16-07-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - ड्रामा की
यथार्थ नॉलेज से ही तुम अचल, अडोल और एकरस रह सकते हो, माया के त़ूफान तुम्हें हिला
नहीं सकते''
प्रश्नः-
देवताओं का
मुख्य एक कौन-सा गुण तुम बच्चों में सदा दिखाई देना चाहिए?
उत्तर:-
हर्षित रहना।
देवताओं को सदा मुस्कराते हुए हर्षित दिखाते हैं। ऐसे तुम बच्चों को भी सदा हर्षित
रहना है, कोई भी बात हो, मुस्कराते रहो। कभी भी उदासी या गुस्सा नहीं आना चाहिए।
जैसे बाप तुम्हें राइट और रांग की समझानी देते हैं, कभी गुस्सा नहीं करते, उदास नहीं
होते, ऐसे तुम बच्चों को भी उदास नहीं होना है।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर पवित्र बन स्वयं का श्रृंगार करना है। कभी
भी माया की धूल में लिथड़कर श्रृंगार बिगाड़ना नहीं है।
2) इस ड्रामा को यथार्थ रीति समझकर अपनी अवस्था अचल, अडोल, स्थेरियम बनानी है।
कभी भी मूँझना नहीं है, सदैव हर्षित रहना है।
वरदान:-
सोच-समझकर हर
कर्म करने वाले पश्चाताप से मुक्त ज्ञानी तू आत्मा भव
दुनिया में भी कहते हैं
पहले सोचो फिर करो। जो सोचकर नहीं करते, करके फिर सोचते हैं तो पश्चाताप का रूप हो
जाता है। पीछे सोचना, यह पश्चाताप का रूप है और पहले सोचना - यह ज्ञानी तू आत्मा का
गुण है। द्वापर-कलियुग में तो अनेक प्रकार के पश्चाताप ही करते रहे लेकिन अब संगम
पर ऐसा सोच समझकर संकल्प वा कर्म करो जो कभी मन में भी, एक सेकण्ड भी पश्चाताप न
हो, तब कहेंगे ज्ञानी तू आत्मा।
स्लोगन:-
रहमदिल
बन सर्व गुणों और शक्तियों का दान देने वाले ही मास्टर दाता हैं।