19-03-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - तुम्हें इस पुरानी दुनिया, पुराने शरीर से जीते जी मरकर घर जाना है, इसलिए देह-अभिमान छोड़ देही-अभिमानी बनो''

प्रश्नः-
अच्छे-अच्छे पुरूषार्थी बच्चों की निशानी क्या होगी?

उत्तर:-
जो अच्छे पुरूषार्थी हैं वह सवेरे-सवेरे उठकर देही-अभिमानी रहने की प्रैक्टिस करेंगे। वह एक बाप को याद करने का पुरूषार्थ करेंगे। उन्हें लक्ष्य रहता कि और कोई देहधारी याद न आये, निरन्तर बाप और 84 के चक्र की याद रहे। यह भी अहो सौभाग्य कहेंगे।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप से आशीर्वाद मांगने के बजाए याद की यात्रा से अपना सब हिसाब चुक्तू करना है। पावन बनने का पुरूषार्थ करना है। इस ड्रामा को यथार्थ रीति समझना है।

2) इस पुरानी दुनिया को देखते हुए भी याद नहीं करना है। कर्मयोगी बनना है। सदा हर्षित रहने का अभ्यास करना है। कभी भी रोना नहीं है।

वरदान:-
प्रवृत्ति में रहते मेरे पन का त्याग करने वाले सच्चे ट्रस्टी, मायाजीत भव

जैसे गन्दगी में कीड़े पैदा होते हैं वैसे ही जब मेरापन आता है तो माया का जन्म होता है। मायाजीत बनने का सहज तरीका है - स्वयं को सदा ट्रस्टी समझो। ब्रह्माकुमार माना ट्रस्टी, ट्रस्टी की किसी में भी अटैचमेंट नहीं होती क्योंकि उनमें मेरापन नहीं होता। गृहस्थी समझेंगे तो माया आयेगी और ट्रस्टी समझेंगे तो माया भाग जायेगी इसलिए न्यारे होकर फिर प्रवृत्ति के कार्य में आओ तो मायाप्रूफ रहेंगे।

स्लोगन:-
जहाँ अभिमान होता है वहाँ अपमान की फीलिंग जरूर आती है।

अव्यक्त इशारे - सत्यता और सभ्यता रूपी क्लचर को अपनाओ

आपकी आन्तरिक स्वच्छता, सत्यता उठने में, बैठने में, बोलने में, सेवा करने में लोगों को अनुभव हो तब परमात्म प्रत्यक्षता के निमित्त बन सकेंगे, इसके लिए पवित्रता की शमा सदा जलती रहे। जरा भी हलचल में न आये, जितना पवित्रता की शमा अचल होगी उतना सहज सभी बाप को पहचान सकेंगे।