28-12-2024        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम्हें सर्व खजानों से मालामाल बनाने, तुम सिर्फ ईश्वरीय मत पर चलो, अच्छी रीति पुरूषार्थ कर वर्सा लो, माया से हार नहीं खाओ''

प्रश्नः-
ईश्वरीय मत, दैवी मत और मनुष्य मत में कौन-सा मुख्य अन्तर है?

उत्तर:-
ईश्वरीय मत से तुम बच्चे वापिस अपने घर जाते हो फिर नई दुनिया में ऊंच पद पाते हो। दैवी मत से तुम सदा सुखी रहते हो क्योंकि वह भी बाप द्वारा इस समय की मिली हुई मत है लेकिन फिर भी उतरते तो नीचे ही हो। मनुष्य मत दु:खी बनाती है। ईश्वरीय मत पर चलने के लिए पहले-पहले पढ़ाने वाले बाप पर पूरा निश्चय चाहिए।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपनी बीमारी सर्जन से कभी भी छिपानी नहीं है। माया के भूतों से स्वयं को बचाना है। अपने को राजतिलक देने के लिए सर्विस जरूर करनी है।

2) स्वयं को अविनाशी ज्ञान धन से धनवान बनाना है। अब पाप आत्माओं से लेन-देन नहीं करनी है। पढ़ाई पर पूरा-पूरा अटेन्शन देना है।

वरदान:-
इस कल्याणकारी युग में सर्व का कल्याण करने वाले प्रकृतिजीत मायाजीत भव

संगमयुग को कल्याणकारी युग कहा जाता है इस युग में सदा ये स्वमान याद रहे कि मैं कल्याणकारी आत्मा हूँ, मेरा कर्तव्य है पहले स्व का कल्याण करना फिर सर्व का कल्याण करना। मनुष्यात्मायें तो क्या हम प्रकृति का भी कल्याण करने वाले हैं इसलिए प्रकृतिजीत, मायाजीत कहलाते हैं। जब आत्मा पुरुष प्रकृतिजीत बन जाती है, तो प्रकृति भी सुखदाई बन जाती है। प्रकृति वा माया की हलचल में आ नहीं सकते। उन्हों पर अकल्याण के वायुमण्डल का प्रभाव पड़ नहीं सकता।

स्लोगन:-
एक दूसरे के विचारों को सम्मान दो तो माननीय आत्मा बन जायेंगे।