19-07-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - सदैव खुशी
में रहो कि हमें कौन पढ़ाता है, तो यह भी मनमनाभव है, तुम्हें खुशी है कि कल हम
पत्थर बुद्धि थे, आज पारस बुद्धि बने हैं''
प्रश्नः-
तकदीर खुलने
का आधार क्या है?
उत्तर:-
निश्चय। अगर
तकदीर खुलने में देरी होगी तो लंगड़ाते रहेंगे। निश्चय बुद्धि अच्छी रीति पढ़कर
गैलप करते रहेंगे। कोई भी बात में संशय है तो पीछे रह जायेंगे। जो निश्चय बुद्धि बन
अपनी बुद्धि को बाप तक दौड़ाते रहते हैं वह सतोप्रधान बन जाते हैं।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इसी डबल खुशी में रहना है कि अब मुसाफिरी पूरी हुई, पहले हम अपने घर
शान्तिधाम में जायेंगे फिर अपनी राजधानी में आयेंगे।
2) सिर पर जो जन्म-जन्मान्तर के पापों का बोझ है उसे भस्म करना है, देह-अभिमान
में आकर कोई भी विकर्म नहीं करना है।
वरदान:-
श्रेष्ठ
संकल्पों के सहयोग द्वारा सर्व में शक्ति भरने वाले शक्तिशाली आत्मा भव
सदा शक्तिशाली भव का वरदान
प्राप्त कर सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ संकल्पों द्वारा बल भरने की सेवा करो। जैसे
आजकल सूर्य की शक्ति जमा करके कई कार्य सफल करते हैं। ऐसे श्रेष्ठ संकल्पों की शक्ति
इतनी जमा हो जो औरों के संकल्पों में बल भर दो। यह संकल्प इन्जेक्शन का काम करते
हैं। इससे अन्दर वृत्ति में शक्ति आ जाती है। तो अब श्रेष्ठ भावना वा श्रेष्ठ
संकल्प से परिवर्तन करना - इस सेवा की आवश्यकता है।
स्लोगन:-
मास्टर
दु:ख हर्ता बन दुख को भी रूहानी सुख में परिवर्तन करना - यही आपका श्रेष्ठ कर्तव्य
है।
अव्यक्त इशारे -
संकल्पों की शक्ति जमा कर श्रेष्ठ सेवा के निमित्त बनो
कोई-कोई बच्चे
कभी-कभी बड़ा खेल दिखाते हैं। व्यर्थ संकल्प इतना फोर्स से आते जो कन्ट्रोल नहीं कर
पाते, फिर उस समय कहते क्या करें हो गया ना! रोक नहीं सकते, जो आया वह कर लिया
लेकिन व्यर्थ के लिए कन्ट्रोलिंग पावर चाहिए। जैसे एक समर्थ संकल्प का फल पदमगुणा
मिलता है। ऐसे ही एक व्यर्थ संकल्प का हिसाब-किताब - उदास होना, दिलशिकस्त होना वा
खुशी गायब होना - यह भी एक का बहुत गुणा के हिसाब से अनुभव होता है।