15-11-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - अपनी जांच
करो कि कितना समय बाप की स्मृति रहती है, क्योंकि स्मृति में है ही फायदा, विस्मृति
में है घाटा''
प्रश्नः-
इस पाप आत्माओं
की दुनिया में कौन-सी बात बिल्कुल असम्भव है और क्यों?
उत्तर:-
यहाँ कोई कहे
हम पुण्य आत्मा हैं, यह बिल्कुल असम्भव है क्योंकि दुनिया ही कलियुगी तमोप्रधान है।
मनुष्य जिसको पुण्य का काम समझते हैं वह भी पाप हो जाता है क्योंकि हर कर्म विकारों
के वश हो करते हैं।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपनी बेहद की डायरी में चार्ट नोट करना है कि हमने याद में रहकर कितना
फायदा बढ़ाया? घाटा तो नहीं पड़ा? याद के समय बुद्धि कहाँ-कहाँ गई?
2) इस जन्म में छोटेपन से हमसे कौन-कौन से उल्टे कर्म अथवा पाप हुए हैं, वह नोट
करना है। जिस बात में दिल खाती है उसे बाप को सुनाकर हल्का हो जाना है। अब कोई भी
पाप का काम नहीं करना है।
वरदान:-
कर्मबन्धन को
सेवा के बन्धन में परिवर्तन कर सर्व से न्यारे और परमात्म प्यारे भव
परमात्म प्यार ब्राह्मण
जीवन का आधार है लेकिन वह तब मिलेगा जब न्यारे बनेंगे। अगर प्रवृत्ति में रहते हो
तो सेवा के लिए रहते हो। कभी भी यह नहीं समझो कि हिसाब-किताब है, कर्मबन्धन है..
लेकिन सेवा है। सेवा के बन्धन में बंधने से कर्मबन्धन खत्म हो जाता है। सेवाभाव नहीं
तो कर्मबन्धन खींचता है। जहाँ कर्मबन्धन है वहाँ दु:ख की लहर है, सेवा के बंधन में
खुशी है इसलिए कर्मबन्धन को सेवा के बन्धन में परिवर्तन कर न्यारे प्यारे रहो तो
परमात्म प्यारे बन जायेंगे।
स्लोगन:-
श्रेष्ठ आत्मा वह है जो स्वस्थिति द्वारा हर परिस्थिति को पार कर ले।