30-01-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - इस पुरानी
दुनिया में कोई भी सार नहीं है, इसलिए तुम्हें इससे दिल नहीं लगानी है, बाप की याद
टूटी तो सजा खानी पड़ेगी''
प्रश्नः-
बाप का मुख्य
डायरेक्शन क्या है? उसका उल्लंघन क्यों होता है?
उत्तर:-
बाप का
डायरेक्शन है किसी से सेवा मत लो क्योंकि तुम खुद सर्वेन्ट हो। परन्तु देह-अभिमान
के कारण बाप के इस डायरेक्शन का उल्लंघन करते हैं। बाबा कहते तुम यहाँ सुख लेंगे तो
वहाँ का सुख कम हो जायेगा। कई बच्चे कहते हैं हम तो इन्डिपेन्डेन्ट रहेंगे परन्तु
तुम सब बाप पर डिपेन्ड करते हो।
गीत:-
दिल का सहारा
टूट न जाए......
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अगर एक बार कोई भूल हुई तो उसी समय कान पकड़ना है, दुबारा वह भूल न
हो। कभी भी देह अहंकार में नहीं आना है। ज्ञान में प्रवीण बन अन्तर्मुखी रहना है।
2) सच्चा पिताव्रता बनना है, जीते जी बलि चढ़ना है। किसी से भी दिल नहीं लगानी
है। बेसमझी का कोई भी काम नहीं करना है।
वरदान:-
जुदाई को
सदाकाल के लिए विदाई देने वाले स्नेही स्वरूप भव
जो स्नेही को पसन्द है वही
स्नेह करने वाले को पसन्द हो - यही स्नेह का स्वरूप है। चलना-खाना-पीना-रहना स्नेही
के दिलपसन्द हो इसलिए जो भी संकल्प वा कर्म करो तो पहले सोचो कि यह स्नेही बाप के
दिलपसन्द है। ऐसे सच्चे स्नेही बनो तो निरन्तर योगी, सहजयोगी बन जायेंगे। यदि स्नेही
स्वरूप को समान स्वरूप में परिवर्तन कर दो तो अमर भव का वरदान मिल जायेगा और जुदाई
को सदाकाल के लिए विदाई मिल जायेगी।
स्लोगन:-
स्वभाव
इज़ी और पुरूषार्थ अटेन्शन वाला बनाओ।
अपनी शक्तिशाली
मन्सा द्वारा सकाश देने की सेवा करो
जैसे बीज में सारा
वृक्ष समाया रहता है, ऐसे संकल्प रूपी बीज में सारे वृक्ष का विस्तार समा जाए तब
संकल्पों की हलचल समाप्त होगी। जैसे आजकल दुनिया में राजनीति की हलचल, वस्तुओं के
मूल्य की हलचल, करैन्सी की हलचल, कर्मभोग की हलचल, धर्म की हलचल .. बढ़ती जा रही
है। उस हलचल से स्वयं को वा सर्व को बचाने के लिए मन-बुद्धि को एकाग्र करने का
अभ्यास करते सकाश देने की सेवा करते रहो।