07-06-2024        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - तुम आपस में रूहानी भाई-भाई हो, तुम्हारा एक-दो से अति प्यार होना चाहिए, तुम प्रेम से भरपूर गंगा बनो, कभी भी लड़ना-झगड़ना नहीं''

प्रश्नः-
रूहानी बाप को कौन-से बच्चे बहुत-बहुत प्यारे लगते हैं?

उत्तर:-
1) जो श्रीमत पर सारे विश्व का कल्याण कर रहे हैं, 2) जो फूल बने हैं, कभी भी किसी को कांटा नहीं लगाते, आपस में बहुत-बहुत प्यार से रहते हैं, कभी रूसते नहीं - ऐसे बच्चे बाप को बहुत-बहुत प्यारे लगते हैं। जो देह-अभिमान में आकर आपस में लड़ते हैं, लून-पानी होते हैं, वह बाप की इज्ज़त गंवाते हैं। वह बाप की निंदा कराने वाले निंदक हैं।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) प्रेम से भरपूर गंगा बनना है। सबके प्रति प्रेम की दृष्टि रखनी है। कभी भी मुख से उल्टे बोल नहीं बोलने हैं।

2) किसी भी चीज़ में लोभ नहीं रखना है। स्वदर्शन चक्रधारी होकर रहना है। अभ्यास करना है कि अन्त समय कोई भी चीज़ याद न आये।

वरदान:-
पुरानी देह वा दुनिया की सर्व आकर्षणों से सहज और सदा दूर रहने वाले राजऋषि भव

राजऋषि अर्थात् एक तरफ सर्व प्राप्ति के अधिकार का नशा और दूसरे तरफ बेहद के वैराग्य का अलौकिक नशा। वर्तमान समय इन दोनों अभ्यास को बढ़ाते चलो। वैराग्य माना किनारा नहीं लेकिन सर्व प्राप्ति होते भी हद की आकर्षण मन बुद्धि को आकर्षण में नहीं लाये। संकल्प मात्र भी अधीनता न हो इसको कहते हैं राजऋषि अर्थात् बेहद के वैरागी। यह पुरानी देह वा देह की पुरानी दुनिया, व्यक्त भाव, वैभवों का भाव इन सब आकर्षणों से सदा और सहज दूर रहने वाले।

स्लोगन:-
साइंस के साधनों को यूज़ करो लेकिन अपने जीवन का आधार नहीं बनाओ।

मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य

देखो, मनुष्य कहते हैं कौरवों और पाण्डवों की आपस में कुरुक्षेत्र में लड़ाई लगी है और फिर दिखलाते हैं पाण्डवों का साथी डायरेक्शन देने वाला श्रीकृष्ण था, तो जिस तरफ स्वयं प्रकृतिपति है उसकी तो विजय जरूर होगी। देखो, सभी बातें मिला दी हैं, अभी पहले तो इस बात को समझो कि प्रकृतिपति तो परम आत्मा है, श्रीकृष्ण तो सतयुग का पहला देवता है।पाण्डवों का सारथी तो परमात्मा था। अब परमात्मा हम बच्चों को कभी हिंसा नहीं सिखला सकता है, न पाण्डवों ने हिंसक लड़ाई कर स्वराज्य लिया। यह दुनिया कर्मक्षेत्र है, जिसमें मनुष्य जैसा-जैसा कर्म कर बीज़ बोता है वैसा अच्छा वा बुरा फल भोगता है। जिस कर्मक्षेत्र पर पाण्डव अर्थात् भारत माता शक्ति अवतार भी मौजूद हैं। परमात्मा भारत खण्ड में ही आते हैं इसलिए भारत खण्ड को अविनाशी कहा जाता है। परमात्मा का अवतरण खास भारत खण्ड में हुआ है क्योंकि अधर्म की वृद्धि भी भारतखण्ड से हुई है। वहाँ ही परमात्मा ने योगबल द्वारा कौरव राज्य खत्म कर पाण्डवों का राज्य स्थापन किया। तो परमात्मा ने एक आदि सनातन धर्म स्थापन किया परन्तु भारतवासी अपने महान पवित्र धर्म और श्रेष्ठ कर्म को भूल अपने को हिन्दू कहलाते हैं। बिचारे अपने धर्म को न जान औरों के धर्म में जुट गये हैं। तो यह बेहद का ज्ञान, बेहद का मालिक खुद ही बताता है। यह तो अपने स्वधर्म को भूल हद में फंस गये हैं जिसको कहा जाता है अति धर्म ग्लानि क्योंकि यह सब प्रकृति के धर्म हैं परन्तु पहले चाहिए स्वधर्म, तो हर एक का स्वधर्म है कि मैं आत्मा शान्त-स्वरूप हूँ फिर अपनी प्रकृति का धर्म है देवता धर्म, यह 33 करोड़ भारतवासी देवतायें हैं। तभी तो परमात्मा कहता है अनेक देह के धर्मों का त्याग करो, सर्व धर्मानि परित्यज्... इस हद के धर्मों में इतना आंदोलन हो गया है। तो अब इन हद के धर्मों से निकल बेहद में जाना है। उस बेहद के बाप सर्वशक्तिवान परमात्मा के साथ योग लगाना है, तो सर्वशक्तिवान प्रकृतिपति परमात्मा है, न कि श्रीकृष्ण। तो कल्प पहले भी जिस तरफ साक्षात् प्रकृतिपति परमात्मा थे उनकी विजय गायी हुई है। अच्छा। ओम् शान्ति।