14-04-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - सुख और दु:ख
के खेल को तुम ही जानते हो, आधाकल्प है सुख और आधाकल्प है दु:ख, बाप दु:ख हरने सुख
देने आते हैं''
प्रश्नः-
कई बच्चे किस
एक बात में अपनी दिल को खुश कर मिया मिट्ठू बनते हैं?
उत्तर:-
कई समझते हैं
हम सम्पूर्ण बन गये, हम कम्पलीट तैयार हो गये। ऐसे समझ अपने दिल को खुश कर लेते
हैं। यह भी मिया मिट्ठू बनना है। बाबा कहते - मीठे बच्चे अभी बहुत पुरूषार्थ करना
है। तुम पावन बन जायेंगे तो फिर दुनिया भी पावन चाहिए। राजधानी स्थापन होनी है, एक
तो जा नहीं सकता।
गीत:-
तुम्हीं हो
माता, तुम्हीं पिता हो....
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप में जो गुण हैं, वह स्वयं में भरने हैं। इम्तहान के पहले
पुरूषार्थ कर स्वयं को कम्पलीट पावन बनाना है, इसमें मिया मिट्ठू नहीं बनना है।
2) स्वदर्शन चक्रधारी बनना और बनाना है। बाप और चक्र को याद करना है। बेहद बाप
द्वारा बेहद की बातें सुनकर अपनी बुद्धि बेहद में रखनी है। हद में नहीं आना है।
वरदान:-
स्व स्थिति
द्वारा परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने वाले संगमयुगी विजयी रत्न भव
परिस्थितियों पर विजय
प्राप्त करने का साधन है स्व-स्थिति। यह देह भी पर है, स्व नहीं। स्व स्थिति व
स्वधर्म सदा सुख का अनुभव कराता है और प्रकृति-धर्म अर्थात् पर धर्म या देह की
स्मृति किसी न किसी प्रकार के दुख का अनुभव कराती है। तो जो सदा स्व स्थिति में रहता
है वह सदा सुख का अनुभव करता है, उसके पास दुख की लहर आ नहीं सकती। वह संगमयुगी
विजयी रत्न बन जाते हैं।
स्लोगन:-
परिवर्तन शक्ति द्वारा व्यर्थ संकल्पों के बहाव का फोर्स समाप्त करो।
अव्यक्त इशारे -
“कम्बाइण्ड रूप की स्मृति से सदा विजयी बनो''
लोग कहते हैं जिधर
देखते हैं उधर तू ही तू है और हम कहते कि हम जो करते हैं, जहाँ जाते हैं बाप साथ ही
है अर्थात् तू ही तू है। जैसे कर्तव्य साथ है, ऐसे हर कर्तव्य कराने वाला भी सदा
साथ है। करनहार और करावनहार दोनों कम्बाइण्ड है।