30-05-2025 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम अभी
शान्तिधाम, सुखधाम में जाने के लिए ईश्वरीय धाम में बैठे हो, यह सत का संग है, जहाँ
तुम पुरुषोत्तम बन रहे हो''
प्रश्नः-
तुम बच्चे बाप
से भी ऊंच हो, नीच नहीं - कैसे?
उत्तर:-
बाबा कहते -
बच्चे, मैं विश्व का मालिक नहीं बनता, तुम्हें विश्व का मालिक बनाता हूँ तो
ब्रह्माण्ड का भी मालिक बनाता हूँ। मैं ऊंच ते ऊंच बाप तुम बच्चों को नमस्ते करता
हूँ, इसलिए तुम मेरे से भी ऊंच हो, मैं तुम मालिकों को सलाम करता हूँ। तुम फिर ऐसा
बनाने वाले बाप को सलाम करते हो।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) हम ब्रह्मा मुख
वंशावली ब्राह्मण हैं, स्वयं भगवान हमें मनुष्य से देवता बनाने की पढ़ाई पढ़ा रहे
हैं, इस नशे और खुशी में रहना है। पुरुषोत्तम संगमयुग पर पुरुषोत्तम बनने का
पुरुषार्थ करना है।
2) अभी हमारी
वानप्रस्थ अवस्था है, मौत सामने खड़ा है, वापिस घर जाना है..... इसलिए बाप की याद
से सब पापों को भस्म करना है।
वरदान:-
नॉलेज रूपी
चाबी द्वारा भाग्य का अखुट खजाना प्राप्त करने वाले मालामाल भव
संगमयुग पर सभी बच्चों को
भाग्य बनाने के लिए नालेज रूपी चाबी मिलती है। ये चाबी लगाओ और जितना चाहे उतना
भाग्य का खजाना लो। चाबी मिली और मालामाल बन गये। जो जितना मालामाल बनते हैं उतना
खुशी स्वत: रहती है। ऐसे अनुभव होता है जैसे खुशी का झरना अखुट अविनाशी बहता ही रहता
है। वे सर्व खजानों से भरपूर मालामाल दिखाई देते हैं। उनके पास किसी भी प्रकार की
अप्राप्ति नहीं रहती।
स्लोगन:-
बाप से
कनेक्शन ठीक रखो तो सर्व शक्तियों की करेन्ट आती रहेगी।
अव्यक्त इशारे -
रूहानी रॉयल्टी और प्युरिटी की पर्सनैलिटी धारण करो
जितनी पवित्रता है
उतनी ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है, अगर पवित्रता कम तो पर्सनैलिटी कम। ये
प्योरिटी की पर्सनैलिटी सेवा में भी सहज सफलता दिलाती है। लेकिन यदि एक विकार भी
अंशमात्र है तो दूसरे साथी भी उसके साथ जरूर होंगे। जैसे पवित्रता का सुख-शान्ति से
गहरा सम्बन्ध है, ऐसे अपवित्रता का भी पांच विकारों से गहरा सम्बन्ध है इसलिए कोई
भी विकार का अंशमात्र न रहे तब कहेंगे पवित्रता की पर्सनैलिटी द्वारा सेवा करने वाले।