15-09-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
मीठे बच्चे - बाप आये हैं
तुम्हें कर्म-अकर्म-विकर्म की गुह्य गति सुनाने, जब आत्मा और शरीर दोनों पवित्र हैं
तो कर्म अकर्म होते हैं, पतित होने से विकर्म होते हैं।
प्रश्नः-
आत्मा पर कट (जंक)
चढ़ने का कारण क्या है? कट चढ़ी हुई है तो उसकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
कट चढ़ने का
कारण है - विकार। पतित बनने से ही कट चढ़ती है। अगर अभी तक कट चढ़ी हुई है तो उन्हें
पुरानी दुनिया की कशिश होती रहेगी। बुद्धि क्रिमिनल तरफ जाती रहेगी। याद में रह नहीं
सकेंगे।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) योग की अग्नि से विकारों की कट (जंक) को उतारना है। अपनी जांच करनी
है कि हमारी बुद्धि क्रिमिनल तरफ तो नहीं जाती है?
2) निश्चयबुद्धि बनने के बाद फिर कभी किसी भी बात में संशय नहीं उठाना है।
विकर्मों से बचने के लिए कोई भी कर्म अपने स्वधर्म में स्थित होकर बाप की याद में
करना है।
वरदान:-
श्रेष्ठ पालना
की विधि द्वारा वृद्धि करने वाले सर्व की बधाईयों के पात्र भव
संगमयुग बधाइयों से ही
वृद्धि पाने का युग है। बाप की, परिवार की बधाइयों से ही आप बच्चे पल रहे हो। बधाईयों
से ही नाचते, गाते, पलते, उड़ते जा रहे हो। यह पालना भी वन्डरफुल है। तो आप बच्चे
भी बड़ी दिल से, रहम की भावना से, दाता बनकर हर घड़ी एक दो को बहुत अच्छा, बहुत
अच्छा कह बधाईयां देते रहो - यही पालना की श्रेष्ठ विधि है। इस विद्धि से सर्व की
पालना करते रहो तो बंधाइयों के पात्र बन जायेंगे।
स्लोगन:-
अपना
सरल स्वभाव बना लेना - यही समाधान स्वरूप बनने की सहज विधि है।
मातेश्वरी जी के
अनमोल महावाक्य - “पुरुषार्थ और प्रालब्ध का बना हुआ अनादि ड्रामा''
मातेश्वरी:
पुरुषार्थ और प्रालब्ध दो चीज़ें हैं, पुरुषार्थ से प्रालब्ध बनती है। यह अनादि
सृष्टि का चक्र फिरता रहता है, जो आदि सनातन भारतवासी पूज्य थे, वही फिर पुजारी बनें
फिर वही पुजारी पुरुषार्थ कर पूज्य बनेंगे, यह उतरना और चढ़ना अनादि ड्रामा का खेल
बना हुआ है।
जिज्ञासू:
मातेश्वरी, मेरा भी यह प्रश्न उठता है कि जब यह ड्रामा ऐसा बना हुआ है तो फिर अगर
ऊपर चढ़ना होगा तो आपेही चढ़ेंगे फिर पुरुषार्थ करने का फायदा ही क्या हुआ? जो
चढ़ेंगे फिर भी गिरेंगे फिर इतना पुरुषार्थ ही क्यों करें? मातेश्वरी, आपका कहना है
कि यह ड्रामा हूबहू रिपीट होता है तो क्या आलमाइटी परमात्मा सदा ऐसे खेल को देख खुद
थकता नहीं है? जैसे 4 ऋतुओं में सर्दी, गर्मी आदि का फर्क रहता है तो क्या इस खेल
में फर्क नहीं पड़ेगा?
मातेश्वरी: बस, यही
तो खूबी है इस ड्रामा की, हूबहू रिपीट होता है और इस ड्रामा में और भी खूबी है जो
रिपीट होते हुए भी नित्य नया लगता है। पहले तो अपने को भी यह शिक्षा नहीं थी, लेकिन
जब नॉलेज मिली है तो जो जो भी सेकेण्ड बाय सेकेण्ड चलता है, भल हूबहू कल्प पहले वाला
चलता है परन्तु जब उनको साक्षी हो देखते हैं तो नित्य नया समझते हैं। अभी सुख दु:ख
दोनों की पहचान मिल गयी इसलिए ऐसे नहीं समझना अगर फेल होना ही है तो फिर पढ़े ही
क्यों? नहीं, फिर तो ऐसे भी समझें अगर खाना मिलना होगा तो आपेही मिलेगा, फिर इतनी
मेहनत कर कमाते ही क्यों हो? वैसे हम भी देख रहे हैं अब चढ़ती कला का समय आया है,
वही देवता घराना स्थापन हो रहा है तो क्यों न अभी ही वो सुख ले लेवें। जैसे देखो अब
कोई जज बनना चाहता है तो जब पुरुषार्थ करेगा तब उस डिग्री को हांसिल करेगा ना। अगर
उसमें फेल हो गया तो मेहनत ही बरबाद हो जाती है, परन्तु इस अविनाशी ज्ञान में फिर
ऐसा नहीं होता, जरा भी इस अविनाशी ज्ञान का विनाश नहीं होता। करके इतना पुरुषार्थ न
कर दैवी रॉयल घराने में न भी आवे परन्तु अगर कम पुरुषार्थ किया तो भी उस सतयुगी दैवी
प्रजा में आ सकते हैं। परन्तु पुरुषार्थ करना अवश्य है क्योंकि पुरुषार्थ से ही
प्रालब्ध बनेगी, बलिहारी पुरुषार्थ की ही गाई हुई है।
“यह ईश्वरीय नॉलेज
सर्व मनुष्य आत्माओं के लिये है''
पहले-पहले तो अपने
को एक मुख्य प्वाइन्ट ख्याल में अवश्य रखनी है, जब इस मनुष्य सृष्टि झाड़ का बीज
रूप परमात्मा है तो उस परमात्मा द्वारा जो नॉलेज प्राप्त हो रही है वो सब मनुष्यों
के लिये जरूरी है। सभी धर्म वालों को यह नॉलेज लेने का अधिकार है। भल हरेक धर्म की
नॉलेज अपनी-अपनी है, हरेक का शास्त्र अपना-अपना है, हरेक की मत अपनी-अपनी है, हरेक
का संस्कार अपना-अपना है लेकिन यह नॉलेज सबके लिये हैं। भल वो इस ज्ञान को न भी उठा
सके, हमारे घराने में भी न आवे परन्तु सबका पिता होने कारण उनसे योग लगाने से फिर
भी पवित्र अवश्य बनेंगे। इस पवित्रता के कारण अपने ही सेक्शन में पद अवश्य पायेंगे
क्योंकि योग को तो सभी मनुष्य मानते हैं, बहुत मनुष्य ऐसे कहते हैं हमें भी मुक्ति
चाहिए, मगर सजाओं से छूट मुक्त होने की शक्ति भी इस योग द्वारा मिल सकती है। ओम्
शान्ति।
अव्यक्त इशारे -
अब लगन की अग्नि को प्रज्वलित कर योग को ज्वाला रूप बनाओ
आप बच्चों के पास
पवित्रता की जो महान शक्ति है, यह श्रेष्ठ शक्ति ही अग्नि का काम करती है जो सेकण्ड
में विश्व के किचड़े को भस्म कर सकती है। जब आत्मा पवित्रता की सम्पूर्ण स्थिति में
स्थित होती है तो उस स्थिति के श्रेष्ठ संकल्प से लगन की अग्नि प्रज्वलित होती है
और किचड़ा भस्म हो जाता है, वास्तव में यही योग ज्वाला है। अभी आप बच्चे अपनी इस
श्रेष्ठ शक्ति को कार्य में लगाओ।