12-09-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - तुम्हारी पढ़ाई का सारा मदार है योग पर, योग से ही आत्मा पवित्र बनती है, विकर्म विनाश होते हैं''

प्रश्नः-
कई बच्चे बाप का बनकर फिर हाथ छोड़ देते हैं, कारण क्या होता है?

उत्तर:-
बाप को पूरी रीति न पहचानने के कारण, पूरा निश्चयबुद्धि न होने के कारण 8-10 वर्ष के बाद भी बाप को फारकती दे देते हैं, हाथ छोड़ देते हैं। पद भ्रष्ट हो जाता है। 2- क्रिमिनल आई होने से माया की ग्रहचारी बैठ जाती है, अवस्था नीचे ऊपर होती रहती है तो भी पढ़ाई छूट जाती है।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस पुरुषोत्तम युग में स्वर्ग के देवी-देवता बनने की पढ़ाई पढ़कर स्वयं को लायक बनाना है। पुरुषार्थ में हार्टफेल (दिलशिकस्त) नहीं होना है।

2) इस बेहद के खेल में हर एक्टर का पार्ट और पोजीशन अलग-अलग है, जैसी जिसकी पोजीशन वैसा उसे मान मिलता है, यह सब राज़ समझ वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी का सिमरण कर स्वदर्शन चक्रधारी बनना है।

वरदान:-
बाप की हर श्रीमत का पालन करने वाले सच्चे स्नेही आशिक भव

जो बच्चे सदा एक बाप के स्नेह में लवलीन रहते हैं, उन्हें बाप का हर बोल प्यारा लगता है, क्वेश्चन समाप्त हो जाते हैं। ब्राह्मण जन्म का फाउन्डेशन स्नेह है। जो स्नेही आशिक आत्मायें हैं उन्हें बाप की श्रीमत पालन करने में मुश्किल का अनुभव नहीं होता है। स्नेह के कारण सदा यही उमंग रहता कि बाबा ने जो कहा है वह मेरे प्रति कहा है - मुझे करना है। स्नेही आत्मायें बड़ी दिल वाली होती हैं, इसलिए उनके लिए हर बड़ी बात भी छोटी हो जाती है।

स्लोगन:-
कोई भी बात को फील करना - यह भी फेल की निशानी है।

अव्यक्त इशारे - अब लगन की अग्नि को प्रज्वलित कर योग को ज्वाला रूप बनाओ

ज्वाला स्वरूप की स्थिति का अनुभव करने के लिए निरन्तर याद की ज्वाला प्रज्वलित रहे। इसकी सहज विधि है - सदा अपने को “सारथी'' और “साक्षी'' समझकर चलो। आत्मा इस रथ की सारथी है - यह स्मृति स्वत: ही इस रथ (देह) से वा किसी भी प्रकार के देहभान से न्यारा बना देती है। स्वयं को सारथी समझने से सर्व कर्मेन्द्रियाँ अपने कन्ट्रोल में रहती हैं। सूक्ष्म शक्तियां “मन-बुद्धि-संस्कार'' भी ऑर्डर प्रमाण रहते हैं।