13-03-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - पद का आधार
है पढ़ाई, जो पुराने भक्त होंगे वह अच्छा पढ़ेंगे और पद भी अच्छा पायेंगे''
प्रश्नः-
जो बाप की याद
में रहते हैं, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
याद में रहने
वालों में अच्छे गुण होंगे। वह पवित्र होते जायेंगे। रॉयल्टी आती जायेगी। आपस में
मीठा क्षीरखण्ड होकर रहेंगे, दूसरों को न देख स्वयं को देखेंगे। उनकी बुद्धि में
रहता - जो करेगा वह पायेगा।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सच्चा बाप सच्चा बनाने आये हैं इसलिए सच्चाई से चलना है। अपनी जांच
करनी है - हमारे में कोई आसुरी गुण तो नहीं हैं? हम जास्ती बात तो नहीं करते हैं?
बहुत मीठा बन शान्ति और प्यार से बात करनी है।
2) मुरली पर पूरा ध्यान देना है। रोज़ मुरली पढ़नी है। अपना और औरों का कल्याण
करना है। टीचर जो काम देते हैं वह करके दिखाना है।
वरदान:-
होली शब्द के
अर्थ को जीवन में लाकर पुरुषार्थ की स्पीड को तेज करने वाले तीव्र पुरुषार्थी भव
होली अर्थात् जो बात हो गई,
बीत गई उसको बिल्कुल खत्म कर देना। बीती को बीती कर आगे बढ़ना यही है होली मनाना।
बीती हुई बात ऐसे महसूस हो जैसे बहुत पुरानी कोई जन्म की बात है, जब ऐसी स्थिति हो
जाती है तब पुरुषार्थ की स्पीड तेज होती है। तो अपनी या दूसरों की बीती हुई बातों
को कभी चिन्तन में नहीं लाना, चित्त पर नहीं रखना और वर्णन तो कभी नहीं करना, तब ही
तीव्र पुरुषार्थी बन सकेंगे।
स्लोगन:-
स्नेह
ही सहज याद का साधन है इसलिए सदा स्नेही रहना और स्नेही बनाना।
मातेश्वरी जी के
अनमोल महावाक्य
“गुप्त बांधेली
गोपिकाओं का गायन है''
गीत:
बिन देखे प्यार करूँ,
घर बैठे याद करूँ...।
अब यह गीत कोई
बांधेली मस्त गोपी का गाया हुआ है, यह है कल्प-कल्प वाला विचित्र खेल। बिन देखे
प्यार करते हैं, दुनिया बिचारी क्या जाने, कल्प पहले वाला पार्ट हूबहू रिपीट हो रहा
है। भल उस गोपी ने घरबार नहीं छोड़ा है परन्तु याद में कर्मबन्धन चुक्तू कर रही है,
तो यह कितना खुशी में झूम-झूम कर मस्ती में गा रही है। तो वास्तव में घर छोड़ने की
बात नहीं है। घर बैठे बिन देखे उस सुख में रह सर्विस करनी है। कौन-सी सेवा करनी है?
पवित्र बन पवित्र बनाने की, तुमको तीसरा नेत्र अब मिला है। आदि से लेकर अन्त तक बीज़
और झाड़ का राज़ तुम्हारी नज़रों में है। तो बलिहारी इस जीवन की है, इस नॉलेज द्वारा
21 जन्मों के लिये सौभाग्य बना रहे हैं, इसमें अगर कुछ भी लोक-लाज़ विकारी कुल की
मर्यादा है तो वो सर्विस नहीं कर सकेंगे, यह है अपनी कमी। बहुतों को विचार आता है
कि यह ब्रह्माकुमारियाँ घर फिटाने आई हैं परन्तु इसमें घर फिटाने की बात नहीं है,
घर बैठे पवित्र रहना है और सर्विस करनी है, इसमें कोई कठिनाई नहीं है। पवित्र बनेंगे
तब पवित्र दुनिया में चलने के अधिकारी बनेंगे। बाकी जो नहीं चलने वाले हैं, वह तो
कल्प पहले वाली शत्रुता का पार्ट बजायेंगे, इसमें कोई का दोष नहीं है। जैसे हम
परमात्मा के कार्य को जानते हैं वैसे ड्रामा के अन्दर हर एक के पार्ट को जान चुके
हैं तो इसमें घृणा नहीं आ सकती। ऐसी तीव्र पुरुषार्थी गोपियाँ रेस कर विजयमाला में
भी आ सकती हैं। अच्छा। ओम् शान्ति।
अव्यक्त इशारे -
सत्यता और सभ्यता रूपी क्लचर को अपनाओ
जो भी ज्ञान की
गुह्य बातें हैं, उसको स्पष्ट करने की विधि आपके पास बहुत अच्छी है और स्पष्टीकरण
है। एक एक प्वाइंट को लॉजिकल स्पष्ट कर सकते हो। अपनी अथॉरिटी वाले हो। कोई मनोमय
वा कल्पना की बातें तो हैं नहीं। यथार्थ हैं। अनुभव है। अनुभव की अथॉर्टी, नॉलेज की
अथॉरिटी, सत्यता की अथॉरिटी... कितनी अथॉरिटीज़ हैं! तो अथॉरिटी और स्नेह - दोनों
को साथ-साथ कार्य में लगाओ।