10-07-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - देह-अभिमान
छोड़ देही-अभिमानी बनो, देही-अभिमानियों को ही ईश्वरीय सम्प्रदाय कहा जाता है''
प्रश्नः-
तुम बच्चे अभी
जो सतसंग करते हो यह दूसरे सतसंगों से निराला है, कैसे?
उत्तर:-
यही एक सतसंग
है जिसमें तुम आत्मा और परमात्मा का ज्ञान सुनते हो। यहाँ पढ़ाई होती है। एम
ऑब्जेक्ट भी सामने है। दूसरे सतसंगों में न पढ़ाई होती, न कोई एम आब्जेक्ट है।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) एक बाप की सुमत पर चलकर मनुष्य से देवता बनना है। इस सुहावने संगमयुग
पर स्वयं को पुरुषोत्तम पारसबुद्धि बनाना है।
2) 7 रोज़ की भट्ठी में बैठ पतित बुद्धि को पावन बुद्धि बनाना है। सत्य बाप से
सत्य नारायण की सच्ची कथा सुन नर से नारायण बनना है।
वरदान:-
हर खजाने को
बाप के डायरेक्शन प्रमाण कार्य में लगाने वाले ऑनेस्ट वा ईमानदार भव
ऑनेस्ट अर्थात् ईमानदार उसे
कहा जाता है जो बाप के प्राप्त खजानों को बाप के डायरेक्शन बिना किसी भी कार्य में
नहीं लगाये। अगर समय, वाणी, कर्म, श्वांस वा संकल्प परमत या संगदोष में व्यर्थ तरफ
गंवाते हो, स्वचिंतन के बजाए परचिंतन करते हो, स्वमान की बजाए किसी भी प्रकार के
अभिमान में आते हो, श्रीमत के बदले मनमत के आधार पर चलते हो तो ऑनेस्ट नहीं कहेंगे।
यह सब खजाने विश्व कल्याण के लिए मिले हैं, तो उसी में ही लगाना यही है ऑनेस्ट बनना।
स्लोगन:-
आपोजीशन माया से करनी है, दैवी परिवार से नहीं।
अव्यक्त इशारे -
संकल्पों की शक्ति जमा कर श्रेष्ठ सेवा के निमित्त बनो
सभी आत्मायें एक
ही बेहद का परिवार हैं, अपने परिवार की कोई भी आत्मा वरदान से वंचित न रह जाए - ऐसे
उमंग-उत्साह का श्रेष्ठ संकल्प दिल में सदा रहे। अपनी प्रवृत्तियों में ही बिजी नहीं
रहना, बेहद की स्टेज पर स्थित हो, बेहद की आत्माओं की सेवा का श्रेष्ठ संकल्प करो,
यही सफलता का सहज साधन है।