16-09-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - तुम हो रूहानी पण्डे, तुम्हें सबको शान्तिधाम अर्थात् अमरपुरी का रास्ता बताना है''

प्रश्नः-
तुम बच्चों को कौन-सा नशा है, उस नशे के आधार पर कौन-से निश्चय के बोल बोलते हो?

उत्तर:-
तुम बच्चों को यह नशा है कि हम बाप को याद कर जन्म-जन्मान्तर के लिए पवित्र बनते हैं। तुम निश्चय से कहते हो कि भल कितने भी विघ्न पड़ें लेकिन स्वर्ग की स्थापना तो जरूर होनी ही है। नई दुनिया की स्थापना और पुरानी दुनिया का विनाश होना ही है। यह बना-बनाया ड्रामा है, इसमें संशय की बात ही नहीं।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) धंधा आदि करते भविष्य ऊंच पद पाने के लिए याद में रहने का पूरा-पूरा पुरुषार्थ करना है। यह ड्रामा सेकण्ड बाई सेकण्ड बदलता रहता है इसलिए कभी कोई सीन देखकर हार्टफेल नहीं होना है।

2) यह रूहानी पढ़ाई पढ़कर दूसरों को पढ़ानी है, सबका कल्याण करना है। अन्दर यही उछल आती रहे कि हम कैसे सबको पावन बनने की एडवाइज़ दें। घर का रास्ता बतायें।

वरदान:-
सर्व सम्बन्धों के सहयोग की अनुभूति द्वारा निरन्तर योगी, सहजयोगी भव

हर समय बाप के भिन्न-भिन्न सम्बन्धों का सहयोग लेना अर्थात् अनुभव करना ही सहज योग है। बाप कैसे भी समय पर सम्बन्ध निभाने के लिए बंधे हुए हैं। सारे कल्प में अभी ही सर्व अनुभवों की खान प्राप्त होती है इसलिए सदा सर्व सम्बन्धों का सहयोग लो और निरन्तर योगी, सहजयोगी बनो क्योंकि जो सर्व सम्बन्धों की अनुभूति वा प्राप्ति में मग्न रहता है वह पुरानी दुनिया के वातावरण से सहज ही उपराम हो जाता है।

स्लोगन:-
सर्व शक्तियों से सम्पन्न रहना, यही ब्राह्मण स्वरूप की विशेषता है।

अव्यक्त इशारे - अब लगन की अग्नि को प्रज्वलित कर योग को ज्वाला रूप बनाओ

तपस्वी मूर्त का अर्थ है - तपस्या द्वारा शान्ति के शक्ति की किरणें चारों ओर फैलती हुई अनुभव में आयें। यह तपस्वी स्वरूप औरों को देने का स्वरूप है। जैसे सूर्य विश्व को रोशनी की और अनेक विनाशी प्राप्तियों की अनुभूति कराता है। ऐसे महान तपस्वी आत्मायें ज्वाला रूप शक्तिशाली याद द्वारा प्राप्ति के किरणों की अनुभूति कराती हैं।