30-08-2025        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“मीठे बच्चे - ज्ञान को बुद्धि में धारण कर आपस में मिलकर क्लास चलाओ, अपना और औरों का कल्याण कर सच्ची कमाई करते रहो''

प्रश्नः-
तुम बच्चों में कौन-सा अहंकार कभी नहीं आना चाहिए?

उत्तर:-
कई बच्चों में अहंकार आता है कि यह छोटी-छोटी बालकियाँ हमें क्या समझायेंगी। बड़ी बहन चली गई तो रूठकर क्लास में आना बंद कर देंगे। यह हैं माया के विघ्न। बाबा कहते - बच्चे, तुम सुनाने वाली टीचर के नाम-रूप को न देख, बाप की याद में रह मुरली सुनो। अहंकार में मत आओ।

धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ध्यान रखना है कि मुरली सुनते समय बुद्धियोग बाहर भटकता तो नहीं है? सदा स्मृति रहे कि हम शिवबाबा के महावाक्य सुन रहे हैं। यह भी याद की यात्रा है।

2) अपने आपको देखना है कि हमारे में ज्ञान-योग और दैवी गुण हैं? लालच का भूत तो नहीं है? माया के वश कोई विकर्म तो नहीं होता है?

वरदान:-
निमित्त भाव की स्मृति से हलचल को समाप्त करने वाले सदा अचल-अडोल भव

निमित्त भाव से अनेक प्रकार का मैं पन, मेरा पन सहज ही खत्म हो जाता है। यह स्मृति सर्व प्रकार की हलचल से छुड़ाकर अचल-अडोल स्थिति का अनुभव कराती है। सेवा में भी मेहनत नहीं करनी पड़ती। क्योंकि निमित्त बनने वालों की बुद्धि में सदा याद रहता है कि जो हम करेंगे हमें देख सब करेंगे। सेवा के निमित्त बनना अर्थात् स्टेज पर आना। स्टेज तरफ स्वत: सबकी नजर जाती है। तो यह स्मृति भी सेफ्टी का साधन बन जाती है।

स्लोगन:-
सर्व बातों में न्यारे बनो तो परमात्म बाप के सहारे का अनुभव होगा।

अव्यक्त इशारे - सहजयोगी बनना है तो परमात्म प्यार के अनुभवी बनो

वर्तमान समय भटकती हुई आत्माओं को एक तो शान्ति चाहिए, दूसरा रूहानी स्नेह चाहिए। प्रेम और शान्ति का ही सब जगह अभाव है इसलिए जो भी प्रोग्राम करो उसमें पहले तो बाप के सम्बन्ध के स्नेह की महिमा करो और फिर उस प्यार से आत्माओं का सम्बन्ध जोड़ने के बाद शान्ति का अनुभव कराओ। प्रेम स्वरूप और शान्त स्वरूप दोनों का बैलेन्स हो।