31-08-2025     प्रात:मुरली  ओम् शान्ति 15.12.2006 "बापदादा"    मधुबन


“स्मृति स्वरूप, अनुभवी मूर्त बन सेकण्ड की तीव्रगति से परिवर्तन कर पास विद ऑनर बनो''
 


वरदान:-
स्मृति के स्विच द्वारा स्व कल्याण और सर्व का कल्याण करने वाले सिद्धि स्वरूप भव

स्थिति का आधार स्मृति है। यह शक्तिशाली स्मृति रहे कि “ मैं बाप का और बाप मेरा।'' तो इसी स्मृति से स्वयं की स्थिति शक्तिशाली रहेगी और दूसरों को भी शक्तिशाली बनायेंगे। जैसे स्विच आन करने से रोशनी हो जाती है ऐसे यह स्मृति भी एक स्विच है। सदा स्मृति रूपी स्विच का अटेन्शन हो तो स्वयं का और सर्व का कल्याण करते रहेंगे। नया जन्म हुआ तो नई स्मृतियां हों। पुरानी सब स्मृतियां समाप्त - इसी विधि से सिद्धि स्वरूप का वरदान प्राप्त हो जायेगा।

स्लोगन:-
अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करने के लिए अपने शान्त स्वरूप स्थिति में स्थित रहो।

अव्यक्त इशारे - सहजयोगी बनना है तो परमात्म प्यार के अनुभवी बनो

बाप-दादा प्रेम के बंधन में बंधे हुए हैं। छूटने चाहें तो भी छूट नहीं सकते हैं, इसीलिए भक्ति में भी बंधन का चित्र दिखाया है। प्रैक्टिकल में प्रेम के बन्धन में अव्यक्त होते भी बंधना पड़ता है। व्यक्त से छुड़ाया फिर भी छूट नहीं सके। यह प्रेम की रस्सी बहुत मजबूत है। ऐसे प्रेम स्वरूप बन, एक दो को प्रेम की रस्सी में बांध समीप सम्बन्ध की वा अपने-पन की अनुभूति कराओ।