ओम् शान्ति।
रात को दिन बनाने के लिए बाप को आना पड़े। अभी तुम बच्चे जानते हो कि बाप आया हुआ
है। पहले हम शूद्र वर्ण के थे, शूद्र बुद्धि थे। वर्णों वाला चित्र भी समझाने के
लिए बहुत अच्छा है। बच्चे जानते हैं हम इन वर्णों में कैसे चक्र लगाते हैं। अभी हमको
परमपिता परमात्मा ने शूद्र से ब्राह्मण बनाया है। कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुगे हम
ब्राह्मण बनते हैं। ब्राह्मणों को पुरुषोत्तम नहीं कहेंगे। पुरुषोत्तम तो देवताओं
को कहेंगे। ब्राह्मण यहाँ पुरुषार्थ करते हैं पुरुषोत्तम बनने के लिए। पतित से पावन
बनने लिए ही बाप को बुलाते हैं। तो अपने से पूछना चाहिए हम पावन कहाँ तक बन रहे
हैं? स्टूडेन्ट भी पढ़ाई के लिए विचार सागर मंथन करते हैं ना। समझते हैं इस पढ़ाई
से हम यह बनेंगे। तुम बच्चों की बुद्धि में है कि अभी हम ब्राह्मण बने हैं देवता
बनने के लिए। यह है अमूल्य जीवन क्योंकि तुम ईश्वरीय सन्तान हो। ईश्वर तुमको राजयोग
सिखला रहे हैं, पतित से पावन बना रहे हैं। पावन देवता बनते हैं। वर्णों पर समझाना
बहुत अच्छा है। संन्यासी आदि इन बातों पर नहीं ठहरेंगे। बाकी 84 जन्मों का हिसाब
समझ सकते हैं। यह भी समझ सकते हैं कि हम संन्यास धर्म वाले 84 जन्म नहीं लेते हैं।
इस्लामी बौद्धी आदि भी समझेंगे हम 84 जन्म नहीं लेते हैं। हाँ पुनर्जन्म लेते हैं।
परन्तु कम। तुम्हारे समझाने से झट समझ जायेंगे। समझाने की भी युक्ति चाहिए। तुम
बच्चे यहाँ सम्मुख बैठे हो तो बाबा बुद्धि को रिफ्रेश करते हैं जैसे और बच्चे भी यहाँ
आते हैं रिफ्रेश होने के लिए। तुमको तो रोज़ बाबा रिफ्रेश करते हैं कि यह धारणा करो।
बुद्धि में यही ख्याल चलते रहें, हम 84 जन्म कैसे लेते हैं? कैसे शूद्र से ब्राह्मण
बने हैं? ब्रह्मा की सन्तान ब्राह्मण। अब ब्रह्मा कहाँ से आये? बाप बैठ समझाते हैं
हम इनका नाम ब्रह्मा रखते हैं। यह जो ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हैं यह फैमिली हो गये।
तो जरूर एडाप्टेड हैं। बाप ही एडाप्ट करेंगे। उनको बाप कहा जाता है, दादा नहीं
कहेंगे। बाप को बाप ही कहा जाता है। मिलकियत मिलती ही बाप से है। कोई चाचा, मामा वा
बिरादरी वाला भी एडाप्ट करते हैं। जैसे बाप ने सुनाया था एक बच्ची किचड़े के डिब्बे
में पड़ी थी, वह कोई ने उठाए जाकर किसको गोद में दी क्योंकि उनको अपना बच्चा नहीं
था। तो बच्ची जिनकी गोद में गई उनको ही मम्मा-बाबा कहने लग पड़ेगी ना। यह फिर है
बेहद की बात। तुम बच्चे भी जैसे बेहद के किचड़े के डिब्बे में पड़े थे। विषय वैतरणी
नदी में पड़े थे। कितने गन्दे हुए पड़े थे। ड्रामा अनुसार बाप ने आकर उस किचड़े से
निकाल तुमको एडाप्ट किया है। तमोप्रधान को किचड़ा ही कहेंगे ना। आसुरी गुण वाले
मनुष्य हैं देह-अभिमानी। काम, क्रोध भी बड़े विकार हैं ना। तो तुम रावण के बड़े
रिफ्युज़ में पड़े थे। वास्तव में रिफ्युज़ी भी हो। अब तुमने बेहद के बाप की शरण ली
है, रिफ्युज़ से निकल गुल-गुल देवता बनने। इस समय सारी दुनिया रिफ्युज़ के बड़े
डिब्बे में पड़ी है। बाप आकर तुम बच्चों को किचड़े से निकाल अपना बनाते हैं। परन्तु
किचड़े के रहने वाले ऐसे हिरे हुए हैं, जो निकालते हैं फिर भी किचड़ा ही अच्छा लगता
है। बाप आकर बेहद के किचड़े से निकालते हैं। बुलाते भी हैं कि बाबा आकर हमको
गुल-गुल बनाओ। कांटों के जंगल से निकाल फ्लावर बनाओ। खुदाई बगीचे में बिठाओ। अब
असुरों के जंगल में पड़े हैं। बाप तुम बच्चों को गार्डन में ले चलते हैं। शुद्र से
ब्राह्मण बने हैं फिर देवता बनेंगे। यह देवताओं की राजधानी है। ब्राह्मणों की राजाई
है नहीं। भल पाण्डव नाम है परन्तु पाण्डवों को राजाई नहीं है। राजाई प्राप्त करने
के लिए बाप के साथ बैठे हैं। बेहद की रात अब पूरी हो बेहद का दिन शुरू होता है। गीत
सुना ना - कौन आया सवेरे-सवेरे....... सवेरे-सवेरे आते हैं रात को मिटाए दिन बनाने
अर्थात् स्वर्ग की स्थापना, नर्क का विनाश कराने। यह भी बुद्धि में रहे तो खुशी हो।
जो नई दुनिया में ऊंच पद पाने वाले हैं वह कभी अपना आसुरी स्वभाव नहीं दिखायेंगे।
जिस यज्ञ से इतना ऊंच बनते हैं, उस यज्ञ की बहुत प्यार से सेवा करेंगे। ऐसे यज्ञ
में तो हड्डियाँ भी दे देनी चाहिए। अपने को देखना चाहिए - इस चलन से हम ऊंच पद कैसे
पायेंगे! बेसमझ छोटे बच्चे तो नहीं हैं ना। समझ सकते हैं - राजा कैसे, प्रजा कैसे
बनते हैं? बाबा ने रथ भी अनुभवी लिया है। जो राजाओं आदि को अच्छी रीति जानते हैं।
राजाओं के दास-दासियों को भी बहुत सुख मिलता है। वह तो राजाओं के साथ ही रहते हैं।
परन्तु कहलायेंगे तो दास-दासी। सुख तो है ना। जो राजा-रानी खाये वह उनको मिले। बाहर
वाले थोड़ेही खा सकते हैं। दासियों में भी नम्बरवार होती हैं। कोई श्रृंगार करने
वाली, कोई बच्चों को सम्भालने वाली, कोई झाड़ू आदि लगाने वाली। यहाँ के राजाओं को
इतने दास-दासियाँ हैं, तो वहाँ कितने ढेर होंगे। सब पर अलग-अलग अपनी चार्ज होती है।
रहने का स्थान अलग होगा। वह कोई राजा-रानी जैसे सजाया हुआ नहीं होगा। जैसे सर्वेन्ट
क्वार्टर्स होते हैं ना। अन्दर आयेंगे जरूर परन्तु रहते सर्वेन्ट क्वार्टर्स में
हैं। तो बाप अच्छी रीति समझाते हैं अपने पर रहम करो। हम ऊंचे ते ऊंच बनें। हम अभी
शूद्र से ब्राह्मण बने हैं। अहो सौभाग्य। फिर देवता बनेंगे। यह संगमयुग बहुत
कल्याणकारी है। तुम्हारी हर बात में कल्याण भरा हुआ है। भण्डारे में भी योग में रह
भोजन बनायें तो बहुतों का कल्याण भरा हुआ है। श्रीनाथ द्वारे में भोजन बनाते हैं
बिल्कुल ही साइलेन्स में। श्रीनाथ ही याद रहता है। भक्त अपनी भक्ति में बहुत मस्त
रहते हैं। तुमको फिर ज्ञान में मस्त रहना चाहिए। श्रीकृष्ण की ऐसी भक्ति होती है,
बात मत पूछो। वृन्दावन में दो बच्चियाँ हैं, पूरी भक्तिन हैं, कहती हैं बस हम यहाँ
ही रहेंगी। यहाँ ही शरीर छोड़ेंगी, श्रीकृष्ण की याद में। उनको बहुत कहते हैं अच्छे
मकान में चलकर रहो, ज्ञान लो, बोलती हैं हम तो यहाँ ही रहेंगी। तो उसको कहेंगे भक्त
शिरोमणी। श्रीकृष्ण पर कितना न्योछावर जाते हैं। अभी तुमको बाप पर न्योछावर होना
है। पहले-पहले शुरू में शिवबाबा पर कितने न्योछावर हुए। ढेर के ढेर आये। जब इन्डिया
में आये तो बहुतों को अपना घरबार याद पड़ने लगा। कितने चले गये। ग्रहचारी तो बहुतों
पर आती है ना। कभी कैसी दशा, कभी कैसी दशा बैठती है। बाबा ने समझाया है कोई भी आते
हैं तो बोलो कहाँ आये हो? बाहर में बोर्ड देखा - ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ। यह तो
परिवार है ना। एक है निराकार परमपिता परमात्मा। दूसरा फिर प्रजापिता ब्रह्मा भी गाया
हुआ है। यह सब उनके बच्चे हैं, दादा है शिवबाबा। वर्सा उनसे मिलता है। वह राय देते
हैं मुझे याद करो तो तुम पतित से पावन बन जायेंगे। कल्प पहले भी ऐसी राय दी थी।
कितनी ऊंची पढ़ाई है। यह भी तुम्हारी बुद्धि में है हम बाप से वर्सा ले रहे हैं।
तुम बच्चे मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई पढ़ रहे हो। तुम्हें जरूर दैवीगुण धारण
करने हैं। तुम्हारा खान पान, बोल-चाल कितना रॉयल होना चाहिए। देवतायें कितना थोड़ा
खाते हैं। उनमें कोई लालच थोड़ेही रहती है। 36 प्रकार के भोजन बनते हैं, खाते कितना
थोड़ा हैं। खान-पान की लालच रखना - इसको भी आसुरी चलन कहा जाता है। दैवीगुण धारण
करने हैं तो खान पान बड़ा शुद्ध और साधारण होना चाहिए। परन्तु माया ऐसी है जो एकदम
पत्थर बुद्धि बना देती है तो फिर पद भी ऐसा मिलेगा। बाप कहते हैं अपना कल्याण करने
के लिए दैवीगुण धारण करो। अच्छी रीति पढ़ेंगे, पढ़ायेंगे तो तुमको ही इज़ाफा मिलेगा।
बाप नहीं देते हैं, तुम अपने पुरुषार्थ से पाते हो। अपने को देखना चाहिए कहाँ तक हम
सर्विस करते हैं? हम क्या बनेंगे? इस समय शरीर छूट जाए तो क्या मिलेगा? बाबा से कोई
पूछे तो बाबा झट बता दें कि इस एक्टिविटी से समझा जाता है यह फलाना पद पायेंगे।
पुरूषार्थ ही नहीं करते तो कल्प-कल्पान्तर के लिए अपने को घाटा डालते हैं। अच्छी
सर्विस करने वाले जरूर अच्छा पद पायेंगे। अन्दर में मालूम रहता है यह दास-दासी जाकर
बनेंगे। बाहर से कह नहीं सकते। स्कूल में भी स्टूडेन्ट समझते हैं हम सीनियर बनेंगे
वा जूनियर? यहाँ भी ऐसे हैं। सीनियर जो होंगे वह राजा-रानी बनेंगे, जूनियर कम पद
पायेंगे। साहूकारों में भी सीनियर और जूनियर होंगे। दास-दासियों में भी सीनियर और
जूनियर होंगे। सीनियर वालों का दर्जा ऊंच होता है। झाड़ू लगाने वाली दासी को कभी
अन्दर महल में आने का हुक्म नहीं रहता। इन सब बातों को तुम बच्चे अच्छी रीति समझ
सकते हो। पिछाड़ी में और भी समझते जायेंगे। ऊंच बनाने वालों का फिर रिगार्ड भी रखना
होता है। देखो कुमारका है, वह सीनियर है तो रिगार्ड रखना चाहिए।
बाप बच्चों का ध्यान खिंचवाते हैं - जो बच्चे महारथी हैं, उनका रिगार्ड रखो।
रिगार्ड नहीं रखते तो अपने ऊपर पाप का बोझा चढ़ाते हैं। यह सब बातें बाप ध्यान में
देते हैं। बड़ी खबरदारी चाहिए। नम्बरवार किसका रिगार्ड कैसे रखना चाहिए, बाबा तो हर
एक को जानते हैं ना। किसको कहें तो ट्रेटर बनने में देरी न करें। फिर कुमारियों,
माताओं आदि पर भी बन्धन आ जाते हैं। सितम सहन करने पड़ते हैं। बहुत करके मातायें ही
लिखती हैं - बाबा हमको यह बहुत तंग करते हैं, हम क्या करें? अरे, तुम कोई जानवर
थोड़ेही हो जो जबरदस्ती करेंगे। अन्दर में दिल है तब पूछती हो क्या करूँ! इसमें तो
पूछने की भी बात नहीं है। आत्मा अपना मित्र है, अपना ही शत्रु है। जो चाहे सो करे।
पूछना माना दिल है। मुख्य बात है याद की। याद से ही तुम पावन बनते हो। यह
लक्ष्मी-नारायण नम्बरवन पावन हैं ना। मम्मा कितनी सर्विस करती थी। ऐसा तो कोई कह न
सके हम मम्मा से भी होशियार हैं। मम्मा ज्ञान में सबसे तीखी थी। योग की कमी बहुतों
में है। याद में रह नहीं सकते हैं। याद नहीं करेंगे तो विकर्म विनाश कैसे होंगे! लॉ
कहता है पिछाड़ी में याद में ही शरीर छोड़ना है। शिवबाबा की याद में ही प्राण तन से
निकलें। एक बाप के सिवाए और कोई याद न आये। कहाँ भी आसक्ति न हो। यह प्रैक्टिस करनी
होती है, हम अशरीरी आये थे फिर अशरीरी होकर जाना है। बच्चों को बार-बार समझाते रहते
हैं। बहुत मीठा बनना है। दैवीगुण भी होने चाहिए। देह-अभिमान का भूत होता है ना। अपने
पर बहुत ध्यान रखना है। बहुत प्यार से चलना है। बाप को याद करो और चक्र को याद करो।
चक्र का राज़ किसको समझाया तो भी वन्डर खायेंगे। 84 जन्मों की ही किसको याद नहीं
रहती है तो 84 लाख फिर कैसे कोई याद कर सके? ख्याल में भी आ न सके, इस चक्र को ही
बुद्धि में याद रखो तो भी अहो सौभाग्य। अभी यह नाटक पूरा होता है। पुरानी दुनिया से
वैराग्य होना चाहिए, बुद्धियोग शान्तिधाम-सुखधाम में रहे। गीता में भी है मनमनाभव।
कोई भी गीतापाठी मनमनाभव का अर्थ नहीं जानते हैं। तुम बच्चे जानते हो - भगवानुवाच,
देह के सभी सम्बन्ध छोड़ अपने को आत्मा समझो। किसने कहा? स्वयं बाप ने। कोई फिर कहते
हम तो शास्त्रों को ही मानते हैं, भल भगवान आये तो भी नहीं मानेंगे। बरोबर शास्त्र
पढ़ते रहते हैं। भगवान आये हैं राजयोग सिखला रहे हैं, स्थापना हो रही है, यह
शास्त्र आदि सब हैं ही भक्तिमार्ग के। भगवान का निश्चय हो तो वर्सा लेने लग पड़े,
फिर भक्ति भी उड़ जाए। परन्तु जब निश्चय हो ना। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) देवता बनने के लिए बहुत रॉयल संस्कार धारण करने हैं। खान-पान बहुत
शुद्ध और साधारण रखना है। लालच नहीं करनी है। अपना कल्याण करने के लिए दैवीगुण धारण
करने हैं।
2) अपने ऊपर ध्यान रखते, सबके साथ बहुत प्यार से चलना है। अपने से जो सीनियर
हैं, उनका रिगार्ड जरूर रखना है। बहुत-बहुत मीठा बनना है। देह-अभिमान में नहीं आना
है।