08-12-2024     प्रात:मुरली  ओम् शान्ति 13.02.2003 "बापदादा"    मधुबन


“वर्तमान समय अपना रहमदिल और दाता स्वरूप प्रत्यक्ष करो''


वरदान:-
कर्मयोगी बन हर संकल्प, बोल और कर्म श्रेष्ठ बनाने वाले निरन्तर योगी भव

कर्मयोगी आत्मा का हर कर्म योगयुक्त, युक्तियुक्त होगा। अगर कोई भी कर्म युक्तियुक्त नहीं होता तो समझो योगयुक्त नहीं हैं। अगर साधारण वा व्यर्थ कर्म हो जाता है तो निरन्तर योगी नहीं कहेंगे। कर्मयोगी अर्थात् हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर बोल सदा श्रेष्ठ हो। श्रेष्ठ कर्म की निशानी है - स्वयं भी सन्तुष्ट और दूसरे भी सन्तुष्ट। ऐसी आत्मा ही निरन्तर योगी बनती है।

स्लोगन:-
स्वयं प्रिय, लोक प्रिय और प्रभू प्रिय आत्मा ही वरदानी मूर्त है।