ओम् शान्ति।
बाप बैठ समझाते हैं, साथ में यह दादा भी समझते हैं क्योंकि बाप इन दादा द्वारा बैठ
समझाते हैं। जैसे तुम समझते हो, वैसे यह दादा भी समझते हैं। दादा को भगवान नहीं कहा
जाता, यह है भगवानुवाच। बाप क्या समझाते हैं? देही-अभिमानी भव क्योंकि अपने को आत्मा
समझने बिगर परमपिता परमात्मा को याद कर न सकें। इस समय तो सभी आत्मायें पतित हैं।
पतित को ही मनुष्य कहा जाता है, पावन को देवता कहा जाता है। यह बहुत सहज समझने और
समझाने की बातें हैं। मनुष्य ही पुकारते हैं - हे पतितों को पावन बनाने वाले आओ।
देवी-देवतायें ऐसे कभी नहीं कहेंगे। पतित-पावन बाप पतितों के बुलावे पर आते हैं।
आत्माओं को पावन बनाकर फिर नई पावन दुनिया भी स्थापन करते हैं। आत्मा ही बाप को
पुकारती है। शरीर तो नहीं पुकारेगा। पारलौकिक बाप जो सदा पावन है, उसे ही सब याद
करते हैं। यह है पुरानी दुनिया। बाप नई पावन दुनिया बनाते हैं। कई तो ऐसे भी हैं जो
कहते हैं हमको तो यहाँ ही अपार सुख हैं, धन माल बहुत है। वह समझते हैं हमारे लिए
स्वर्ग यही हैं। वह तुम्हारी बातें कैसे मानेंगे? कलियुगी दुनिया को स्वर्ग समझना -
यह भी बेसमझी है। कितनी जड़जड़ीभूत अवस्था हो गई है। तो भी मनुष्य कहते हैं हम तो
स्वर्ग में बैठे हैं। बच्चे नहीं समझाते हैं तो बाप कहेंगे ना - तुम क्या
पत्थरबुद्धि हो? दूसरे को नहीं समझा सकते हो? जब खुद पारसबुद्धि बनें तब तो दूसरों
को भी बनावें। पुरूषार्थ अच्छा करना चाहिए, इसमें लज्जा की बात नहीं। परन्तु मनुष्यों
की बुद्धि में आधाकल्प की जो उल्टी मतें भरी हुई हैं वह कोई जल्दी भूलते नहीं। जब
तक बाप को यथार्थ रीति नहीं पहचाना है तब तक वह ताकत आ नहीं सकती। बाप कहते हैं इन
वेदों-शास्त्रों आदि से मनुष्य कुछ भी सुधरते नहीं हैं। दिन-प्रतिदिन और ही बिगड़ते
आये हैं। सतोप्रधान से तमोप्रधान ही बने हैं। यह किसकी भी बुद्धि में नहीं है कि हम
ही सतोप्रधान देवी-देवता थे, कैसे नीचे गिरे हैं। किसको ज़रा भी पता नहीं है और फिर
84 जन्म के बदले 84 लाख जन्म कह दिया है तो फिर पता भी कैसे पड़े। बाप बिगर ज्ञान
की रोशनी देने वाला कोई नहीं। सभी एक-दो के पिछाड़ी दर-दर धक्के खाते रहते हैं। नीचे
गिरते-गिरते पट पड़ गये हैं, सब ताकत खत्म हो गई है। बुद्धि में भी ताकत नहीं जो
बाप को यथार्थ जान सकें। बाप ही आकर सबकी बुद्धि का ताला खोलते हैं। तो कितने
रिफ्रेश होते हैं। बाप के पास बच्चे रिफ्रेश होने आते हैं। घर में विश्राम मिलता है
ना। बाप के मिलने से भक्ति मार्ग की सब थकान ही दूर हो जाती है। सतयुग को भी
विश्रामपुरी कहा जाता है। वहाँ तुम्हें कितना विश्राम मिलता है। कोई अप्राप्त वस्तु
नहीं जिसके लिए परिश्रम करना पड़े। यहाँ रिफ्रेश बाप भी करते हैं तो यह दादा भी करते
हैं। शिवबाबा की गोद में आते कितना विश्राम मिलता है। विश्राम माना ही शान्त।
मनुष्य भी थककर विश्रामी हो जाते हैं। कोई कहाँ, कोई कहाँ विश्राम के लिए जाते हैं
ना। लेकिन उस विश्राम में रिफ्रेशमेंट नहीं। यहाँ तो बाप तुम्हें कितना ज्ञान
सुनाकर रिफ्रेश करते हैं। बाप की याद से भी कितने रिफ्रेश होते और तमोप्रधान से
सतोप्रधान भी बनते जाते हो। सतोप्रधान बनने के लिए यहाँ बाप के पास आते हो। बाप कहते
हैं मीठे-मीठे बच्चों, बाप को याद करो। बाप ने समझाया है कि सारे सृष्टि का चक्र
कैसे फिरता है, सर्व आत्माओं को विश्राम कैसे और कहाँ मिलता है। तुम बच्चों का
फ़र्ज है - सबको बाप का पैगाम देना। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो इस वर्से के तुम
मालिक बन जायेंगे। बाप इस संगमयुग पर नई स्वर्ग की दुनिया रचते हैं। जहाँ तुम जाकर
मालिक बनते हो। फिर द्वापर में माया रावण के द्वारा तुम्हें श्राप मिलता है, तो
पवित्रता, सुख, शान्ति, धन आदि सब खत्म हो जाता है। कैसे धीरे-धीरे खत्म होता है वह
भी बाप ने समझाया है। दु:खधाम में कोई विश्राम थोड़ेही होता है। सुखधाम में विश्राम
ही विश्राम है। मनुष्यों को भक्ति कितना थकाती है। जन्म-जन्मान्तर भक्ति से कितने
थक जाते हैं। कैसे एकदम कंगाल बन गये हो, यह सारा राज़ बाप बैठ समझाते हैं। नये-नये
आते हैं तो उन्हें कितना समझाना होता है। हर एक बात पर मनुष्य कितना सोचते हैं।
समझते हैं कहाँ जादू न हो। अरे, तुम ही कहते हो भगवान जादूगर है। तो बाप कहते हैं
हाँ, मैं बरोबर जादूगर हूँ। परन्तु वह जादू नहीं, जिससे मनुष्य भेड़-बकरी बन जायें।
यह बुद्धि से समझा जाता है, यह तो जैसे रिढ़ मिसल है। गायन भी तो है सुरमण्डल के
साज़ से..... इस समय तो जैसे सभी मनुष्य रिढ़-बकरियाँ हैं। यह बातें सारी यहाँ की
हैं। इस समय का ही गायन है। कल्प के पिछाड़ी को भी मनुष्य समझ नहीं सकते। चण्डिका
का कितना बड़ा मेला लगता है। वह कौन थी? कहते हैं वह एक देवी थी। ऐसा नाम तो वहाँ
कोई होता ही नहीं। सतयुग में कितने अच्छे सुन्दर नाम होते हैं। सतयुगी सम्प्रदाय को
श्रेष्ठाचारी कहा जाता है। कलियुगी सम्प्रदाय को तो कितना छी-छी टाइटल देते हैं। अभी
के मनुष्यों को श्रेष्ठ नहीं कहेंगे। देवताओं को श्रेष्ठ कहा जाता है। गायन भी है
मनुष्य से देवता किये, करत न लागी वार। मनुष्य से देवता, देवता से मनुष्य कैसे बनते
हैं, यह राज़ बाप ने तुम्हें समझाया है। उनको डीटी वर्ल्ड, इनको ह्युमन वर्ल्ड कहा
जाता है। दिन को सोझरा, रात को अन्धियारा कहा जाता है। ज्ञान है सोझरा, भक्ति है
अन्धियारा। अज्ञान नींद कहा जाता है ना। तुम भी समझते हो कि आगे हम कुछ भी नहीं
जानते थे तो नेती-नेती कहते थे अर्थात् हम नहीं जानते। अभी तुम समझते हो - हम भी तो
पहले नास्तिक थे। बेहद के बाप को ही नहीं जानते थे। वह है असली अविनाशी बाबा। उसे
सर्व आत्माओं का बाप कहा जाता है। तुम बच्चे जानते हो - अभी हम उस बेहद के बाप के
बने हैं। बाप बच्चों को गुप्त ज्ञान देते हैं। यह ज्ञान मनुष्यों के पास कहाँ मिल न
सके। आत्मा भी गुप्त है, गुप्त ज्ञान आत्मा धारण करती है। आत्मा ही मुख द्वारा
ज्ञान सुनाती है। आत्मा ही गुप्त बाप को गुप्त याद करती है।
बाप कहते हैं बच्चों, देह-अभिमानी नहीं बनो। देह-अभिमान से आत्मा की ताकत खत्म
होती है। आत्म-अभिमानी बनने से आत्मा में ताकत जमा होती है। बाप कहते हैं ड्रामा के
राज़ को अच्छी रीति समझकर चलना है। इस अविनाशी ड्रामा के राज़ को जो ठीक रीति जानते
हैं, वह सदा हर्षित रहते हैं। इस समय मनुष्य ऊपर जाने की कितनी कोशिश करते हैं,
समझते हैं ऊपर में दुनिया है। शास्त्रों में सुन रखा है ऊपर में दुनिया है तो वहाँ
जाकर देखें। वहाँ दुनिया बसाने की कोशिश करते हैं। दुनिया तो बहुत बसाई है ना। भारत
में सिर्फ एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म था और कोई खण्ड आदि नहीं था। फिर कितना
बसाया है। तुम विचार करो भारत के कितने थोड़े टुकड़े में देवतायें होते हैं। जमुना
के किनारे पर ही परिस्तान था जहाँ यह लक्ष्मी-नारायण राज्य करते थे। कितनी सुन्दर
शोभायमान, सतोप्रधान दुनिया थी। नैचुरल ब्युटी थी। आत्मा में ही सारा चमत्कार रहता
है। बच्चों को दिखाया था श्रीकृष्ण का जन्म कैसे होता है। सारे कमरे में जैसे रोशनी
हो जाती है। तो बाप बैठ कर बच्चों को समझाते हैं, अभी तुम परिस्तान में जाने के लिए
पुरूषार्थ कर रहे हो। बाकी ऐसे नहीं - तालाब में डुबकी लगाने से परियाँ बन जायेंगे।
यह सभी झूठे नाम रख दिये हैं। लाखों वर्ष कह देने से बिल्कुल ही सब-कुछ भूल गये
हैं। अभी तुम अभुल बन रहे हो नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। विचार किया जाता है - इतनी
छोटी-सी आत्मा कितना बड़ा पार्ट शरीर से बजाती है, फिर शरीर से आत्मा निकल जाती है
तो शरीर का देखो क्या हाल हो जाता है। आत्मा ही पार्ट बजाती है। कितनी बड़ी विचार
की बात है। सारी दुनिया के एक्टर्स (आत्मायें) अपनी एक्ट अनुसार ही पार्ट बजाते
हैं। कुछ भी फर्क नहीं पड़ सकता। हूबहू सारी एक्ट फिर से रिपीट हो रही है। इसमें
संशय कर नहीं सकते। हर एक की बुद्धि में फर्क पड़ सकता है क्योंकि आत्मा तो
मन-बुद्धि सहित है ना। बच्चों को मालूम है कि हमको स्कॉलरशिप लेनी है तो दिल अन्दर
खुशी होती है। यहाँ भी अन्दर आने से ही एम ऑब्जेक्ट सामने देखते हैं तो खुशी तो
जरूर होगी। अभी तुम जानते हो हम यह (देवी-देवता) बनने के लिए यहाँ पढ़ते हैं। ऐसा
कोई स्कूल नहीं जहाँ दूसरे जन्म की एम ऑब्जेक्ट को देख सकें। तुम देखते हो कि हम
लक्ष्मी-नारायण जैसे बन रहे हैं। अभी हम संगमयुग पर हैं जो भविष्य में इन जैसा
लक्ष्मी-नारायण बनने की पढ़ाई पढ़ रहे हैं। कितनी गुप्त पढ़ाई है। एम ऑब्जेक्ट को
देख कितनी खुशी होनी चाहिए। खुशी का पारावार नहीं। स्कूल वा पाठशाला हो तो ऐसी। है
कितनी गुप्त, परन्तु जबरदस्त पाठशाला है। जितनी बड़ी पढ़ाई उतनी ही फैसिलिटीज़ रहती
हैं। परन्तु यहाँ तुम पट पर बैठ पढ़ते हो। आत्मा को पढ़ना होता है फिर चाहे पट पर
बैठे, चाहे तख्त पर, परन्तु खुशी से खग्गियां मारते रहो कि इस पढ़ाई को पास करने
बाद जाकर यह बनेंगे। अभी तुम बच्चों को बाप ने आकर अपना परिचय दिया है कि मैं इनमें
कैसे प्रवेश कर तुम्हें पढ़ाता हूँ। बाप देवताओं को तो नहीं पढ़ायेंगे। देवताओं को
यह ज्ञान कहाँ। मनुष्य तो मूँझते हैं क्या देवताओं में ज्ञान नहीं है। देवतायें ही
इस ज्ञान से देवता बनते हैं। देवता बनने के बाद फिर ज्ञान की क्या दरकार है। लौकिक
पढ़ाई से बैरिस्टर बन गया, कमाई में लग गया फिर बैरिस्टरी पढ़ेंगे क्या? अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अविनाशी ड्रामा के राज़ को यथार्थ समझ हर्षित रहना है। इस ड्रामा में
हर एक एक्टर का पार्ट अपना-अपना है, जो हूबहू बजा रहे हैं।
2) एम ऑब्जेक्ट को सामने रख खुशी में खग्गियां मारनी है। बुद्धि में रहे हम इस
पढ़ाई से ऐसा लक्ष्मी-नारायण बनेंगे।