13-04-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 31.12.2004 "बापदादा" मधुबन
“इस वर्ष के आरम्भ से
बेहद की वैराग्य वृत्ति इमर्ज करो, यही मुक्तिधाम के गेट की चाबी है''
वरदान:-
एकाग्रता के
अभ्यास द्वारा एकरस स्थिति बनाने वाले सर्व सिद्धि स्वरूप भव
जहाँ एकाग्रता है वहाँ
स्वत: एकरस स्थिति है। एकाग्रता से संकल्प, बोल और कर्म का व्यर्थ पन समाप्त हो जाता
है और समर्थ पन आ जाता है। एकाग्रता अर्थात् एक ही श्रेष्ठ संकल्प में स्थित रहना।
जिस एक बीज रूपी संकल्प में सारा वृक्ष रूपी विस्तार समाया हुआ है। एकाग्रता को
बढ़ाओ तो सर्व प्रकार की हलचल समाप्त हो जायेगी। सब संकल्प, बोल और कर्म सहज सिद्व
हो जायेंगे इसके लिए एकान्तवासी बनो।
स्लोगन:-
एक बार की हुई गलती को बार-बार सोचना अर्थात् दाग पर दाग लगाना इसलिए बीती को बिन्दी
लगाओ।
अव्यक्त इशारे -
“कम्बाइण्ड रूप की स्मृति से सदा विजयी बनो''
जैसे इस समय आत्मा और
शरीर कम्बाइण्ड है, ऐसे बाप और आप कम्बाइन्ड रहो। स़िर्फ यह याद रखो कि ‘मेरा बाबा'।
अपने मस्तक पर सदा साथ का तिलक लगाओ। जो सुहाग होता है, साथ होता है वह कभी भूलता
नहीं। तो साथी को सदा साथ रखो। अगर साथ रहेंगे तो साथ चलेंगे। साथ रहना है, साथ चलना
है, हर सेकेण्ड, हर संकल्प में साथ है ही।