12-12-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - सत बाप द्वारा संगम पर तुम्हें सत्य का वरदान मिलता है इसलिए तुम कभी भी झूठ नहीं बोल सकते हो''

प्रश्नः-
निर्विकारी बनने के लिए आप बच्चों को कौन सी मेहनत जरूर करनी है?

उत्तर:-
आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत जरूर करनी है। भृकुटी के बीच में आत्मा को ही देखने का अभ्यास करो। आत्मा होकर आत्मा से बात करो, आत्मा होकर सुनो। देह पर दृष्टि न जाए - यही मुख्य मेहनत है, इसी मेहनत में विघ्न पड़ते हैं। जितना हो सके यह अभ्यास करो - कि “मैं आत्मा हूँ, मैं आत्मा हूँ।''

गीत:-
ओम् नमो शिवाए........

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी भी बात में संशय बुद्धि बन पढ़ाई नहीं छोड़नी है। पहले तो पावन बनने के लिए एक बाप को याद करना है, दूसरी बातों में नहीं जाना है।

2) शरीर पर नज़र जाने से विघ्न आते हैं, इसलिए भृकुटी में देखना है। आत्मा समझ, आत्मा से बात करनी है। आत्म-अभिमानी बनना है। निडर बनकर सेवा करनी है।

वरदान:-
सदा बाप के अविनाशी और नि:स्वार्थ प्रेम में लवलीन रहने वाले मायाप्रूफ भव

जो बच्चे सदा बाप के प्यार में लवलीन रहते हैं उन्हें माया आकर्षित नहीं कर सकती। जैसे वाटरप्रूफ कपड़ा होता है तो पानी की एक बूंद भी नहीं टिकती। ऐसे जो लगन में लवलीन रहते हैं वह मायाप्रूफ बन जाते हैं। माया का कोई भी वार, वार नहीं कर सकता क्योंकि बाप का प्यार अविनाशी और नि:स्वार्थ है, इसके जो अनुभवी बन गये वह अल्पकाल के प्यार में फँस नहीं सकते। एक बाप दूसरा मैं, उसके बीच में तीसरा कोई आ ही नहीं सकता।

स्लोगन:-
न्यारे-प्यारे होकर कर्म करने वाला ही सेकण्ड में फुलस्टॉप लगा सकता है।

अव्यक्त इशारे - अब सम्पन्न वा कर्मातीत बनने की धुन लगाओ

कर्मातीत अर्थात् कर्म के वश होने वाला नहीं लेकिन मालिक बन, अथॉरिटी बन कर्मेन्द्रियों के सम्बन्ध में आये, विनाशी कामना से न्यारा हो कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराये। आत्मा मालिक को कर्म अपने अधीन न करे लेकिन अधिकारी बन कर्म कराता रहे। कराने वाला बन कर्म कराना - इसको कहेंगे कर्म के सम्बन्ध में आना। कर्मातीत आत्मा सम्बन्ध में आती है, बन्धन में नहीं।