29-03-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम्हें
ज्ञान से अच्छी जागृति आई है, तुम अपने 84 जन्मों को, निराकार और साकार बाप को जानते
हो, तुम्हारा भटकना बंद हुआ''
प्रश्नः-
ईश्वर की गत
मत न्यारी क्यों गाई हुई है?
उत्तर:-
1. क्योंकि वह
ऐसी मत देते हैं जिससे तुम ब्राह्मण सबसे न्यारे बन जाते हो। तुम सबकी एक मत हो जाती
है, 2. ईश्वर ही है जो सबकी सद्गति करते हैं। पुजारी से पूज्य बनाते हैं इसलिए उनकी
गत मत न्यारी है, जिसे तुम बच्चों के सिवाए कोई समझ नहीं सकता।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) रचयिता और रचना का ज्ञान सिमरण कर सदा हर्षित रहना है। याद की यात्रा
से अपने पुराने सब कर्मबन्धन काट कर्मातीत अवस्था बनानी है।
2) ध्यान दीदार में माया की बहुत प्रवेशता होती है, इसलिए सम्भाल करनी है, बाप
को समाचार दे राय लेनी है, कोई भी भूल नहीं करनी है।
वरदान:-
अपनी शुभ भावना
द्वारा निर्बल आत्माओं में बल भरने वाले सदा शक्ति स्वरूप भव
सेवाधारी बच्चों की विशेष
सेवा है - स्वयं शक्ति स्वरूप रहना और सर्व को शक्ति स्वरूप बनाना अर्थात् निर्बल
आत्माओं में बल भरना, इसके लिए सदा शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना स्वरूप बनो। शुभ
भावना का अर्थ यह नहीं कि किसी में भावना रखते-रखते उसके भाववान हो जाओ। यह गलती नहीं
करना। शुभ भावना भी बेहद की हो। एक के प्रति विशेष भावना भी नुकसानकारक है इसलिए
बेहद में स्थित हो निर्बल आत्माओं को अपनी प्राप्त हुई शक्तियों के आधार से शक्ति
स्वरूप बनाओ।
स्लोगन:-
अलंकार
ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार हैं - इसलिए अलंकारी बनो देह अहंकारी नहीं।
अव्यक्त इशारे -
सत्यता और सभ्यता रूपी क्लचर को अपनाओ
कई बच्चे कहते हैं
वैसे क्रोध नहीं आता है, लेकिन कोई झूठ बोलता है तो क्रोध आ जाता है। उसने झूठ बोला,
आपने क्रोध से बोला तो दोनों में राइट कौन? कई चतुराई से कहते हैं कि हम क्रोध नहीं
करते हैं, हमारा आवाज ही बड़ा है, आवाज ही ऐसा तेज है लेकिन जब साइन्स के साधनों से
आवाज को कम और ज्यादा कर सकते हैं तो क्या साइलेन्स की पॉवर से अपने आवाज की गति को
धीमी या तेज नहीं कर सकते हो?