09-05-2024        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - कड़े ते कड़ी बीमारी है किसी के नाम रूप में फँसना, अन्तर्मुखी बन इस बीमारी की जांच करो और इससे मुक्त बनो''

प्रश्नः-
नाम-रूप की बीमारी को समाप्त करने की युक्ति क्या है? इससे नुकसान कौन-कौन से होते हैं?

उत्तर:-
नाम-रूप की बीमारी को समाप्त करने के लिए एक बाप से सच्चा-सच्चा लव रखो। याद के समय बुद्धि भटकती है, देहधारी में जाती है तो बाप को सच-सच सुनाओ। सच बताने से बाप क्षमा कर देंगे। सर्जन से बीमारी को छिपाओ नहीं। बाबा को सुनाने से खबरदार हो जायेंगे। बुद्धि किसी के नाम रूप में लटकी हुई है तो बाप से बुद्धि जुट नहीं सकती। वह सर्विस के बजाए डिससर्विस करते हैं। बाप की निंदा कराते हैं। ऐसे निंदक बहुत कड़ी सज़ा के भागी बनते हैं।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपनी वृत्ति को बहुत शुद्ध, पवित्र बनाना है। कोई भी बेकायदे उल्टा काम नहीं करना है। बहुत-बहुत खबरदार रहना है। बुद्धि कहाँ पर भी लटकानी नहीं है।

2) सच्चा प्यार एक बाप में रखना है, बाकी सबसे अनासक्त, नाम मात्र प्यार हो। आत्म-अभिमानी स्टेज ऐसी बनानी है जो शरीर में भी लगाव न रहे।

वरदान:-
स्वराज्य के संस्कारों द्वारा भविष्य राज्य अधिकार प्राप्त करने वाली तकदीरवान आत्मा भव

बहुतकाल के राज्य अधिकारी बनने के संस्कार बहुतकाल भविष्य राज्य अधिकारी बनायेंगे। अगर बार-बार वशीभूत होते हो, अधिकारी बनने के संस्कार नहीं हैं तो राज्य अधिकारियों के राज्य में रहेंगे, राज्य भाग्य प्राप्त नहीं होगा। तो नॉलेज के दर्पण में अपने तकदीर की सूरत को देखो। बहुत समय के अभ्यास द्वारा अपने विशेष सहयोगी कर्मचारी वा राज्य कारोबारी साथियों को अपने अधिकार से चलाओ। राजा बनो तब कहेंगे तकदीरवान आत्मा।

स्लोगन:-
सकाश देने की सेवा करने के लिए बेहद की वैराग्य वृत्ति को इमर्ज करो।