ओम् शान्ति।
ओम् शान्ति का अर्थ तो बच्चों को समझाया हुआ है। शिवबाबा भी ओम् शान्ति कह सकते हैं
तो सालिग्राम बच्चे भी कह सकते हैं। आत्मा कहती है ओम् शान्ति। सन ऑफ साइलेन्स फादर।
शान्ति के लिए जंगल आदि में जाकर कोई उपाय नहीं किया जाता। आत्मा तो है ही साइलेन्स।
फिर उपाय क्या करना है? यह बाप बैठ समझाते हैं। उस बाप को ही कहते हैं कि वहाँ ले
चल जहाँ सुख चैन पावें। चैन अथवा सुख सभी मनुष्य चाहते हैं। परन्तु सुख और शान्ति
के पहले तो चाहिए पवित्रता। पवित्र को पावन, अपवित्र को पतित कहा जाता है। पतित
दुनिया वाले पुकारते रहते हैं कि आकर हमको पावन दुनिया में ले चलो। वह है ही पतित
दुनिया से लिबरेट कर पावन दुनिया में ले चलने वाला। सतयुग में है पवित्रता, कलियुग
में है अपवित्रता। वह वाइसलेस वर्ल्ड, यह विशश वर्ल्ड। यह तो बच्चे जानते हैं दुनिया
वृद्धि को पाती रहती है। सतयुग वाइसलेस वर्ल्ड है तो जरूर मनुष्य थोड़े होंगे। वह
थोड़े कौन होंगे? बरोबर सतयुग में देवी-देवताओं का ही राज्य है, उसको ही चैन की
दुनिया अथवा सुखधाम कहा जाता है। यह है दु:खधाम। दु:खधाम को बदल सुखधाम बनाने वाला
एक ही परमपिता परमात्मा है। सुख का वर्सा जरूर बाप ही देंगे। अब वह बाप कहते हैं
दु:खधाम को भूलो, शान्तिधाम और सुखधाम को याद करो इसको ही मन्मनाभव कहा जाता है।
बाप आकर बच्चों को सुखधाम का साक्षात्कार कराते हैं। दु:खधाम का विनाश कराए
शान्तिधाम में ले जाते हैं। इस चक्र को समझना है। 84 जन्म लेने पड़ते हैं। जो पहले
सुखधाम में आते हैं, उन्हों के हैं 84 जन्म सिर्फ इतनी बातें याद करने से भी बच्चे
सुखधाम के मालिक बन सकते हैं।
बाप कहते हैं बच्चे, शान्तिधाम को याद करो और फिर वर्से को अर्थात् सुखधाम को
याद करो। पहले-पहले तुम शान्तिधाम में जाते हो तो अपने को शान्तिधाम, ब्रह्माण्ड का
मालिक समझो। चलते-फिरते अपने को वहाँ के वासी समझेंगे तो यह दुनिया भूलती जायेगी।
सतयुग है सुखधाम परन्तु सभी तो सतयुग में आ नहीं सकते। यह बातें समझेंगे ही वह जो
देवताओं के पुजारी हैं। यह है सच्ची कमाई, जो सच्चा बाप सिखलाते हैं। बाकी सभी हैं
झूठी कमाईयाँ। अविनाशी ज्ञान रत्नों की कमाई ही सच्ची कमाई कही जाती है, बाकी विनाशी
धन-दौलत वह है झूठी कमाई। द्वापर से लेकर वह झूठी कमाई करते आये हैं। इस अविनाशी
सच्ची कमाई की प्रालब्ध सतयुग से शुरू हो त्रेता में पूरी होती है अर्थात् आधाकल्प
भोगते हो। फिर बाद में झूठी कमाई शुरू होती है, जिससे अल्पकाल क्षण भंगुर सुख मिलता
है। यह अविनाशी ज्ञान रत्न, ज्ञान सागर ही देते हैं। सच्ची कमाई सच्चा बाप कराते
हैं। भारत सचखण्ड था, भारत ही अब झूठखण्ड बना है। और खण्डों को सचखण्ड, झूठ खण्ड नहीं
कहा जाता है। सच-खण्ड बनाने वाला बादशाह ट्रूथ वह है। सच्चा है एक गॉड फादर, बाकी
हैं झूठे फादर। सतयुग में भी सच्चे फादर मिलते हैं क्योंकि वहाँ झूठ पाप होता नहीं।
यह है ही पाप आत्माओं की दुनिया, वह है पुण्य आत्माओं की दुनिया। तो अब इस सच्ची
कमाई के लिए कितना पुरुषार्थ करना चाहिए। जिन्होंने कल्प पहले कमाई की है, वही
करेंगे। पहले खुद सच्ची कमाई कर फिर पियर और ससुरघर को यही सच्ची कमाई करानी है।
चैरिटी बिगेन्स एट होम।
सर्वव्यापी के ज्ञान वाले भक्ति कर नहीं सकते। जब सभी भगवान के रूप हैं फिर भक्ति
किसकी करते हैं? तो इसी दुबन से निकालने में मेहनत करनी पड़ती है। संन्यासी लोग
चैरिटी बिगेन्स एट होम क्या करेंगे? पहले तो वह घरबार का समाचार सुनाते ही नहीं
हैं। बोलो, क्यों नहीं सुनाते हो? मालूम तो पड़ना चाहिए ना। बतलाने में क्या है,
फलाने घर के थे फिर संन्यास धारण किया! तुमसे पूछें तो तुम झट बतला सकते हो।
संन्यासियों के फालोअर्स तो बहुत हैं। वह फिर अगर बैठ कहें कि भगवान एक है तो सभी
उनसे पूछेंगे तुमको किसने यह ज्ञान सुनाया? कहें बी.के. ने, तो सारा उनका धंधा ही
खलास हो जाए। ऐसे कौन अपनी इज्ज़त गँवायेगा? फिर कोई खाना भी न दे इसलिए संन्यासियों
के लिए तो बहुत मुश्किल है। पहले तो अपने मित्र-सम्बन्धियों आदि को ज्ञान दे सच्ची
कमाई करानी पड़े जिससे वे 21 जन्म सुख पावें। बात है बहुत सहज। परन्तु ड्रामा में
इतने शास्त्र मन्दिर आदि बनने की भी नूँध है।
पतित दुनिया में रहने वाले कहते हैं अब पावन दुनिया में ले चलो। सतयुग को 5000
वर्ष हुए। उन्होंने तो कलियुग की आयु ही लाखों वर्ष कह दी है तो फिर मनुष्य कैसे
समझें कि सुखधाम कहाँ है? कब होगा? वह तो कहते हैं महाप्रलय होती है तब फिर सतयुग
होता है। पहले-पहले श्रीकृष्ण अंगूठा चूसता सागर में पीपल के पत्ते पर आता है। अब
कहाँ की बात कहाँ ले गये हैं! अब बाप कहते हैं ब्रह्मा द्वारा मैं सभी
वेदों-शास्त्रों का सार सुनाता हूँ इसलिए विष्णु की नाभी-कमल से ब्रह्मा दिखाते हैं
और फिर हाथ में शास्त्र दे दिये हैं। अब ब्रह्मा तो जरूर यहाँ होगा। सूक्ष्मवतन में
तो शास्त्र नहीं होंगे ना। ब्रह्मा यहाँ होना चाहिए। विष्णु लक्ष्मी-नारायण के रूप
भी तो यहाँ होते हैं। ब्रह्मा ही सो विष्णु बनता है फिर विष्णु सो ब्रह्मा बनता है।
अब ब्रह्मा से विष्णु निक-लता वा विष्णु से ब्रह्मा निकलता? यह सब समझने की बातें
हैं। परन्तु इन बातों को समझेंगे वह जो अच्छी रीति पढ़ेंगे। बाप कहते हैं जब तक
तुम्हारा शरीर छूटे तब तक समझते ही रहेंगे। तुम बिल्कुल ही 100 परसेन्ट बेसमझ,
कंगाल बन पड़े हो। तुम ही समझदार देवी-देवता थे, अब फिर से तुम देवी-देवता बन रहे
हो। मनुष्य तो बना न सकें। तुम सो देवता थे फिर 84 जन्म लेते-लेते एकदम कलाहीन हो
गये हो। तुम सुखधाम में बहुत चैन में थे, अब बेचैन हो। तुम 84 जन्मों का हिसाब बता
सकते हो। इस्लामी, बौद्धी, सिक्ख, ईसाई मठ-पंथ सब कितना जन्म लेंगे? यह हिसाब
निकालना तो सहज है। स्वर्ग के मालिक तो भारत-वासी ही बनेंगे। सैपलिंग लगती है ना।
यह है समझानी। खुद समझ जाए तो फिर पहले-पहले अपने मात-पिता, बहन-भाइयों को ज्ञान
देना पड़े। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान रहना है फिर चैरिटी बिगेन्स एट
होम। पियर घर, ससुरघर को नॉलेज सुनानी पड़े। धन्धे में भी पहले अपने भाइयों को ही
भागीदार बनाते हैं। यहाँ भी ऐसे है। गायन भी है कन्या वह जो पियर और ससुर घर का
उद्धार करे। अपवित्र उद्धार कर नहीं सकते। तब कौन-सी कन्या? यह ब्रह्मा की कन्या,
ब्रह्माकुमारी है ना। यहाँ अधर कन्या, कुँवारी कन्या का मन्दिर भी बना हुआ है ना।
यहाँ तुम्हारे यादगार बने हुए हैं। हम फिर से आये हैं भारत को स्वर्ग बनाने के लिए।
यह देलवाड़ा मन्दिर बिल्कुल एक्यूरेट है, ऊपर में स्वर्ग दिखाया है। स्वर्ग है तो
यहाँ ही। राजयोग की तपस्या भी यहाँ ही होती है। जिन्हों का मन्दिर है उन्हों को यह
जानना तो चाहिए ना! अब अन्दर जगतपिता जगत अम्बा, आदि देव, आदि देवी बैठे हैं। अच्छा,
आदि देव किसका बच्चा है? शिवबाबा का। अधर कुमारी, कुँवारी कन्या सब राजयोग में बैठे
हैं। बाप कहते हैं मन्मनाभव, तो तुम बैकुण्ठ के मालिक बनोगे। मुक्ति, जीवनमुक्तिधाम
को याद करो। तुम्हारा यह संन्यास है, जैनी लोगों का संन्यास कितना डिफीकल्ट है। बाल
आदि निकालने की कितनी कड़ी रस्म है। यहाँ तो है ही सहज राजयोग। यह है भी प्रवृत्ति
मार्ग का। यह ड्रामा में नूँध है। कोई जैन मुनी ने बैठ अपना नया धर्म स्थापन किया
परन्तु उसको आदि सनातन देवी-देवता धर्म तो नहीं कहेंगे ना। वह तो अब प्राय:लोप है।
कोई ने जैन धर्म चलाया और चल पड़ा। यह भी ड्रामा में है। आदि देव को पिता और जगत
अम्बा को माता कहेंगे। यह तो सब जानते हैं कि आदि देव ब्रह्मा है। आदम-बीबी, एडम-ईव
भी कहते हैं। क्रिश्चियन लोगों को थोड़ेही पता है कि यह एडम ईव अब तपस्या कर रहे
हैं। मनुष्य सृष्टि के सिजरे के यह हेड हैं। यह राज़ भी बाप बैठ समझाते हैं। इतने
मन्दिर शिव के वा लक्ष्मी-नारायण के बने हैं तो उनकी बायोग्राफी जानना चाहिए ना! यह
भी ज्ञान सागर बाप ही बैठ समझाते हैं। परमपिता परमात्मा को ही नॉलेजफुल ज्ञान का
सागर, आनन्द का सागर कहा जाता है। यह परमात्मा की महिमा कोई साधू-सन्त आदि नहीं
जानते। वह तो कह देते परमात्मा सर्वव्यापी है फिर महिमा किसकी करें? परमात्मा को न
जानने के कारण ही फिर अपने को शिवोहम् कह देते हैं। नहीं तो परमात्मा की महिमा कितनी
बड़ी है। वह तो मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। मुसलमान लोग भी कहते हैं हमको खुदा ने
पैदा किया, तो हम रचना ठहरे। रचना, रचना को वर्सा नहीं दे सकते। क्रियेशन को
क्रियेटर से वर्सा मिलता है, इस बात को कोई भी नहीं समझते हैं। वह बीजरूप सत है,
चैतन्य है, सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का उनको ज्ञान है। सिवाए बीज के आदि-मध्य-अन्त
का ज्ञान कोई मनुष्यमात्र में हो नहीं सकता। बीज चैतन्य है तो जरूर नॉलेज उनमें ही
होगी। वही आकर तुमको सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज देते हैं। यह भी बोर्ड
लगा देना चाहिए कि इस पा को जानने से तुम सतयुग के चक्रवर्ती राजा अथवा स्वर्ग के
राजा बन जायेंगे। कितनी सहज बात है। बाप कहते हैं जब तक जीना है, मुझे याद करना है।
मैं खुद तुमको यह वशीकरण मंत्र देता हूँ। अब तुमको याद करना है बाप को। याद से ही
विकर्म विनाश होंगे। यह स्वदर्शन चक्र फिरता रहे तो माया का सिर कट जायेगा। हम
तुम्हारी आत्मा को पवित्र बनाकर ले जायेंगे फिर तुम सतोप्रधान शरीर लेंगे। वहाँ
विकार होता नहीं। कहते हैं विकार बिगर सृष्टि कैसे चलेगी? बोलो, तुम शायद देवताओं
के पुजारी नहीं हो। लक्ष्मी-नारायण की तो महिमा गाते हैं सम्पूर्ण निर्विकारी।
जगदम्बा, जगतपिता निर्विकारी हैं, राजयोग की तपस्या कर पतित से पावन, स्वर्ग के
मालिक बने हैं। तपस्या करते ही हैं पुण्य आत्मा बनने के लिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) इस पुरानी दुनिया को बुद्धि से भुलाने के लिए चलते-फिरते अपने को
शान्तिधाम का वासी समझना है। शान्तिधाम और सुखधाम को याद कर सच्ची कमाई करनी है और
दूसरों को भी करानी है।
2) राजयोग की तपस्या कर स्वयं को पुण्य आत्मा बनाना है। माया का सिर काटने के
लिए स्वदर्शन चक्र सदा फिरता रहे।