15-07-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - तुम्हें अभी भविष्य 21 जन्मों के लिए यहाँ ही पढ़ाई पढ़नी है, कांटे से खुशबूदार फूल बनना है, दैवीगुण धारण करने और कराने हैं''

प्रश्नः-
किन बच्चों की बुद्धि का ताला नम्बरवार खुलता जाता है?

उत्तर:-
जो श्रीमत पर चलते रहते हैं। पतित-पावन बाप की याद में रहते हैं। पढ़ाई पढ़ाने वाले के साथ जिनका योग है उनकी बुद्धि का ताला खुलता जाता है। बाबा कहते - बच्चे, अभ्यास करो हम आत्मा भाई-भाई हैं, हम बाप से सुनते हैं। देही-अभिमानी हो सुनो और सुनाओ तो ताला खुलता जायेगा।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बेहद बाप के प्रापर्टी की मैं आत्मा मालिक हूँ, जैसे बाप शान्ति, पवित्रता, आनंद का सागर है, ऐसे मैं आत्मा मास्टर सागर हूँ, इसी नशे में रहना है।

2) ड्रामा कह पुरुषार्थ नहीं छोड़ना है, कर्म ज़रूर करने हैं। कर्म-अकर्म-विकर्म की गति को समझ सदा श्रेष्ठ कर्म ही करने हैं।

वरदान:-
समय के महत्व को जान स्वयं को सम्पन्न बनाने वाले विश्व के आधारमूर्त भव

सारे कल्प की कमाई का, श्रेष्ठ कर्म रूपी बीज बोने का, 5 हजार वर्ष के संस्कारों का रिकार्ड भरने का, विश्व कल्याण वा विश्व परिवर्तन का यह समय चल रहा है। यदि समय के ज्ञान वाले भी वर्तमान समय को गंवाते हैं या आने वाले समय पर छोड़ देते हैं तो समय के आधार पर स्वयं का पुरुषार्थ हुआ। लेकिन विश्व की आधारमूर्त आत्मायें किसी भी प्रकार के आधार पर नहीं चलती। वे एक अविनाशी सहारे के आधार पर कलियुगी पतित दुनिया से किनारा कर स्वयं को सम्पन्न बनाने का पुरुषार्थ करती हैं।

स्लोगन:-
स्वयं को सम्पन्न बना लो तो विशाल कार्य में स्वत: सहयोगी बन जायेंगे।

अव्यक्त इशारे - संकल्पों की शक्ति जमा कर श्रेष्ठ सेवा के निमित्त बनो

वर्तमान समय के पुरुषार्थ में हर संकल्प को पॉवरफुल बनाना है। संकल्प ही जीवन का श्रेष्ठ खजाना है। जैसे खजाने द्वारा जो चाहे, जितना चाहे, उतना प्राप्त कर सकते हैं, वैसे ही श्रेष्ठ संकल्प द्वारा सदाकाल की श्रेष्ठ प्रालब्ध पा सकते हो। इसके लिए एक छोटा-सा स्लोगन स्मृति में रखो कि सोच समझकर करना और बोलना है तब सदाकाल के लिए श्रेष्ठ जीवन बना सकेंगे।