10-02-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हें बाप
द्वारा जो अद्वैत मत मिल रही है, उस मत पर चलकर कलियुगी मनुष्यों को सतयुगी देवता
बनाने का श्रेष्ठ कर्तव्य करना है''
प्रश्नः-
सभी
मनुष्य-मात्र दु:खी क्यों बने हैं, उसका मूल कारण क्या है?
उत्तर:-
रावण ने सभी
को श्रापित कर दिया है, इसलिए सभी दु:खी बने हैं। बाप वर्सा देता, रावण श्राप देता
- यह भी दुनिया नहीं जानती। बाप ने वर्सा दिया तब तो भारतवासी इतने सुखी स्वर्ग के
मालिक बनें, पूज्य बनें। श्रापित होने से पुजारी बन जाते हैं।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विजय माला में आने के लिए बाप का मददगार बन सर्विस करनी है। एक माशूक
के साथ सच्ची प्रीत रखनी है। एक को ही याद करना है।
2) अपनी एक्यूरेट एम ऑबजेक्ट को सामने रख पूरा पुरूषार्थ करना है। डबल अहिंसक बन
मनुष्य को देवता बनाने का श्रेष्ठ कर्तव्य करते रहना है।
वरदान:-
विजयीपन के नशे
द्वारा सदा हर्षित रहने वाले सर्व आकर्षणों से मुक्त भव
विजयी रत्नों का यादगार -
बाप के गले का हार आज तक पूजा जाता है। तो सदा यही नशा रहे कि हम बाबा के गले का
हार विजयी रत्न हैं, हम विश्व के मालिक के बालक हैं। हमें जो मिला है वह किसी को भी
मिल नहीं सकता - यह नशा और खुशी स्थाई रहे तो किसी भी प्रकार की आकर्षण से परे
रहेंगे। जो सदा विजयी हैं वो सदा हर्षित हैं। एक बाप की याद के ही आकर्षण में
आकर्षित हैं।
स्लोगन:-
एक के
अन्त में खो जाना अर्थात् एकान्तवासी बनना।
अव्यक्त-इशारे:
एकान्तप्रिय बनो एकता और एकाग्रता को अपनाओ
अभी सब मिलकर एक
दो की हिम्मत बढ़ाके यह संकल्प करो कि अब समय को समीप लाना ही है, आत्माओं को मुक्ति
दिलानी ही है। लेकिन यह तब होगा जब सोचने को स्मृति स्वरूप में लायेंगे। जहाँ एकता
और दृढ़ता है वहाँ असम्भव भी सम्भव हो जाता है।