24-03-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - यह ज्ञान
तुम्हें शीतल बनाता है, इस ज्ञान से काम-क्रोध की आग खत्म हो जाती है, भक्ति से वह
आग खत्म नहीं होती''
प्रश्नः-
याद में मुख्य
मेहनत कौन सी है?
उत्तर:-
बाप की याद
में बैठते समय देह भी याद न आये। आत्म-अभिमानी बन बाप को याद करो, यही मेहनत है,
इसमें ही विघ्न पड़ता है क्योंकि आधाकल्प देह-अभिमानी रहे हो। भक्ति माना ही देह की
याद।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) संगदोष से अपनी बहुत-बहुत सम्भाल करनी है। कभी पतितों के संग में नहीं
आना है। साइलेन्स बल से इस सृष्टि को पावन बनाने की सेवा करनी है।
2) ड्रामा को अच्छी तरह समझकर हर्षित रहना है। अपना सब कुछ नई दुनिया के लिए
ट्रांसफर करना है।
वरदान:-
बाप द्वारा
सफलता का तिलक प्राप्त करने वाले सदा आज्ञाकारी, दिलतख्त नशीन भव
भाग्य विधाता बाप रोज़
अमृतवेले अपने आज्ञाकारी बच्चों को सफलता का तिलक लगाते हैं। आज्ञाकारी ब्राह्मण
बच्चे कभी मेहनत वा मुश्किल शब्द मुख से तो क्या संकल्प में भी नहीं ला सकते हैं।
वह सहजयोगी बन जाते हैं इसलिए कभी भी दिलशिकस्त नहीं बनो लेकिन सदा दिलतख्तनशीन बनो,
रहमदिल बनो। अहम भाव और वहम भाव को समाप्त करो।
स्लोगन:-
विश्व
परिवर्तन की डेट नहीं सोचो, स्वयं के परिवर्तन की घड़ी निश्चित करो।
अव्यक्त इशारे -
सत्यता और सभ्यता रूपी क्लचर को अपनाओ
जो प्युरिटी की
पर्सनैलिटी से सम्पन्न रॉयल आत्मायें हैं उन्हें सभ्यता की देवी कहा जाता है। उनमें
क्रोध विकार की इमप्युरिटी भी नहीं हो सकती। क्रोध का सूक्ष्म रूप ईर्ष्या, द्वेष,
घृणा भी अगर अन्दर में है तो वह भी अग्नि है जो अन्दर ही अन्दर जलाती है। बाहर से
लाल, पीला नहीं होता, लेकिन काला होता है। तो अब इस कालेपन को समाप्त कर सच्चे और
साफ बनो।