22-03-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हें नशा
चाहिए कि हमारा पारलौकिक बाप वन्डर ऑफ दी वर्ल्ड (स्वर्ग) बनाता, जिसके हम मालिक
बनते हैं''
प्रश्नः-
बाप के संग से
तुम्हें क्या-क्या प्राप्तियां होती हैं?
उत्तर:-
बाप के संग से
हम मुक्ति, जीवन-मुक्ति के अधिकारी बन जाते हैं। बाप का संग तार देता है (पार ले
जाता है)। बाबा हमें अपना बनाकर आस्तिक और त्रिकालदर्शी बना देते हैं। हम रचता और
रचना के आदि-मध्य-अन्त को जान जाते हैं।
गीत:-
धीरज धर मनुआ......
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी से भी घृणा वा ऩफरत नहीं करनी है। रहमदिल बन दु:खी आत्माओं को
सुखी बनाने की सेवा करनी है। बाप समान मास्टर प्यार का सागर बनना है।
2) “भगवान के हम बच्चे हैं'' इसी नशे वा खुशी में रहना है। कभी माया के उल्टे
संग में नहीं जाना है। देही-अभिमानी बनकर ज्ञान की धारणा करनी है।
वरदान:-
बाप समान
वरदानी बन हर एक के दिल को आराम देने वाले मास्टर दिलाराम भव
जो बाप समान वरदानी मूर्त
बच्चे हैं वह कभी किसी की कमजोरी को नहीं देखते, वह सबके ऊपर रहमदिल होते हैं। जैसे
बाप किसी की कमजोरियां दिल पर नहीं रखते ऐसे वरदानी बच्चे भी किसी की कमजोरी दिल
में धारण नहीं करते, वे हरेक की दिल को आराम देने वाले मास्टर दिलाराम होते हैं
इसलिए साथी हो या प्रजा सभी उनका गुणगान करते हैं। सभी के अन्दर से यही आशीर्वाद
निकलती है कि यह हमारे सदा स्नेही, सहयोगी हैं।
स्लोगन:-
संगमयुग पर श्रेष्ठ आत्मा वह है जो सदा बेफिक्र बादशाह है।
मातेश्वरी जी के
अनमोल महावाक्य
“ज्ञानी तू आत्मा
बच्चों की भूल होने से 100 गुना दण्ड''
इस अविनाशी ज्ञान
यज्ञ में आए साक्षात् परमात्मा का हाथ लेकर फिर कारणे अकारणे अगर उनसे विकर्म हो
जाता है तो उसकी सज़ा बहुत भारी है। जैसे ज्ञान लेने से उनको 100 गुना फायदा है,
वैसे ज्ञान लेते कोई भूल हो जाती है तो फिर 100 गुना दण्ड भी है इसलिए बहुत खबरदारी
रखनी है। भूल करते रहेंगे तो कमजोर पड़ते रहेंगे इसलिए छोटी बड़ी भूल को पकड़ते रहो,
आइंदे के लिये (आगे के लिए) परीक्षण कर चलते चलो। देखो, जैसे समझदार बड़ा आदमी बुरा
काम करता है तो उनके लिये बड़ी सजा है और जो नीचे गिरा हुआ आदमी है कुछ बुरा काम
करता है तो उनके लिये इतनी सज़ा नहीं है। अब तुम भी परमात्मा के बच्चे कहलाते हो तो
इतने ही तुमको दैवीगुण धारण करने हैं, सच्चे बाप के पास आते हो तो सच्चा होकर रहना
है।
2- लोग कहते हैं
परमात्मा जानी-जाननहार है, अब जानी-जाननहार का अर्थ यह नहीं है कि सबके दिलों को
जानता है। परन्तु सृष्टि रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानने वाला है। बाकी ऐसे नहीं
परमात्मा रचता पालन कर्ता और संहार कर्ता है तो इसका मतलब यह है कि परमात्मा पैदा
करता है, खिलाता है और मारता है, परन्तु ऐसे नहीं है। मनुष्य अपने कर्मों के
हिसाब-किताब से जन्म लेते हैं, इसका मतलब यह नहीं कि परमात्मा बैठ उनके बुरे संकल्प
और अच्छे संकल्पों को जानेगा। वो तो जानता है कि अज्ञानियों के दिल में क्या चलता
होगा? सारा दिन मायावी संकल्प चलते होंगे और ज्ञानी के अन्दर शुद्ध संकल्प चलते
होंगे, बाकी एक एक संकल्प को बैठ थोड़ेही रीड करेगा? बाकी परमात्मा जानता है, अब तो
सबकी आत्मा दुर्गति को पहुँची हुई है, उन्हों की सद्गति कैसे होनी है, यह सारी
पहचान जानी-जाननहार को है। अब मनुष्य जो कर्म भ्रष्ट बने हैं, उन्हों को श्रेष्ठ
कर्म कराना, सिखलाना और उनको कर्मबन्धन से छुटकारा देना, यह परमात्मा जानता है।
परमात्मा कहता है मुझ रचता और मेरी रचना के आदि-मध्य-अन्त की यह सारी नॉलेज को मैं
जानता हूँ, वह पहचान तो तुम बच्चों को दे रहा हूँ। अब तुम बच्चों को उस बाप की
निरन्तर याद में रहना है तब ही सर्व पापों से मुक्त होंगे अर्थात् अमरलोक में
जायेंगे, अब इस जानने को ही जानी-जाननहार कहते हैं। अच्छा। ओम् शान्ति।
अव्यक्त इशारे -
सत्यता और सभ्यता रूपी क्लचर को अपनाओ
कभी भी सभ्यता को
छोड़ करके सत्यता को सिद्ध नहीं करना। सभ्यता की निशानी है निर्मानता। यह निर्मानता
निर्माण का कार्य सहज करती है। जब तक निर्मान नहीं बने तब तक निर्माण नहीं कर सकते।
ज्ञान की शक्ति शान्ति और प्रेम है। अज्ञान की शक्ति क्रोध को बहुत अच्छी तरह से
संस्कार बना लिया है और यूज़ भी करते रहते हो फिर माफी भी लेते रहते हो। ऐसे अब हर
गुण को, हर ज्ञान की बात को संस्कार रूप में बनाओ तो सभ्यता आती जायेगी।