17-05-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - गृहस्थ
व्यवहार में रहते हुए ऐसा ट्रस्टी बनो जो किसी भी चीज़ में आसक्ति न रहे, हमारा कुछ
भी नहीं, ऐसा बेगर बन जाओ''
प्रश्नः-
तुम बच्चों के
पुरूषार्थ की मंज़िल कौन-सी है?
उत्तर:-
आप मरे मर गई
दुनिया - यही है तुम्हारी मंज़िल। शरीर से ममत्व टूट जाए। ऐसा बेगर बनो जो कुछ भी
याद न आये। आत्मा अशरीरी बन जाये। बस, हमको वापिस जाना है। ऐसा पुरूषार्थ करने वाले
बेगर टू प्रिन्स बनते हैं। तुम बच्चे ही फ़कीर से अमीर, अमीर से फ़कीर बनते हो। जब
तुम अमीर हो तो एक भी गरीब नहीं होता है।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने के लिए स्मृति रहे कि यही पुरूषोत्तम
संगमयुग है जबकि हमें भगवान् पढ़ाते हैं, जिससे हम राजाओं का राजा बनेंगे। अभी ही
हमें ड्रामा के आदि, मध्य, अन्त का ज्ञान है।
2) अब वापस घर जाना है इसलिए इस शरीर से भी पूरा बेगर बनना है। इसे भूल अपने को
अशरीरी आत्मा समझना है।
वरदान:-
सदा सन्तुष्ट
रह अपनी दृष्टि, वृत्ति, कृति द्वारा सन्तुष्टता की अनुभूति कराने वाले सन्तुष्टमणि
भव
ब्राह्मण कुल में विशेष
आत्मायें वो हैं जो सदा सन्तुष्टता की विशेषता द्वारा स्वयं भी सन्तुष्ट रहती हैं
और अपनी दृष्टि, वृत्ति और कृति द्वारा औरों को भी सन्तुष्टता की अनुभूति कराती
हैं, वही सन्तुष्टमणियां हैं जो सदा संकल्प, बोल, संगठन के सम्बन्ध-सम्पर्क वा कर्म
में बापदादा द्वारा अपने ऊपर सन्तुष्टता के गोल्डन पुष्पों की वर्षा अनुभव करती
हैं। ऐसी सन्तुष्ट मणियां ही बापदादा के गले का हार बनती हैं, राज्य अधिकारी बनती
हैं और भक्तों के सिमरण की माला बनती हैं।
स्लोगन:-
निगेटिव और वेस्ट को समाप्त कर मेहनत मुक्त बनो।