ओम् शान्ति।
रूहानी बाप रूहानी बच्चों से पूछते हैं। समझाते भी हैं फिर पूछते भी हैं। अब बाप को
बच्चों ने जाना है। भल कोई सर्वव्यापी भी कहते हैं परन्तु उनके पहले बाप को पहचानना
तो चाहिए ना - बाप कौन है? पहचान कर फिर कहना चाहिए, बाप का निवास स्थान कहाँ है?
बाप को जानते ही नहीं तो उनके निवास स्थान का पता कैसे पड़े। कह देते वह तो नाम-रूप
से न्यारा है, गोया है नहीं। तो जो चीज़ है नहीं उनके रहने के स्थान का भी कैसे
विचार किया जाए? यह अभी तुम बच्चे जानते हो। बाप ने पहले-पहले तो अपनी पहचान दी है,
फिर रहने का स्थान समझाया जाता है। बाप कहते हैं मैं तुमको इस रथ द्वारा पहचान देने
आया हूँ। मैं तुम सबका बाप हूँ, जिसको परमपिता कहा जाता है। आत्मा को भी कोई नहीं
जानते हैं। बाप का नाम, रूप, देश, काल नहीं है तो बच्चों का फिर कहाँ से आये? बाप
ही नाम-रूप से न्यारा है तो बच्चे फिर कहाँ से आये? बच्चे हैं तो जरूर बाप भी है।
सिद्ध होता है वह नाम-रूप से न्यारा नहीं है। बच्चों का भी नाम-रूप है। भल कितना भी
सूक्ष्म हो। आकाश सूक्ष्म है तो भी नाम तो है ना आकाश। जैसे यह पोलार सूक्ष्म है,
वैसे बाप भी बहुत सूक्ष्म है। बच्चे वर्णन करते हैं वन्डरफुल सितारा है, जो इनमें
प्रवेश करते हैं, जिसको आत्मा कहते हैं। बाप तो रहते ही हैं परमधाम में, वह रहने का
स्थान है। ऊपर नज़र जाती है ना। ऊपर अंगुली से इशारा कर याद करते हैं। तो जरूर जिसको
याद करते हैं, कोई वस्तु होगी। परमपिता परमात्मा कहते तो हैं ना। फिर भी नाम-रूप से
न्यारा कहना - इसे अज्ञान कहा जाता है। बाप को जानना, इसे ज्ञान कहा जाता है। यह भी
तुम समझते हो हम पहले अज्ञानी थे। बाप को भी नहीं जानते थे, अपने को भी नहीं जानते
थे। अब समझते हो हम आत्मा हैं, न कि शरीर। आत्मा को अविनाशी कहा जाता है तो जरूर
कोई चीज़ है ना। अविनाशी कोई नाम नहीं। अविनाशी अर्थात् जो विनाश को नहीं पाती। तो
जरूर कोई वस्तु है। बच्चों को अच्छी रीति समझाया गया है, मीठे-मीठे बच्चों, जिनको
बच्चे-बच्चे कहते हैं वह आत्मायें अविनाशी हैं। यह आत्माओं का बाप परमपिता परमात्मा
बैठ समझाते हैं। यह खेल एक ही बार होता है जबकि बाप आकर बच्चों को अपना परिचय देते
हैं। मैं भी पार्टधारी हूँ। कैसे पार्ट बजाता हूँ, यह भी तुम्हारी बुद्धि में है।
पुरानी अर्थात् पतित आत्मा को नया पावन बनाते हैं तो फिर शरीर भी तुम्हारे वहाँ
गुल-गुल होते हैं। यह तो बुद्धि में है ना।
अभी तुम बाबा-बाबा कहते हो, यह पार्ट चल रहा है ना। आत्मा कहती है बाबा आया हुआ
है - हम बच्चों को शान्तिधाम घर ले जाने के लिए। शान्तिधाम के बाद है ही सुखधाम।
शान्तिधाम के बाद दु:खधाम हो न सके। नई दुनिया में सुख ही कहा जाता है। यह
देवी-देवतायें अगर चैतन्य हों और इनसे कोई पूछे आप कहाँ के रहने वाले हो, तो कहेंगे
हम स्वर्ग के रहने वाले हैं। अब यह जड़ मूर्ति तो नहीं कह सकती। तुम तो कह सकते हो
ना, हम असुल स्वर्ग में रहने वाले देवी-देवतायें थे फिर 84 का चक्र लगाए अब संगम पर
आये हैं। यह ट्रांसफर होने का पुरूषोत्तम संगमयुग है। बच्चे जानते हैं हम बहुत
उत्तम पुरूष बनते हैं। हम हर 5 हज़ार वर्ष बाद सतोप्रधान बनते हैं। सतोप्रधान भी
नम्बरवार कहेंगे। तो यह सारा पार्ट आत्मा को मिला हुआ है। ऐसे नहीं कहेंगे कि
मनुष्य को पार्ट मिला हुआ है। अहम् आत्मा को पार्ट मिला हुआ है। मैं आत्मा 84 जन्म
लेती हूँ। हम आत्मा वारिस हैं, वारिस हमेशा मेल होते हैं, फीमेल नहीं। तो अभी तुम
बच्चों को यह पक्का समझना है हम सब आत्मायें मेल हैं। सबको बेहद के बाप से वर्सा
मिलता है। हद के लौकिक बाप से सिर्फ बच्चों को वर्सा मिलता है, बच्ची को नहीं। ऐसे
भी नहीं, आत्मा सदैव फीमेल बनती है। बाप समझाते हैं तुम आत्मा कभी मेल का, कभी
फीमेल का शरीर लेती हो। इस समय तुम सब मेल्स हो। सब आत्माओं को एक बाप से वर्सा
मिलता है। सब बच्चे ही बच्चे हैं। सबका बाप एक है। बाप भी कहते हैं - हे बच्चों,
तुम सब आत्मायें मेल्स हो। हमारे रूहानी बच्चे हो। फिर पार्ट बजाने लिए मेल-फीमेल
दोनों चाहिए। तब तो मनुष्य सृष्टि की वृद्धि हो। इन बातों को तुम्हारे सिवाए कोई भी
नहीं जानते हैं। भल कहते तो हैं हम सभी ब्रदर्स हैं परन्तु समझते नहीं।
अभी तुम कहते हो बाबा आपसे हमने अनेक बार वर्सा लिया है। आत्मा को यह पक्का हो
जाता है। आत्मा बाप को जरूर याद करती है - ओ बाबा रहम करो। बाबा अब आप आओ, हम आपके
सब बच्चे बनेंगे। देह सहित देह के सब सम्बन्ध छोड़ हम आत्मा आपको ही याद करेंगे।
बाप ने समझाया है अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो। बाप से हम वर्सा कैसे पाते
हैं, हर 5 हज़ार वर्ष बाद हम यह देवता कैसे बनते हैं, यह भी जानना चाहिए ना। स्वर्ग
का वर्सा किससे मिलता है, यह अभी तुम समझते हो। बाप तो स्वर्गवासी नहीं है, बच्चों
को बनाते हैं। खुद तो नर्क में ही आते हैं, तुम बाप को बुलाते भी नर्क में हो, जबकि
तुम तमोप्रधान बनते हो। यह तमोप्रधान दुनिया है ना। सतोप्रधान दुनिया थी, 5 हज़ार
वर्ष पहले इनका राज्य था। इन बातों को, इस पढ़ाई को अभी तुम ही जानते हो। यह है
मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई। मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार... बच्चा बना
और वारिस बना, बाप कहते हैं तुम सब आत्मायें मेरे बच्चे हो। तुमको वर्सा देता हूँ।
तुम भाई-भाई हो, रहने का स्थान मूलवतन अथवा निर्वाणधाम है, जिसको निराकारी दुनिया
भी कहते हैं। सब आत्मायें वहाँ रहती हैं। इस सूर्य चांद से भी उस पार वह तुम्हारा
स्वीट साइलेन्स घर है परन्तु वहाँ बैठ तो नहीं जाना है। बैठकर क्या करेंगे। वह तो
जैसे जड़ अवस्था हो गई। आत्मा जब पार्ट बजाये तब ही चैतन्य कहलाये। है चैतन्य परन्तु
पार्ट न बजाये तो जड़ हुई ना। तुम यहाँ खड़े हो जाओ, हाथ पांव न चलाओ तो जैसे जड़
हुए। वहाँ तो नैचुरल शान्ति रहती है, आत्मायें जैसे कि जड़ हैं। पार्ट कुछ भी नहीं
बजाती। शोभा तो पार्ट में है ना। शान्तिधाम में क्या शोभा होगी? आत्मायें सुख-दु:ख
की भासना से परे रहती हैं। कुछ पार्ट ही नहीं बजाती तो वहाँ रहने से क्या फायदा?
पहले-पहले सुख का पार्ट बजाना है। हर एक को पहले से ही पार्ट मिला हुआ है। कोई कहते
हैं हमको तो मोक्ष चाहिए। बुदबुदा पानी में मिल गया बस, आत्मा जैसेकि है नहीं। कुछ
भी पार्ट न बजावे तो जैसे जड़ कहेंगे। चैतन्य होते हुए जड़ होकर पड़ा रहे तो क्या
फायदा? पार्ट तो सबको बजाना ही है। मुख्य हीरो-हीरोइन का पार्ट कहा जाता है। तुम
बच्चों को हीरो-हीरोइन का टाइटिल मिलता है। आत्मा यहाँ पार्ट बजाती है। पहले सुख का
राज्य करती है फिर रावण के दु:ख के राज्य में जाती है। अब बाप कहते हैं तुम बच्चे
सबको यह पैगाम दो। टीचर बन औरों को समझाओ। जो टीचर नहीं बनते उनका पद कम होगा। टीचर
बनने बिगर किसको आशीर्वाद कैसे मिलेगी? किसको पैसा देंगे तो उनको खुशी होगी ना।
अन्दर में समझते हैं बी.के. हमारे ऊपर बहुत दया करती हैं, जो हमको क्या से क्या बना
देती हैं! यूँ तो महिमा एक बाप की ही करते हैं - वाह बाबा, आप इन बच्चों द्वारा
हमारा कितना कल्याण करते हो! कोई द्वारा तो होता है ना। बाप करनकरावनहार है,
तुम्हारे द्वारा कराते हैं। तुम्हारा कल्याण होता है। तो तुम फिर औरों को कलम लगाते
हो। जैसे-जैसे जो सर्विस करते हैं, उतना ऊंच पद पाते हैं। राजा बनना है तो प्रजा भी
बनानी है। फिर जो अच्छे नम्बर में आते हैं वह भी राजा बनते हैं। माला बनती है ना।
अपने से पूछना चाहिए हम माला में कौन-सा नम्बर बनेंगे? 9 रत्न मुख्य हैं ना। बीच
में है हीरा बनाने वाला। हीरे को बीच में रखते हैं। माला में ऊपर फूल भी है ना।
अन्त में तुमको पता पड़ेगा - कौन-से मुख्य दाने बनते हैं, जो डिनायस्टी में आयेंगे।
पिछाड़ी में तुमको सब साक्षात्कार होगा जरूर। देखेंगे, कैसे यह सब सजायें खाते हैं।
शुरू में दिव्य दृष्टि में तुम सूक्ष्मवतन में देखते थे। यह भी गुप्त है। आत्मा
सजायें कहाँ खाती है - यह भी ड्रामा में पार्ट है। गर्भ जेल में सजायें मिलती हैं।
जेल में धर्मराज को देखते हैं फिर कहते हैं बाहर निकालो। बीमारियाँ आदि होती हैं,
वह भी कर्म का हिसाब है ना। यह सब समझने की बातें हैं। बाप तो जरूर राइट ही
सुनायेंगे ना। अभी तुम राइटियस बनते हो। राइटियस उनको कहा जाता है जो बाप से बहुत
ताकत लेते हैं।
तुम विश्व के मालिक बनते हो ना। कितनी ताकत रहती है। हंगामें आदि की कोई बात नहीं।
ताकत कम है तो कितने हंगामे हो जाते हैं। तुम बच्चों को ताकत मिलती है - आधाकल्प के
लिए। फिर भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। एक जैसी ताकत नहीं पा सकते, न एक जैसा पद
पा सकते हैं। यह भी पहले से नूँध है। ड्रामा में अनादि नूँध है। कोई पिछाड़ी में आते
हैं, एक-दो जन्म लिया और शरीर छोड़ा। जैसे दीवाली पर मच्छर होते हैं, रात को जन्म
लेते हैं, सुबह को मर जाते हैं। वह तो अनगिनत होते हैं। मनुष्य की तो फिर भी गिनती
होती है। पहले-पहले जो आत्मायें आती हैं उनकी आयु कितनी बड़ी होती है! तुम बच्चों
को खुशी होनी चाहिए - हम बहुत बड़ी आयु वाले बनेंगे। तुम फुल पार्ट बजाते हो। बाप
तुमको ही समझाते हैं, तुम कैसे फुल पार्ट बजाते हो। पढ़ाई अनुसार ऊपर से आते हो
पार्ट बजाने। तुम्हारी यह पढ़ाई है ही नई दुनिया के लिए। बाप कहते हैं अनेक बार
तुमको पढ़ाता हूँ। यह पढ़ाई अविनाशी हो जाती है। आधाकल्प तुम प्रालब्ध पाते हो। उस
विनाशी पढ़ाई से सुख भी अल्पकाल लिए मिलता है। अभी कोई बैरिस्टर बनता है फिर कल्प
बाद बैरिस्टर बनेगा। यह भी तुम जानते हो - जो भी सबका पार्ट है, वही पार्ट
कल्प-कल्प बजता रहेगा। देवता हो या शूद्र हो, हर एक का पार्ट वही बजता है, जो
कल्प-कल्प बजता है। उनमें कोई फर्क नहीं हो सकता। हर एक अपना पार्ट बजाते रहते हैं।
यह सारा बना-बनाया खेल है। पूछते हैं पुरूषार्थ बड़ा या प्रालब्ध बड़ी? अब
पुरूषार्थ बिगर तो प्रालब्ध मिलती नहीं। पुरूषार्थ से प्रालब्ध मिलती है ड्रामा
अनुसार। तो सारा बोझ ड्रामा पर आ जाता है। पुरूषार्थ कोई करते हैं, कोई नहीं करते
हैं। आते भी हैं फिर भी पुरूषार्थ नहीं करते तो प्रालब्ध नहीं मिलती। सारी दुनिया
में जो भी एक्ट चलती है, सारा बना-बनाया ड्रामा है। आत्मा में पहले से ही पार्ट
नूँधा हुआ है आदि से अन्त तक। जैसे तुम्हारी आत्मा में 84 का पार्ट है, हीरा भी बनती
है तो कौड़ी जैसा भी बनती है। यह सब बातें तुम अभी सुनते हो। स्कूल में अगर कोई
नापास हो पड़ता है तो कहेंगे यह बुद्धिहीन है। धारणा नहीं होती, इसको कहा जाता है
वैराइटी झाड़, वैराइटी फीचर्स। यह वैरायटी झाड़ का नॉलेज बाप ही समझाते हैं। कल्प
वृक्ष पर भी समझाते हैं। बड़ के झाड़ का मिसाल भी इस पर है। उनकी शाखायें बहुत फैलती
हैं।
बच्चे समझते हैं हमारी आत्मा अविनाशी है, शरीर तो विनाश हो जायेगा। आत्मा ही
धारणा करती है, आत्मा 84 जन्म लेती है, शरीर तो बदलते जाते हैं। आत्मा वही है, आत्मा
ही भिन्न-भिन्न शरीर लेकर पार्ट बजाती है। यह नई बात है ना। तुम बच्चों को भी अभी
यह समझ मिली है। कल्प पहले भी ऐसे समझा था। बाप आते भी हैं भारत में। तुम सबको
पैगाम देते रहते हो, कोई भी ऐसा नहीं रहेगा जिसको पैगाम न मिले। पैगाम सुनना सभी का
हक है। फिर बाप से वर्सा भी लेंगे। कुछ तो सुनेंगे ना फिर भी बाप के बच्चे हैं ना।
बाप समझाते हैं - मैं तुम आत्माओं का बाप हूँ। मेरे द्वारा इस रचना के
आदि-मध्य-अन्त को जानने से तुम यह पद पाते हो। बाकी सब मुक्ति में चले जाते हैं।
बाप तो सबकी सद्गति करते हैं। गाते हैं अहो बाबा, तेरी लीला... क्या लीला? कैसी लीला?
यह पुरानी दुनिया को बदलने की लीला है। मालूम होना चाहिए ना। मनुष्य ही जानेंगे ना।
बाप तुम बच्चों को ही आकर सब बातें समझाते हैं। बाप नॉलेजफुल है। तुमको भी नॉलेजफुल
बनाते हैं। नम्बरवार तुम बनते हो। स्कॉलरशिप लेने वाले नॉलेजफुल कहलायेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सदा इसी स्मृति में रहना है कि हम आत्मा मेल हैं, हमें बाप से पूरा
वर्सा लेना है। मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है।
2) सारी दुनिया में जो भी एक्ट चलती है, यह सब बना-बनाया ड्रामा है, इसमें
पुरूषार्थ और प्रालब्ध दोनों की नूँध है। पुरूषार्थ के बिना प्रालब्ध नहीं मिल सकती,
इस बात को अच्छी तरह समझना है।