28-09-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 15.02.2007 "बापदादा" मधुबन
अलबेलेपन, आलस्य और
बहानेबाजी की नींद से जागना ही शिवरात्रि का सच्चा जागरण है
वरदान:-
हद की सर्व
इच्छाओं का त्याग करने वाले सच्चे तपस्वी मूर्त भव
हद की इच्छाओं का
त्याग कर सच्चे-सच्चे तपस्वी मूर्त बनो। तपस्वी मूर्त अर्थात हद के इच्छा मात्रम्
अविद्या रूप। जो लेने का संकल्प करता है वह अल्पकाल के लिए लेता है लेकिन सदाकाल के
लिए गंवाता है। तपस्वी बनने में विशेष विघ्न रूप यही अल्पकाल की इच्छायें हैं इसलिए
अब तपस्वी मूर्त बनने का सबूत दो अर्थात् हद के मान शान के लेवता पन का त्याग कर
विधाता बनो। जब विधाता पन के संस्कार इमर्ज होंगे तब अन्य सब संस्कार स्वत:दब
जायेंगे।
स्लोगन:-
कर्म के फल की सूक्ष्म कामना रखना भी फल को पकने से पहले ही खा लेना है।
अव्यक्त इशारे - अब
लगन की अग्नि को प्रज्वलित कर योग को ज्वाला रूप बनाओ
पाप कटेश्वर वा पाप
हरनी तब बन सकते हो जब याद ज्वाला स्वरूप होगी। इसी याद द्वारा अनेक आत्माओं की
निर्बलता दूर होगी, इसके लिए हर सेकण्ड, हर श्वांस बाप और आप कम्बाइन्ड होकर रहो।
कोई भी समय साधारण याद न हो। स्नेह और शक्ति दोनों रूप कम्बाइन्ड हो।