11-02-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हें
भगवान पढ़ाते हैं, तुम्हारे पास हैं ज्ञान रत्न, इन्हीं रत्नों का धंधा तुम्हें करना
है, तुम यहाँ ज्ञान सीखते हो, भक्ति नही''
प्रश्नः-
मनुष्य ड्रामा
की किस वन्डरफुल नूँध को भगवान की लीला समझ उसकी बड़ाई करते हैं?
उत्तर:-
जो जिसमें
भावना रखते, उन्हें उसका साक्षात्कार हो जाता है तो समझते हैं यह भगवान ने
साक्षात्कार कराया लेकिन होता तो सब ड्रामा अनुसार है। एक ओर भगवान की बड़ाई करते,
दूसरी ओर सर्वव्यापी कह ग्लानि कर देते हैं।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) गुप्त नशे में रहकर सर्विस करनी है। ऐसा कोई कर्म नहीं करना है जो
दिल खाती रहे। अपनी जांच करनी है कि हम कितना याद में रहते हैं?
2) सदा यही फिक्र रहे कि हम अच्छी रीति पढ़कर ऊंच पद पायें। कोई भी विकर्म करके,
झूठ बोलकर अपना नुकसान नहीं करना है।
वरदान:-
मनमनाभव के
महामन्त्र द्वारा सर्व दु:खों से पार रहने वाले सदा सुख स्वरूप भव
जब किसी भी प्रकार का दु:ख
आये तो मन्त्र ले लो जिससे दु:ख भाग जायेगा। स्वप्न में भी जरा भी दु:ख का अनुभव न
हो, तन बीमार हो जाए, धन नीचे ऊपर हो जाए, कुछ भी हो लेकिन दु:ख की लहर अन्दर नहीं
आनी चाहिए। जैसे सागर में लहरें आती हैं और चली जाती हैं लेकिन जिन्हें उन लहरों
में लहराना आता है वह उसमें सुख का अनुभव करते हैं, लहर को जम्प देकर ऐसे क्रास करते
हैं, जैसे खेल कर रहे हैं। तो सागर के बच्चे सुख स्वरूप हो, दु:ख की लहर भी न आये।
स्लोगन:-
हर
संकल्प में दृढ़ता की विशेषता को प्रैक्टिकल में लाओ तो प्रत्यक्षता हो जायेगी।
अव्यक्त इशारे:
एकान्तप्रिय बनो एकता और एकाग्रता को अपनाओ
स्व उन्नति में,
सेवा की उन्नति में एक ने कहा, दूसरे ने हाँ जी किया, ऐसे सदा एकता और दृढ़ता से
बढ़ते चलो। जैसे दादियों की एकता और दृढ़ता का संगठन पक्का है, ऐसे आदि सेवा के
रत्नों का संगठन पक्का हो, इसकी बहुत-बहुत आवश्यकता है।