें किसी भी बात में थोड़ा भी धक्का नहीं आयेगा, कहाँ भी लगाव नहीं होगा। समझो आज किसी ने शरीर छोड़ा तो दु:ख नहीं हो सकता, क्योंकि जानते हैं इनका ड्रामा में इतना ही पार्ट था। आत्मा एक शरीर छोड़ जाए दूसरा शरीर लेगी।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपनी चाल चलन बहुत रॉयल रखनी है। बहुत फज़ीलत से बातचीत करनी है। नम्रता का गुण धारण करना है।

2) इन आंखों से जो कुछ दिखाई देता है - यह सब कब्रदाखिल होना है इसलिए इसको देखते भी नहीं देखना है। एक शिवबाबा को ही याद करना है। किसी देहधारी को नहीं।

वरदान:-
मास्टर ज्ञान सागर बन गुडियों का खेल समाप्त करने वाले स्मृति सो समर्थ स्वरूप भव

जैसे भक्ति मार्ग में मूर्ति बनाकर पूजा आदि करते हैं, फिर उन्हें डुबो देते हैं तो आप उसे गुड़ियों की पूजा कहते हो। ऐसे आपके सामने भी जब कोई निर्जीव, असार बातें ईर्ष्या, अनुमान, आवेश आदि की आती हैं और आप उनका विस्तार कर अनुभव करते या कराते हो कि यही सत्य हैं, तो यह भी जैसे उनमें प्राण भर देते हो। फिर उन्हें ज्ञान सागर बाप की याद से, बीती सो बीती कर, स्वउन्नति की लहरों में डुबोते भी हो लेकिन इसमें भी टाइम तो वेस्ट जाता है ना, इसलिए पहले से ही मास्टर ज्ञान सागर बन स्मृति सो समर्थी भव के वरदान से इन गुड़ियों के खेल को समाप्त करो।

स्लोगन:-
जो समय पर सहयोगी बनते हैं उन्हें एक का पदमगुणा फल मिल जाता है।

अव्यक्त-इशारे: एकान्तप्रिय बनो एकता और एकाग्रता को अपनाओ

जो भी राजनेतायें वा धर्मनेतायें हैं उन्हों को “पवित्रता और एकता'' का अनुभव कराओ। इसी की कमी के कारण दोनों सत्तायें कमजोर हैं। धर्मसत्ता को धर्मसत्ता हीन बनाने का विशेष तरीका है-पवित्रता को सिद्ध करना और राज्य सता वालों के आगे एकता को सिद्ध करना।