08-04-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - सर्वोत्तम
युग यह संगम है, इसमें ही तुम आत्मायें परमात्मा बाप से मिलती हो, यही है
सच्चा-सच्चा कुम्भ''
प्रश्नः-
कौन-सा पाठ
बाप ही पढ़ाते हैं, कोई मनुष्य नहीं पढ़ा सकते?
उत्तर:-
देही-अभिमानी
बनने का पाठ एक बाप ही पढ़ाते हैं, यह पाठ कोई देहधारी नहीं पढ़ा सकता। पहले-पहले
तुमको आत्मा का ज्ञान मिलता है। तुम जानते हो हम आत्मायें परमधाम से एक्टर बन पार्ट
बजाने आये, अभी नाटक पूरा होता है, यह ड्रामा बना बनाया है, इसे कोई ने बनाया नहीं
इसलिए इसका आदि और अन्त भी नहीं है।
गीत:-
जाग सजनियां
जाग..........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) पुरूषोत्तम बनने के लिए कनिष्ट बनाने वाली जो ईविल बातें हैं वह नहीं
सुननी हैं। एक बाप से ही अव्यभिचारी ज्ञान सुनना है।
2) नष्टोमोहा बनने के लिए देही-अभिमानी बनने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करना है।
बुद्धि में रहे - यह पुरानी दु:ख देने वाली दुनिया है, इसे भूलना है। इससे बेहद का
वैराग्य हो।
वरदान:-
संगमयुग की
सर्व प्राप्तियों को स्मृति में रख चढ़ती कला का अनुभव करने वाले श्रेष्ठ प्रारब्धी
भव
परमात्म मिलन वा परमात्म
ज्ञान की विशेषता है - अविनाशी प्राप्तियां होना। ऐसे नहीं कि संगमयुग पुरूषार्थी
जीवन है और सतयुगी प्रारब्धी जीवन है। संगमयुग की विशेषता है एक कदम उठाओ और हजार
कदम प्रारब्ध में पाओ। तो सिर्फ पुरूषार्थी नहीं लेकिन श्रेष्ठ प्रारब्धी हैं - इस
स्वरूप को सदा सामने रखो। प्रारब्ध को देखकर सहज ही चढ़ती कला का अनुभव करेंगे।
“पाना था सो पा लिया'' - यह गीत गाओ तो घुटके और झुटके खाने से बच जायेंगे।
स्लोगन:-
ब्राह्मणों का श्वांस हिम्मत है, जिससे कठिन से कठिन कार्य भी आसान हो जाता है।
अव्यक्त इशारे -
“कम्बाइण्ड रूप की स्मृति से सदा विजयी बनो''
जैसे ब्रह्मा बाप
को देखा कि बाप के साथ स्वयं को सदा कम्बाइण्ड रूप में अनुभव किया और कराया। इस
कम्बाइण्ड स्वरूप को कोई अलग कर नहीं सकता। ऐसे सपूत बच्चे सदा अपने को बाप के साथ
कम्बाइण्ड अनुभव करते हैं। कोई ताकत नहीं जो उन्हें अलग कर सके।