21-05-2024 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - शिवबाबा
वन्डरफुल बाप, टीचर और सतगुरू है, उसे अपना कोई बाप नहीं, वह कभी किसी से कुछ सीखता
नहीं, उन्हें गुरू की दरकार नहीं, ऐसा वन्डर खाकर तुम्हें याद करना चाहिए''
प्रश्नः-
याद में कौन-सी
नवीनता हो तो आत्मा सहज ही पावन बन सकती है?
उत्तर:-
याद में जब
बैठते हो तो बाप की करेन्ट खींचते रहो। बाप तुम्हें देखे और तुम बाप को देखो, ऐसी
याद ही आत्मा को पावन बना सकती है। यह बहुत सहज याद है, लेकिन बच्चे घड़ी-घड़ी भूल
जाते हैं कि हम आत्मा हैं, शरीर नहीं। देही-अभिमानी बच्चे ही याद में ठहर सकते हैं।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी भी एक्टर से रावण हषद (ईर्ष्या) करे, विघ्न डाले, त़ूफान में
लाये तो उसे न देख अपने पुरूषार्थ में तत्पर रहना है क्योंकि हरेक एक्टर का पार्ट,
इस ड्रामा में अपना-अपना है। यह अनादि ड्रामा बना हुआ है।
2) रावण मत पर ईश्वर की अमानत में ख्यानत नहीं डालनी है। सबसे ममत्व निकाल पूरा
ट्रस्टी होकर रहना है।
वरदान:-
सदा एकरस मूड
द्वारा सर्व आत्माओं को सुख-शान्ति-प्रेम की अंचली देने वाले महादानी भव
आप बच्चों की मूड सदा खुशी
की एकरस रहे, कभी मूड आफ, कभी मूड बहुत खुश... ऐसे नहीं। सदा महादानी बनने वालों की
मूड कभी बदलती नहीं है। देवता बनने वाले माना देने वाले। आपको कोई कुछ भी दे लेकिन
आप महादानी बच्चे सबको सुख की अंचली, शान्ति की अंचली, प्रेम की अंचली दो। तन की
सेवा के साथ मन से ऐसी सेवा में बिजी रहो तो डबल पुण्य जमा हो जायेगा।
स्लोगन:-
आपकी
विशेषतायें प्रभू प्रसाद हैं, इन्हें सिर्फ स्वयं प्रति यूज़ नहीं करो, बांटो और
बढ़ाओ।