20-01-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - ज्ञान की
धारणा के साथ-साथ सतयुगी राजाई के लिए याद और पवित्रता का बल भी जमा करो''
प्रश्नः-
अभी तुम बच्चों
के पुरूषार्थ का क्या लक्ष्य होना चाहिए?
उत्तर:-
सदा खुशी में
रहना, बहुत-बहुत मीठा बनना, सबको प्रेम से चलाना.... यही तुम्हारे पुरूषार्थ का
लक्ष्य हो। इसी से तुम सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण बनेंगे।
प्रश्नः-
जिनके कर्म
श्रेष्ठ हैं, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
उनके द्वारा
किसी को भी दु:ख नहीं पहुँचेगा। जैसे बाप दु:ख हर्ता सुख कर्ता है, ऐसे श्रेष्ठ
कर्म करने वाले भी दु:ख हर्ता सुख कर्ता होंगे।
गीत:-
छोड़ भी दे
आकाश सिंहासन........
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप द्वारा मिली हुई नॉलेज और वर्से को स्मृति में रख सदैव हर्षित
रहना है। ज्ञान और योग है तो सर्विस में तत्पर रहना है।
2) सुखधाम और शान्तिधाम को याद करना है। इन देवताओं जैसा मीठा बनना है। अपार खुशी
में रहना है। रूहानी टीचर बन ज्ञान का दान करना है।
वरदान:-
देह, सम्बन्ध
और वैभवों के बन्धन से स्वतन्त्र बाप समान कर्मातीत भव
जो निमित्त मात्र
डायरेक्शन प्रमाण प्रवृत्ति को सम्भालते हुए आत्मिक स्वरूप में रहते हैं, मोह के
कारण नहीं, उन्हें यदि अभी-अभी आर्डर हो कि चले आओ तो चले आयेंगे। बिगुल बजे और
सोचनें में ही समय न चला जाए - तब कहेंगे नष्टोमोहा इसलिए सदैव अपने को चेक करना है
कि देह का, सम्बन्ध का, वैभवों का बन्धन अपनी ओर खींचता तो नहीं है! जहाँ बंधन होगा
वहाँ आकर्षण होगी। लेकिन जो स्वतन्त्र हैं वे बाप समान कर्मातीत स्थिति के समीप
हैं।
स्लोगन:-
स्नेह
और सहयोग के साथ शक्ति रूप बनो तो राजधानी में नम्बर आगे मिल जायेगा।
अपनी शक्तिशाली
मन्सा द्वारा सकाश देने की सेवा करो
जितना अभी तन, मन,
धन और समय लगाते हो, उससे मन्सा शक्तियों द्वारा सेवा करने से बहुत थोड़े समय में
सफलता ज्यादा मिलेगी। अभी जो अपने प्रति कभी-कभी मेहनत करनी पड़ती है - अपनी नेचर
को परिवर्तन करने की वा संगठन में चलने की वा सेवा में सफलता कभी कम देख दिलशिकस्त
होने की, यह सब समाप्त हो जायेगी।