17-07-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - ऊंच बनना है
तो अपना पोतामेल रोज़ देखो, कोई भी कर्मेन्द्रिय धोखा न दे, आंखें बहुत धोखेबाज हैं
इनसे सम्भाल करो''
प्रश्नः-
सबसे बुरी आदत
कौन-सी है, उनसे बचने का उपाय क्या है?
उत्तर:-
सबसे बुरी आदत
है - जबान का स्वाद। कोई अच्छी चीज़ देखी तो छिपाकर खा लेंगे। छिपाना अर्थात् चोरी।
चोरी रूपी माया भी बहुतों को नाक कान से पकड़ लेती है। इससे बचने का साधन जब भी कहाँ
बुद्धि जाए तो खुद ही खुद को सज़ा दो। बुरी आदतों को निकालने के लिए अपने आपको खूब
फटकार लगाओ।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सेन्सीबुल बन अपनी जांच करनी है कि आंखें धोखा तो नहीं देती हैं। कोई
भी कर्मेन्द्रिय के वश हो उल्टा कर्म नहीं करना है। याद के बल से कर्मेन्द्रियों के
धोखे से छूटना है।
2) इस सच्ची कमाई के लिए समय निकालना है, पीछे आते भी पुरुषार्थ से मेकप कर लेना
है। यह विकर्म विनाश करने का समय है इसलिए कोई भी विकर्म नहीं करना है।
वरदान:-
बालक सो मालिक
के पाठ द्वारा निरंहकारी और निराकारी भव
बालक बनना अर्थात् हद के
जीवन का परिवर्तन होना। कोई कितने भी बड़े देश का मालिक हो, धन वा परिवार का मालिक
हो लेकिन बाप के आगे सब बालक हैं। तुम ब्राह्मण बच्चे भी बालक बनते हो तो बेफिकर
बादशाह और भविष्य में विश्व के मालिक बनते हो। “बालक सो मालिक हूँ'' - यह स्मृति सदा
निरंहकारी-निराकारी स्थिति का अनुभव कराती है। बालक अर्थात् बच्चा बनना माना माया
से बच जाना।
स्लोगन:-
प्रसन्नता ही ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है - तो सदा प्रसन्नचित रहो।
अव्यक्त इशारे -
संकल्पों की शक्ति जमा कर श्रेष्ठ सेवा के निमित्त बनो
जो कार्य आज के
अनेक पदमपति नहीं कर सकते हैं वह आपका एक संकल्प आत्मा को पदमापदमपति बना सकता है
इसलिए श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति जमा करो। श्रेष्ठ संकल्प की शक्ति को ऐसा स्वच्छ
बनाओ जो जरा भी व्यर्थ की अस्वच्छता भी न हो तब यह शक्ति कमाल के कार्य करेगी।