14-10-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठेबच्चे - यह
पुरुषोत्तम संगमयुग कल्याणकारी युग है, इसमें ही परिवर्तन होता है, तुम कनिष्ट से
उत्तम पुरुष बनते हो''
प्रश्नः-
इस ज्ञान
मार्ग में कौन सी बात सोचने वा बोलने से कभी भी उन्नति नहीं हो सकती?
उत्तर:-
ड्रामा में
होगा तो पुरुषार्थ कर लेंगे। ड्रामा करायेगा तो कर लेंगे। यह सोचने वा बोलने वालों
की उन्नति कभी नहीं हो सकती। यह कहना ही रांग है। तुम जानते हो अभी जो हम पुरुषार्थ
कर रहे हैं, यह भी ड्रामा में नूँध है। पुरुषार्थ करना ही है।
गीत:-
यह कहानी है
दीवे और तूफान की........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) पढ़ाई का तन्त (सार) बुद्धि में रख याद की यात्रा से कर्मातीत अवस्था
को पाना है। ऊंच, पूज्यनीय बनने के लिए बाप का पूरा-पूरा मददगार बनना है।
2) सत्य बाप द्वारा राइट-रांग की जो समझ मिली है, उससे राइटियस बन जीवन बंध से
छूटना है। मुक्ति और जीवनमुक्ति का वर्सा लेना है।
वरदान:-
आपस में स्नेह
की लेन-देन द्वारा सर्व को सहयोगी बनाने वाले सफलतामूर्त भव
अभी ज्ञान देने और लेने की
स्टेज पास की, अब स्नेह की लेन-देन करो। जो भी सामने आये, सम्बन्ध में आये तो स्नेह
देना और लेना है - इसको कहा जाता है सर्व के स्नेही व लवली। ज्ञान दान अज्ञानियों
को करना है लेकिन ब्राह्मण परिवार में इस दान के महादानी बनो। संकल्प में भी किसके
प्रति स्नेह के सिवाए और कोई उत्पत्ति न हो। जब सभी के प्रति स्नेह हो जाता है तो
स्नेह का रिसपॉन्स सहयोग होता है और सहयोग की रिजल्ट सफलता प्राप्त होती है।
स्लोगन:-
एक
सेकण्ड में व्यर्थ संकल्पों पर फुल स्टॉप लगा दो - यही तीव्र पुरुषार्थ है।
मातेश्वरी जी के
अनमोल महावाक्य
आजकल मनुष्य मुक्ति
को ही मोक्ष कहते हैं, वो ऐसे समझते हैं जो मुक्ति पाते हैं वो जन्म मरण से छूट जाते
हैं। वो लोग तो जन्म-मरण में न आना इसको ही ऊंच पद समझते हैं, वही प्रालब्ध मानते
हैं। जीवनमुक्ति फिर उसको समझते हैं जो जीवन में रहकर अच्छा कर्म करते हैं, जैसे
धर्मात्मा लोग हैं, उन्हों को जीवनमुक्त समझते हैं। बाकी कर्मबन्धन से मुक्त हो जाना
वो तो कोटों में से कोई विरला ही समझते हैं, अब यह है उन्हों की अपनी मत। लेकिन हम
तो परमात्मा द्वारा जान चुके हैं कि जब तक मनुष्य पहले विकारी कर्मबन्धन से मुक्त
नहीं हुआ है तब तक आदि-मध्य-अन्त दु:ख से छूट नहीं सकेंगे, तो इससे छूटना यह भी एक
स्टेज है। तो भी पहले जब ईश्वरीय नॉलेज को धारण करे तब ही उस स्टेज पर पहुँच सके और
उस स्टेज पर पहुँचाने वाला स्वयं परमात्मा चाहिए क्योंकि मुक्ति जीवनमुक्ति देते वह
हैं, वो भी एक ही समय आए सबको मुक्ति-जीवनमुक्ति दे देते हैं। बाकी परमात्मा कोई
अनेक बार नहीं आते और न कि ऐसा समझो कि परमात्मा ही सब अवतार धारण करते हैं। ओम्
शान्ति।
अव्यक्त इशारे -
स्वयं और सर्व के प्रति मन्सा द्वारा योग की शक्तियों का प्रयोग करो
मन्सा-सेवा बेहद
की सेवा है। जितना आप मन्सा से, वाणी से स्वयं सैम्पल बनेंगे, तो सैम्पल को देखकर
स्वत: ही आकर्षित होंगे। सिर्फ दृढ़ संकल्प रखो तो सहज सेवा होती रहेगी। अगर वाणी
के लिए समय नहीं है तो वृत्ति से, मन्सा सेवा से परिवर्तन करने का समय तो है ना। अब
सेवा के सिवाए समय गँवाना नहीं है। निरन्तर योगी, निरन्तर सेवाधारी बनो। यदि
मन्सा-सेवा करना नहीं आता तो अपने सम्पर्क से, अपनी चलन से भी सेवा कर सकते हो।