16-05-2024        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - अपने को सुधारने के लिए अटेन्शन दो, दैवीगुण धारण करो, बाप कभी किसी पर नाराज़ नहीं होते, शिक्षा देते हैं, इसमें डरने की बात नहीं''

प्रश्नः-
बच्चों को कौन-सी एक स्मृति रहे तो टाइम वेस्ट न करें?

उत्तर:-
यह संगम का समय है, बहुत ऊंची लॉटरी मिली है। बाप हमें हीरे जैसा देवता बना रहे हैं। यह स्मृति रहे तो कभी भी टाइम वेस्ट न करें। यह नॉलेज सोर्स ऑफ इनकम है इसलिए पढ़ाई कभी मिस न हो। माया देह-अभिमान में लाने की कोशिश करेगी। लेकिन तुम्हारा डायरेक्ट बाप से योग हो तो समय सफल हो जायेगा।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विकर्म विनाश कर स्वयं को सुधारने के लिए याद की यात्रा पर पूरा अटेन्शन देना है। दैवीगुण धारण करने हैं।

2) देवता बनने के लिए संगमयुग पर पुरूषोत्तम बनने का पुरुषार्थ करना है, ग़फलत में अपना टाइम वेस्ट नहीं करना है।

वरदान:-
ज्ञान के श्रेष्ठ खजानों को महादानी बन दान करने वाले मास्टर ज्ञान सागर भव

जैसे बाप ज्ञान का सागर है, ऐसे मास्टर ज्ञान सागर बन सदा औरों को ज्ञान दान देते रहो। ज्ञान का कितना श्रेष्ठ खजाना आप बच्चों के पास है। उसी खजाने से भरपूर बन, याद के अनुभवों से औरों की सेवा करो। जो भी खजाने मिले हैं महादानी बन उनका दान करते रहो क्योंकि यह खजाने जितना दान करेंगे उतना और भी बढ़ते जायेंगे। महादानी बनना अर्थात् देना नहीं बल्कि और भी भरना।

स्लोगन:-
जीवनमुक्त के साथ देह से न्यारे विदेही बनना - यह है पुरुषार्थ की लास्ट स्टेज।

मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य

“गुप्त वेशधारी परमात्मा के आगे कन्याओं, माताओं का संन्यास''

अभी दुनियावी मनुष्यों को यह विचार तो आना चाहिए कि इन कन्याओं, माताओं ने संन्यास क्यों लिया है? यह कोई हठयोग, कर्म-संन्यास नहीं है परन्तु बिल्कुल सहजयोग, राजयोग, कर्मयोग संन्यास जरूर है। परमात्मा खुद आए जीते जी, देह सहित देह के सभी कर्मेन्द्रियों का मन से संन्यास कराता है अर्थात् पाँच विकारों का सम्पूर्ण संन्यास करना जरूर है। परमात्मा आए कहता है दे दान तो छूटे ग्रहण। अब माया का यह ग्रहण जो आधाकल्प से लगा हुआ है इससे आत्मा काली (पतित) बन गई है, उनको फिर से पवित्र बनाना है। देखो, देवताओं की आत्मायें कितनी पवित्र और चमत्कारी हैं, जब सोल पवित्र है तो तन भी निरोगी पवित्र मिलता है। अब यह भी संन्यास तब हो सकता है जब पहले कुछ चीज़ मिलती है। गरीब का बालक साहूकार की गोद में जाता है तो जरूर कुछ देख गोद लेता है, परन्तु साहूकार का बालक गरीब की गोद में नहीं जा सकता। तो यहाँ यह कोई अनाथ आश्रम नहीं है, यहाँ तो बड़े-बड़े धनवान, कुलवान मातायें-कन्यायें हैं जिन्हों को दुनियावी लोग अब भी चाहते हैं कि घर में वापस आ जाएं, परन्तु इन्होंने क्या प्राप्त किया जो उस मायावी धन, पदार्थ अर्थात् सर्वंश संन्यास किया है। तो जरूर उनसे उन्हों को जास्ती सुख शान्ति की प्राप्ति हुई तभी तो उस धन, पदार्थ को ठोकर मार दी है। जैसे राजा गोपीचंद ने अथवा मीरा ने रानी-पने का अथवा राजाई का संन्यास कर लिया। यह है ईश्वरीय अतीन्द्रिय अलौकिक सुख जिसके आगे वो दुनियावी पदार्थ तुच्छ हैं, उन्हों को यह पता है कि इस मरजीवा बनने से हम जन्म-जन्मान्तर के लिये अमरपुरी की बादशाही प्राप्त कर रहे हैं, तब ही भविष्य बनाने का पुरुषार्थ कर रहे हैं। परमात्मा का बनना माना परमात्मा का हो जाना, सबकुछ उसको अर्पण कर देना फिर वो रिटर्न में अविनाशी पद दे देता है। तो यह मनोकामना परमात्मा ही आकर इस संगम समय पूर्ण करता है क्योंकि अपन जानते हैं कि विनाश ज्वाला में तन-मन-धन सहित सब भस्मीभूत हो ही जायेगा, तो क्यों न परमात्मा अर्थ सफल करें। अब यह राज़ भी समझना है कि जब सब विनाश होना है तो हम भी लेकर क्या करें। हमको कोई संन्यासियों के मुआफिक, मण्डलेश्वर के मुआफिक यहाँ महल बनाए नहीं बैठना है परन्तु ईश्वर अर्थ बीज़ बोने से वहाँ भविष्य जन्म-जन्मान्तर इनका बन जाना है, यह है गुप्त राज़। प्रभु तो दाता है एक देवे सौ पावे। परन्तु इस ज्ञान में पहले सहन करना पड़ता है जितना सहन करेंगे उतना अन्त में प्रभाव निकलेगा इसलिए अभी से लेकर पुरुषार्थ करो। अच्छा। ओम् शान्ति।