ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों से रूहानी बाप पूछते हैं यहाँ तुम बैठे हो, किसकी याद में
बैठे हो? (बाप, शिक्षक, सतगुरू की) सभी इन तीनों की याद में बैठे हो? हर एक अपने से
पूछे यह सिर्फ यहाँ बैठे याद है या चलते-फिरते याद रहती है? क्योंकि यह है वन्डरफुल
बात। और कोई आत्मा को कभी ऐसे नहीं कहा जाता। भल यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक
हैं परन्तु उनकी आत्मा को कभी ऐसे नहीं कहेंगे कि यह बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू
भी है। बल्कि सारी दुनिया में जो भी जीव आत्मायें है, कोई भी आत्मा को ऐसे नहीं
कहेंगे। तुम बच्चे ही ऐसे याद करते हो। अन्दर में आता है यह बाबा, बाबा भी है, टीचर
भी है, सतगुरू भी है। सो भी सुप्रीम। तीनों को याद करते हो या एक को? भल वह एक है
परन्तु तीनों गुणों से याद करते हो। शिवबाबा हमारा बाप भी है, टीचर और सतगुरू भी
है। यह एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी कहा जाता है। जब बैठे हो अथवा चलते फिरते हो तो यह याद
रहना चाहिए। बाबा पूछते हैं ऐसे याद करते हो कि यह हमारा बाप, टीचर, सतगुरू भी है।
ऐसा कोई भी देहधारी हो नहीं सकता। देहधारी नम्बरवन है श्रीकृष्ण, उनको बाप, टीचर,
सतगुरू कह नहीं सकते, यह बिल्कुल वन्डरफुल बात है। तो सच बताना चाहिए तीनों रूप में
याद करते हो? भोजन पर बैठते हो तो सिर्फ शिवबाबा को याद करते हो या तीनों बुद्धि
में आते हैं? और तो कोई भी आत्मा को ऐसे नहीं कह सकते। यह है वन्डरफुल बात। विचित्र
महिमा है बाप की। तो बाप को याद भी ऐसे करना है। तो बुद्धि एकदम उस तरफ चली जायेगी
जो ऐसा वन्डरफुल है। बाप ही बैठ अपना परिचय देते हैं फिर सारे चक्र का भी नॉलेज देते
हैं। ऐसे यह युग हैं, इतने-इतने वर्ष के हैं जो फिरते रहते हैं। यह ज्ञान भी वह
रचयिता बाप ही देते हैं। तो उनको याद करने में बहुत मदद मिलेगी। बाप, टीचर, गुरू वह
एक ही है। इतनी ऊंच आत्मा और कोई हो नहीं सकती। परन्तु माया ऐसे बाप की याद भी भुला
देती है तो टीचर और गुरू को भी भूल जाते हैं। यह हर एक को अपने-अपने दिल से लगाना
चाहिए। बाबा हमको ऐसा विश्व का मालिक बनायेंगे। बेहद के बाप का वर्सा जरूर बेहद का
ही है। साथ-साथ यह महिमा भी बुद्धि में आये, चलते-फिरते तीनों ही याद आयें। इस एक
आत्मा की तीनों ही सर्विस इकट्ठी हैं इसलिए उनको सुप्रीम कहा जाता है।
अब कॉन्फ्रेन्स आदि बुलाते हैं, कहते हैं विश्व में शान्ति कैसे हो? वह तो अब हो
रही है, आकर समझो। कौन कर रहे हैं? तुमको बाप का आक्यूपेशन सिद्ध कर बताना है। बाप
के आक्यूपेशन और श्रीकृष्ण के आक्यूपेशन में बहुत फ़र्क है। और तो सबका नाम शरीर का
ही लिया जाता है। उनकी आत्मा का नाम गाया जाता है। वह आत्मा बाप भी है, टीचर, गुरू
भी है। आत्मा में नॉलेज है परन्तु वह दे कैसे? शरीर द्वारा ही देंगे ना। जब देते
हैं तब तो महिमा गाई जाती है। अब शिव जयन्ती पर बच्चे कॉन्फ्रेन्स करते हैं। सब
धर्म के नेताओं को बुलाते हैं। तुमको समझाना है ईश्वर सर्वव्यापी तो है नहीं। अगर
सबमें ईश्वर है तो क्या हर एक आत्मा भगवान बाप भी है, टीचर भी है, गुरू भी है! बताओ
सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त का नॉलेज है? यह तो कोई भी सुना न सके।
तुम बच्चों के अन्दर में आना चाहिए ऊंच ते ऊंच बाप की कितनी महिमा है। वह सारे
विश्व को पावन बनाने वाला है। प्रकृति भी पावन बन जाती है। कान्फ्रेन्स में
पहले-पहले तो तुम यह पूछेंगे कि गीता का भगवान् कौन है? सतयुगी देवी-देवता धर्म की
स्थापना करने वाला कौन? अगर श्रीकृष्ण के लिए कहेंगे तो बाप को गुम कर देंगे या तो
फिर कह देते वह नाम-रूप से न्यारा है। जैसेकि है ही नहीं। तो बाप बिगर आरफन्स ठहरे
ना। बेहद के बाप को ही नहीं जानते। एक दो पर काम कटारी चलाकर कितना तंग करते हैं।
एक-दो को दु:ख देते हैं। तो यह सब बातें तुम्हारी बुद्धि में चलनी चाहिए।
कॉन्ट्रास्ट करना है - यह लक्ष्मी-नारायण भगवान-भगवती हैं ना, इन्हों की भी वंशावली
है ना। तो जरूर सब ऐसे गॉड-गॉडेज होने चाहिए। तो तुम सब धर्म वालों को बुलाते हो।
जो अच्छी रीति पढ़े-लिखे हैं, बाप का परिचय दे सकते हैं, उनको ही बुलाना है। तुम
लिख सकते हो जो आकर रचयिता और रचना के आदि, मध्य, अन्त का परिचय देवे उनके लिए हम
आने-जाने, रहने आदि का सब प्रबन्ध करेंगे - अगर रचता और रचना का परिचय दिया तो। यह
तो जानते हैं कोई भी यह ज्ञान दे नहीं सकते। भल कोई विलायत से आवे, रचयिता और रचना
के आदि, मध्य, अन्त का परिचय दिया तो हम खर्चा दे देंगे। ऐसी एडवरटाइज़ और कोई कर न
सके। तुम तो बहादुर हो ना। महावीर-महावीरनियाँ हो। तुम जानते हो इन्हों ने (लक्ष्मी-नारायण)
विश्व की बादशाही कैसे ली? कौन-सी बहादुरी की? बुद्धि में यह सब बातें आनी चाहिए।
कितना तुम ऊंच कार्य कर रहे हो। सारे विश्व को पावन बना रहे हो। तो बाप को याद करना
है, वर्सा भी याद करना है। सिर्फ यह नहीं कि शिवबाबा याद है। परन्तु उनकी महिमा भी
बतानी है। यह महिमा है ही निराकार की। परन्तु निराकार अपना परिचय कैसे दे? जरूर रचना
के आदि, मध्य, अन्त का नॉलेज देने लिए मुख चाहिए ना। मुख की कितनी महिमा है। मनुष्य
गऊमुख पर जाते हैं, कितना धक्का खाते हैं। क्या-क्या बातें बना दी हैं। तीर मारा
गंगा निकल आई। गंगा को समझते हैं पतित-पावनी। अब पानी कैसे पतित से पावन बना सकता।
पतित-पावन तो बाप ही है। तो बाप तुम बच्चों को कितना सिखलाते रहते हैं। बाप तो कहते
हैं ऐसे ऐसे करो। कौन आकर बाप रचयिता और रचना का परिचय देंगे। साधू-संन्यासी आदि यह
भी जानते हैं कि ऋषि-मुनि आदि सब कहते थे - नेती-नेती, हम नहीं जानते हैं, गोया
नास्तिक थे। अब देखो कोई आस्तिक निकलता है? अभी तुम बच्चे नास्तिक से आस्तिक बन रहे
हो। तुम बेहद के बाप को जानते हो जो तुमको इतना ऊंच बनाते हैं। पुकारते भी हैं - ओ
गॉड फादर, लिबरेट करो। बाप समझाते हैं, इस समय रावण का सारे विश्व पर राज्य है। सब
भ्रष्टाचारी हैं फिर श्रेष्ठाचारी भी होंगे ना। तुम बच्चों की बुद्धि में है -
पहले-पहले पवित्र दुनिया थी। बाप अपवित्र दुनिया थोड़ेही बनायेंगे। बाप तो आकर पावन
दुनिया स्थापन करते हैं, जिसको शिवालय कहा जाता है। शिवबाबा शिवालय बनायेंगे ना। वह
कैसे बनाते हैं सो भी तुम जानते हो। महाप्रलय, जलमई आदि तो होती नहीं। शास्त्रों
में तो क्या-क्या लिखा है। बाकी 5 पाण्डव बचे जो हिमालय पहाड़ पर गल गये, फिर
रिजल्ट का कोई को पता नहीं। यह सब बातें बाप बैठ समझाते हैं। यह भी तुम ही जानते हो
- वह बाप, बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है। वहाँ तो यह मन्दिर होते नहीं। यह
देवतायें होकर गये हैं, जिनके यादगार मन्दिर यहाँ हैं। यह सब ड्रामा में नूँध है।
सेकण्ड बाई सेकण्ड नई बात होती रहती है, चक्र फिरता रहता है। अब बाप बच्चों को
डायरेक्शन तो बहुत अच्छे देते हैं। बहुत देह-अभिमानी बच्चे हैं जो समझते हैं हम तो
सब कुछ जान गये हैं। मुरली भी नहीं पढ़ते हैं। कदर ही नहीं है। बाबा ताकीद करते
हैं, कोई-कोई समय मुरली बहुत अच्छी चलती है। मिस नहीं करना चाहिए। 10-15 दिन की
मुरली जो मिस होती है वह बैठ पढ़नी चाहिए। यह भी बाप कहते हैं ऐसी-ऐसी चैलेन्ज दो -
यह रचता और रचना के आदि, मध्य, अन्त का नॉलेज कोई आकर दे तो हम उनको खर्चा आदि सब
देंगे। ऐसी चैलेन्ज तो जो जानते हैं वह देंगे ना। टीचर खुद जानता है तब तो पूछते
हैं ना। बिगर जाने पूछेंगे कैसे।
कोई-कोई बच्चे मुरली की भी डोन्टकेयर करते हैं। बस हमारा तो शिवबाबा से ही
कनेक्शन है। परन्तु शिवबाबा जो सुनाते हैं वह भी सुनना है ना कि सिर्फ उनको याद करना
है। बाप कैसे अच्छी-अच्छी मीठी-मीठी बातें सुनाते हैं। परन्तु माया बिल्कुल ही
मगरूर कर देती है। कहावत है ना - चूहे को हल्दी की गांठ मिली, समझा मै पंसारी
हूँ.......। बहुत हैं जो मुरली पढ़ते ही नहीं। मुरली में तो नई-नई बातें निकलती हैं
ना। तो यह सब बातें समझने की हैं। जब बाप की याद में बैठते हो तो यह भी याद करना है
कि वह बाप टीचर भी है और सतगुरू भी है। नहीं तो पढ़ेंगे कहाँ से। बाप ने तो बच्चों
को सब समझा दिया है। बच्चे ही बाप का शो करेंगे। सन शोज़ फादर। सन का फिर फादर शो
करते हैं। आत्मा का शो करते हैं। फिर बच्चों का काम है बाप का शो करना। बाप भी बच्चों
को छोड़ते नहीं हैं, कहेंगे आज फलानी जगह जाओ, आज यहाँ जाओ। इनको थोड़ेही कोई ऑर्डर
करने वाले होंगे। तो यह निमंत्रण आदि अखबारों में पड़ेंगे। इस समय सारी दुनिया है
नास्तिक। बाप ही आकर आस्तिक बनाते हैं। इस समय सारी दुनिया है वर्थ नाट ए पेनी।
अमेरिका के पास भल कितना भी धन दौलत है परन्तु वर्थ नाट ए पेनी है। यह तो सब खत्म
हो जाना है ना। सारी दुनिया में तुम वर्थ पाउण्ड बन रहे हो। वहाँ कोई कंगाल होगा नहीं।
तुम बच्चों को सदैव ज्ञान का सिमरण कर हर्षित रहना चाहिए। उसके लिए ही गायन है -
अतीन्द्रिय सुख गोप-गोपियों से पूछो। यह संगम की ही बातें हैं। संगमयुग को कोई भी
जानते नहीं। विहंग मार्ग की सर्विस करने से शायद महिमा निकले। गायन भी है अहो प्रभू
तेरी लीला। यह कोई भी नहीं जानते थे कि भगवान बाप, टीचर, सतगुरू भी है। अब फादर तो
बच्चों को सिखलाते रहते हैं। बच्चों को यह नशा स्थाई रहना चाहिए। अन्त तक नशा रहना
चाहिए। अभी तो नशा झट सोडावाटर हो जाता है। सोडा भी ऐसे होता है ना। थोड़ा टाइम रखने
से जैसे खारापानी हो जाता है। ऐसा तो नहीं होना चाहिए। किसको ऐसा समझाओ जो वह भी
वन्डर खाये। अच्छा-अच्छा कहते भी हैं परन्तु वह फिर टाइम निकाल समझें, जीवन बनावें
वह बड़ा मुश्किल है। बाबा कोई मना नहीं करते हैं कि धन्धा आदि नहीं करो। पवित्र बनो
और जो पढ़ाता हूँ वह याद करो। यह तो टीचर है ना। और यह है अन-कॉमन पढ़ाई। कोई
मनुष्य नहीं पढ़ा सकते। बाप ही भाग्यशाली रथ पर आकर पढ़ाते हैं। बाप ने समझाया है -
यह तुम्हारा तख्त है जिस पर अकाल मूर्त आत्मा आकर बैठती है। उनको यह सारा पार्ट मिला
हुआ है। अभी तुम समझते हो यह तो रीयल बात है। बाकी यह सब हैं आर्टीफिशल बातें। यह
अच्छी रीति धारण कर गांठ बाँध लो। तो हाथ लगने से याद आयेगा। परन्तु गाँठ क्यों
बाँधी है, वह भी भूल जाते हैं। तुमको तो यह पक्का याद करना है। बाप की याद के साथ
नॉलेज भी चाहिए। मुक्ति भी है तो जीवनमुक्ति भी है। बहुत मीठे-मीठे बच्चे बनो। बाबा
अन्दर में समझते हैं कल्प-कल्प यह बच्चे पढ़ते रहते हैं। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार
ही वर्सा लेंगे। फिर भी पढ़ाने का टीचर पुरूषार्थ तो करायेंगे ना। तुम घड़ी-घड़ी
भूल जाते हो इसलिए याद कराया जाता है। शिवबाबा को याद करो। वह बाप, टीचर, सतगुरू भी
है। छोटे बच्चे ऐसे याद नहीं करेंगे। श्रीकृष्ण के लिए थोड़ेही कहेंगे वह बाप, टीचर,
सतगुरू है। सतयुग का प्रिन्स श्रीकृष्ण वह फिर गुरू कैसे बनेगा। गुरू चाहिए दुर्गति
में। गायन भी है - बाप आकर सबकी सद्गति करते हैं। श्रीकृष्ण को तो सांवरा ऐसा बना
देते जैसे काला कोयला। बाप कहते हैं इस समय सब काम चिता पर चढ़ काले कोयले बन पड़े
हैं तब सांवरा कहा जाता है। कितनी गुह्य बातें समझने की हैं। गीता तो सब पढ़ते हैं।
भारतवासी ही हैं जो सभी शास्त्रों को मानते हैं। सबके चित्र रखते रहेंगे। तो उनको
क्या कहेंगे? व्यभिचारी भक्ति ठहरी ना। अव्यभिचारी भक्ति एक ही शिव की है। ज्ञान भी
एक ही शिवबाबा से मिलता है। यह ज्ञान ही डिफरेन्ट है, इसको कहा जाता है स्प्रीचुअल
नॉलेज। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुड मॉर्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) विनाशी नशे को छोड़ अलौकिक नशा रहे कि हम अभी वर्थ नाट पेनी से वर्थ
पाउण्ड बन रहे है। स्वयं भगवान् हमें पढ़ाते हैं, हमारी पढ़ाई अनकॉमन है।
2) आस्तिक बन बाप का शो करने वाली सर्विस करनी है। कभी भी मगरूर बन मुरली मिस नहीं
करनी है।