24-06-2024        प्रात:मुरली    ओम् शान्ति     "बापदादा"        मधुबन


“पवित्रता रूपी गुण को धारण कर डायरेक्टर के डायरेक्शन्स पर चलते रहो तो देवताई किंगडम में आ जायेंगे''

(प्रात:क्लास में सुनाने के लिए जगदम्बा माँ के मधुर महावाक्य)

ओम् शान्ति। इस दुनिया को नाटक भी कहते हैं, ड्रामा कहो, नाटक कहो, खेल कहो बात एक ही है। नाटक जो होता है वह एक ही कहानी होती है। उसमें बहुत बायप्लॉट्स बीच में दिखाते हैं लेकिन स्टोरी एक ही होती है। इसी तरह से यह बेहद वर्ल्ड ड्रामा है, इसको नाटक भी कहा जाता है, जिसमें हम सब एक्टर्स हैं। अभी हम एक्टर्स हैं तो एक्टर्स को नाटक का पूरा पता होना चाहिए कि किस स्टोरी पर यह शुरू होता है, हमारा यह पार्ट कहाँ से शुरू हुआ और कहाँ तक पूरा होता है, फिर उसमें समय प्रति समय किस किस एक्टर्स का कैसे कैसे पार्ट होता है और उसका डायरेक्टर, क्रियेटर कौन है और इस नाटक में हीरो हीरोइन पार्ट किसका है, इन सब बातों का नॉलेज होना चाहिए। खाली नाटक कहने से तो काम नहीं चलेगा। नाटक है तो नाटक के हम एक्टर्स भी हैं। अगर कोई ड्रामा का एक्टर है और हम उनसे पूछें कि इसकी क्या स्टोरी है, यह कहाँ से शुरू होता है, कहाँ पूरा होता है! अगर वो कहे हमें मालूम नहीं है तो इसको क्या कहा जायेगा? कहेंगे इसको इतना भी पता नहीं है, कहता हैं मैं एक्टर हूँ! एक्टर को तो सब बातों की जानकारी होनी चाहिए ना। नाटक शुरू है तो उसका अन्त भी जरुर होगा। ऐसे नहीं शुरू हुआ है तो चलता ही चलेगा। तो इन सब चीज़ों को समझने का है। इस बेहद के नाटक का जो रचयिता है वो जानता है कि किस तरह से इस नाटक की शुरुआत हुई, इसमें मुख्य मुख्य एक्टर्स कौन हैं और सभी एक्टर्स में हीरो एण्ड हीरोइन का पार्ट किसका है, यह सब बातें बाप समझा रहे हैं।

यह सब नॉलेज जो रोज़ क्लास में आते और सुनते हैं वो समझते हैं, उन्हों को मालूम है कि इसका पहला डायरेक्टर और क्रियेटर कौन है? क्रियेटर कहेंगे सुप्रीम सोल (परमपिता परमात्मा) को, लेकिन वह भी एक्टर है, उनकी एक्टिंग कौन-सी है? डायरेक्टरपन की। वह एक ही बार आकर एक्टर बनता है। अभी डायरेक्टर बन करके एक्ट कर रहा है। वह कहते हैं इस नाटक की शुरूआत मैं करता हूँ, कैसे? जो प्यूरीफाइड सतयुगी दुनिया है, जिसको नई दुनिया कहते हैं, वह न्यू वर्ल्ड मैं क्रियेट करता हूँ। अभी आप सब जो भी पवित्रता को धारण करके डायरेक्टर के डायरेक्शन्स पर चल रहे हो, वह सभी एक्टर्स अभी प्यूरीफाईड बन रहे हैं, फिर इन्हीं एक्टर्स के द्वारा अनेक जन्मों का चक्र चलना है। यह बाप ही समझाते हैं कि अभी पवित्र हुए मनुष्य, दूसरे जन्म में देवताई किंगडम में जायेंगे। वह किंगडम दो युग सूर्यवंशी चन्द्रवंशी रूप में चलती है फिर वह सूर्यवंशी चन्द्रवंशी एक्टर्स का पार्ट जब पूरा होता है तब फिर थोड़ा नीचे गिरते हैं अथवा वाम मार्ग में आते हैं। फिर दूसरे धर्मों का टर्न आता है इब्राहम, बुद्ध, फिर क्रिश्चियन यह सभी धर्म स्थापक नम्बरवार आ करके अपना अपना धर्म स्थापन करते हैं।

तो देखो, नाटक की स्टोरी कहाँ से शुरू हुई, कहाँ पूरी होती है। उसके बीच में यह दूसरे दूसरे बायप्लॉट्स कैसे चलते हैं, यह सभी वृत्तान्त बैठ करके समझाते हैं। अभी यह नाटक पूरा होने पर है, वह नाटक तो तीन घण्टे में पूरा होता है, इसको 5 हजार वर्ष लगता है। बाकी उसमें थोड़े वर्ष हैं, बस अभी उसकी तैयारी है। अभी यह नाटक पूरा होकरके फिर रिपीट होगा। तो यह सारा वृतान्त बुद्धि में होना चाहिए, इसी को ज्ञान कहा जाता है। अभी देखो बाप आ करके नया भारत, नई दुनिया बना रहे हैं। भारत जब नया था तो इतनी बड़ी दुनिया नहीं थी। आज पुराना भारत है तो दुनिया भी पुरानी है। बाप आ करके भारत जो अविनाशी खण्ड है, प्राचीन अपना देश है। अभी देश कहते हैं क्योंकि दूसरे देशों में यह भी एक टुकड़ा हो गया है। परन्तु वास्तव में सारी वर्ल्ड सारी पृथ्वी पर एक भारत का राज्य था, जिसको कहा जाता था प्राचीन भारत। उस समय का भारत गाया हुआ है, सोने की चिड़िया। सारी पृथ्वी पर केवल भारत का ही कन्ट्रोल था, एक राज्य था, एक धर्म था। उस टाइम पूरा सुख था, अभी कहाँ है इसलिये बाप कहते हैं इसका डिस्ट्रक्शन करके फिर एक राज्य, एक धर्म और प्राचीन वही नया भारत नई दुनिया बनाता हूँ। समझा। उस दुनिया में कोई दु:ख नहीं, कोई रोग नहीं, कभी कोई अकाले मृत्यु नहीं। तो ऐसी लाइफ पाने के लिए पुरुषार्थ करो। मुफ्त में थोड़ेही मिलेगी। कुछ तो मेहनत करनी पड़ेगी। बीज बोयेंगे तो पायेंगे। बोयेंगे नहीं तो पायेंगे कैसे? तो यह कर्मक्षेत्र है, इस क्षेत्र में कर्मों से बोना है। जो कर्म हम बोते हैं वो फल पाते हैं। बाप कर्मों का बीज बोने का सिखला रहे हैं। जैसे खेती करना सिखलाते हैं ना, कैसे बीज़ डालो, कैसे उसकी सम्भाल करो, उसकी भी ट्रेनिंग देते हैं। तो बाप आ करके हमारे को कर्म के खेत के लिये, कर्मों को कैसे बोयें, उसकी ट्रेनिंग दे रहे हैं कि अपने कर्मों को ऊंच बनाओ, अच्छे बीज डालो तो फल अच्छा मिलेगा। जब कर्म अच्छा होगा फिर जो बोयेंगे उसका फल अच्छा मिलेगा। अगर कर्म रूपी बीज़ में ताकत नहीं होगी, कर्म बुरे बोयेंगे तो फल क्या मिलेगा? यह जो खा रहे हो फिर रो रहे हो। जो खाते हो उसमें ही रो रहे हो, दु:ख और अशान्ति है। कुछ-न-कुछ रोग आदि खिटखिट होती ही रहती है, सब बातें मनुष्य को दु:खी करती हैं ना इसलिये बाप कहते हैं अभी तुम्हारे कर्म को मैं ऊंची क्वालिटी का बनाता हूँ, जैसे बीज भी उसी क्वालिटी का होगा तो उस क्वालिटी को बोयेंगे, तो उसका फल अच्छा निकलेगा। अगर बीज अच्छी क्वालिटी का नहीं होगा तो फिर अच्छी क्वालिटी का फल नहीं मिलेगा। तो हमारे कर्म की भी अच्छी क्वालिटी चाहिए ना। तो अभी बाप हमारे कर्म रूपी बीज को अच्छी क्वालिटी वाला बनाते हैं। तो वह श्रेष्ठ क्वालिटी का बीज अगर बोयेंगे तो श्रेष्ठ फल मिलेगा। तो अपने कर्मों का जो सीड (बीज) है, वह अच्छा बनाओ और फिर अच्छा बोना सीखो। तो यह सभी चीज़ों को समझ करके अभी अपना पुरुषार्थ करो।

अच्छा, अभी दो मिनट साइलेन्स। साइलेंस का मतलब आई एम सोल, फर्स्ट साइलेंस पीछे टॉकी में आते हैं। अब बाप कहते हैं फिर चलो साइलेंस वर्ल्ड तो साइलेंस, शान्ति अपना स्वधर्म है। उस साइलेन्स में चलने के लिये कहते हैं - इस देह का और देह सहित देह के सम्बन्धों की अभी अटैचमेन्ट छोड़ो, उससे डिटैच हो जाओ। सन ऑफ सुप्रीम सोल, अब मुझे याद करो और मेरे धाम में आ जाओ। तो अभी चलने का ध्यान रखो, अभी आने का नहीं ख्याल करो। अन्त मति सो गति। अभी कोई में भी अटैचमेन्ट नहीं। अभी तो शरीर की भी अटैचमेन्ट छोड़ दो। समझा। ऐसी अपनी धारणा बनाने की है अच्छा, अब बैठो साइलेंस में। चलते फिरते भी साइलेन्स, बोलते भी साइलेन्स। बोलते कैसे साइलेन्स होती है? मालूम है? बोलते समय हमारा बुद्धियोग अपने उसी आई एम सोल, फर्स्ट प्युअर सोल अथवा साइलेन्स सोल, यह याद रखना। बोलते समय हमारे में यह नॉलेज होना चाहिए कि आई एम सोल, इस आरगन्स से बोलते हैं। तो यह अपनी प्रैक्टिस होनी चाहिए, जैसे हम इसका आधार ले करके बोलते हैं। चलो अभी आंखों का आधार लेते हैं, देखते हैं। जिसकी जरुरत है उसका आधार ले करके काम करो। ऐसे आधार लेकर काम करेंगे तो बहुत खुशी रहेगी, फिर कोई बुरा काम भी नहीं होगा। अच्छा।

ऐसे बापदादा और माँ के मीठे-मीठे बहुत अच्छे, सदा साइलेन्स की अनुभूति करने वाले बच्चों के प्रति यादप्यार और गुडमार्निंग। अच्छा।

सन्देशी के तन द्वारा आलमाइटी पिता के उच्चारित महावाक्य (मातेश्वरी जी के प्रति)

हे शिरोमणी राधे बेटी, तुम निश दिन मेरे सम दिव्य कार्य में तत्पर हो अर्थात् वैष्णव शुद्ध स्वरूप हो, शुद्ध सेवा करती हो इसलिए साक्षात् मेरा स्वरूप हो। जो बच्चे अपने पिता के फुटस्टेप नहीं लेते उन्हों से मैं बिल्कुल दूर हूँ क्योंकि बच्चा तो फिर पिता के समान अवश्य चाहिए। यह कायदा अभी स्थापन होता है जो सतयुग त्रेता तक चलता है, वहाँ जैसा बाप वैसा बेटा। परन्तु द्वापर कलियुग में जैसा बाप वैसे बेटे नहीं होते। अभी बच्चे को बाप समान बनने का परिश्रम करना पड़ता है, मगर वहाँ तो नेचुरल ऐसा कायदा बना हुआ है जैसा बाप वैसा बेटा। जो अनादि कायदा इस संगम समय पर ईश्वर पिता प्रत्यक्ष होकर स्थापन करता है।

2) मधुर माली की मधुर मीठी दिव्य पुरुषार्थी बेटी, अब तुझे बहुत रमणीक स्वीटनेस बनना और बनाना है। अभी वर्ल्ड सावरन्टी की चाबी सेकण्ड में प्राप्त करना और कराना तुम्हारे हाथ में है। देखो, आलमाइटी जो हरेक जीव प्राणी का मालिक है वो जब प्रैक्टिकल में इस कर्मक्षेत्र पर आया है तब सारी सृष्टि हैप्पी हाउस बन जाती है। इस समय वही जीव प्राणियों का मालिक अव्यक्त रीति से सृष्टि को चला रहा है। लेकिन जब वह प्रत्यक्ष रूप में देहधारी बन मालिकपन से कर्मक्षेत्र पर आता है तब सतयुग त्रेता के समय सभी जीव प्राणी सुखी बन जाते हैं। वहाँ सच की दरबार खुली रहती है। जिसने ईश्वरीय सुख प्राप्त करने अर्थ पुरुषार्थ किया है उन्हों को वहाँ सदा के लिए सुख प्राप्त हो जाता है। इस समय सभी जीव प्राणियों को सुख का दान नहीं मिलता है, पुरुषार्थ ही प्रालब्ध को खैंचता है। जिन्हों का ईश्वर से योग है उन्हों को ईश्वर द्वारा सम्पूर्ण सुख का दान मिल जाता है।

3) ओहो! तुम वही शक्ति हो जो अपनी ईश्वरीय ताकत का रंग दिखलाए इस आसुरी दुनिया का विनाश कर दैवी दुनिया की स्थापना कर रही हो, फिर पीछे सभी शक्तियों की महिमा निकलती है। अभी वह ताकत तुम्हारे में भर रही है। तुम सदा अपने ईश्वरीय बल और रूहाब के मर्तबे में रहो तो सदा अपार खुशी रहेगी। नित्य हर्षित मुख। तुमको नशा होना चाहिए कि मैं कौन हूँ! किसका हूँ? हमारा कितना सौभाग्य है? कितना बड़ा पद है? अभी तुम पहले सेल्फ का स्वराज्य प्राप्त करते हो फिर सतयुग में युवराज बनेंगे। तो कितना नशा चाहिए! इस अपने भाग्य को देख खुशी में रहो, अपने लक को देखो उससे कितनी लॉटरी मिलती है। ओहो, कितना श्रेष्ठ तेरा लक जिस लक से वैकुण्ठ की लॉटरी मिल जाती है। समझा, लकीएस्ट दैवी फूल बच्ची।

4) इस सुहावने संगम समय पर स्वयं निराकार परमात्मा ने साकार में आकर यह ईश्वरीय फैक्ट्री खोली है, जहाँ से कोई भी मनुष्य अपना विनाशी कखपन दे अविनाशी ज्ञान रत्न ले सकता है। यह अविनाशी ज्ञान रत्नों की खरीददारी अति सूक्ष्म है, जिसको बुद्धि से खरीद करना है। यह कोई स्थूल वस्तु नहीं है जो इन नयनों से देखने में आये मगर अति महीन गुप्त छिपी हुई होने के कारण इनको कोई भी लूट नहीं सकता है। ऐसा सर्वोत्तम ज्ञान खजाना प्राप्त करने से अति निरसंकल्प, सुखदायक अवस्था रहती है। जब तक कोई ने यह अविनाशी ज्ञान रत्न खरीद नहीं किया है तब तक निश्चिंत, बेफिक्र, निरसंकल्प रह नहीं सकता इसलिए इन अविनाशी ज्ञान रत्नों की कमाई कर अपने बुद्धि रूपी सूक्ष्म तिजोरी में धारण कर नित् निश्चिंत रहना है। विनाशी धन में तो दु:ख समाया हुआ है और अविनाशी ज्ञान धन में सुख समाया हुआ है।

5) जैसे सूर्य सागर के जल को खैंचता है जो फिर ऊंचे पहाड़ों पर बरसता है, वैसे यह भी डायरेक्ट ईश्वर द्वारा वर्षा बरसती है। कहते हैं शिव की जटाओं से गंगा निकलती है। अभी इनके मुख कवंल द्वारा ज्ञान अमृतधारा बरस रही है, जिसको ही अविनाशी ईश्वरीय धारा कहा जाता है, जिससे तुम भगीरथ पुत्र पावन हो, अमर बन रहे हो। यह सिरताज बनाने की वन्डरफुल मण्डली है, यहाँ जो भी नर और नारी आयेंगे वो सिरताज बन जायेंगे। दुनिया को भी मण्डली कहा जाता है। मण्डल अर्थात् स्थान, अब यह मण्डली कहाँ टिकी हुई है? ओम् आकार में अर्थात् अहम् स्वधर्म में और सारी दुनिया स्वधर्म को भूल प्रकृति के धर्म में टिकी हुई है। तुम शक्तियाँ फिर प्रकृति को भूल अपने स्वधर्म में टिकी हुई हो।

6) इस दुनिया में सभी मनुष्य निराकार ईश्वर को याद करते हैं, जिसे अपने नयनों से देखा भी नहीं है उस निराकार में उन्हों का इतना अति प्यार रहता है जो कहते हैं हे ईश्वर अपने में मुझे लीन कर दो, परन्तु कैसा वन्डर है जो स्वयं ईश्वर जब साकार में प्रत्यक्ष हुआ है तब उनको पहचानते नहीं हैं। ईश्वर के बहुत प्यारे भक्त ऐसे कहते हैं जिधर देखता हूँ उधर तुम ही तुम हो, भल वो देखते भी नहीं हैं परन्तु बुद्धियोग से यही महसूस करते हैं कि ईश्वर सर्वत्र है। लेकिन तुम अनुभव से कहते हो कि स्वयं निराकार ईश्वर प्रैक्टिकल साकार में यहाँ आए पधारा है। अब सहज ही तुम मेरे से आकर मिल सकते हो। परन्तु कई मेरे बच्चे भी साकार में प्रभु पिता को पहचानते नहीं हैं। उन्हें निराकार अति मीठा लगता है परन्तु वह निराकार, जो अभी साकार में प्रत्यक्ष है, उसको अगर पहचान लेवें तो कितनी न प्राप्ति कर सकते हैं, क्योंकि प्राप्ति तो फिर भी साकार से होगी। बाकी जो ईश्वर को दूर निराकार समझते और देखते हैं, जिन्हों को कुछ प्राप्ति नहीं है वो ठहरे भक्त, उन्हें कोई ज्ञान नहीं। अब साकार प्रभु पिता को जानने वाले ज्ञानी बच्चे, सर्व दैवी गुणों की खुशबू से भरे हुए स्वीट फ्लाअर अपने प्रभु पिता पर अपना जीवन ही चढ़ा देते हैं, जिससे उन्हें जन्म-जन्मान्तर सम्पूर्ण देवताई दिव्य शोभनिक तन प्राप्त हो जाता है।

7) सेल्फ को जानने से ही तुम्हें राइट रांग, सत्य असत्य की परख आ गई है। इस ईश्वरीय ज्ञान से ट्रूथ जबान रहती है, जिससे किसी का संगदोष चढ़ नहीं सकता। संगदोष की छाया उसके ऊपर पड़ती है जो खुद अज्ञानवश है। इस समय ट्रूथ जमाना है ही नहीं इसलिए किसी की जबान पर भरोसा न रख उन्हों से लिखत लिखवाते हैं। मनुष्यों का बोल अनट्रूथ निकलता है, अगर ट्रूथ होता तो उसके महावाक्य पूजे जाते। जैसे देखो डिवाइन फादर के ट्रूथ महावाक्यों के शास्त्र बने हुए हैं, जिन्हों का गायन और पूजन चलता है। उनके ट्रूथ (सत्य) महावाक्यों की धारणा करने से ईश्वरीय क्वालिटी आ जाती है। न सिर्फ इतना मगर कोई तो पढ़ते-पढ़ते श्रीकृष्ण का, ब्रह्मा का साक्षात्कार भी पा लेते हैं।

ओहो, होली हृदय कमल, होली हस्त कमल, होली नयन कमल बेटी राधे, तेरी सारी काया पलट कमलफूल सम कोमल कंचन बन गयी है। परन्तु पहले जब सोल कंचन बनती है तब सारा तन कंचन प्युअर बन जाता है। जिस होली कोमल तन में ही अति कशिश भरी हुई है। तुम अपने परमेश्वर पिता द्वारा अज्ञान तपत को बुझाए ज्ञान तेज को जगाए अति शीतल रूप बन गई हो। खुद शीतल रूप बन फिर अन्य हमजिन्स को भी ऐसी सच्ची शीतलता दान देने अर्थ इस सुहावने संगम समय पर निमित्त बनी हुई हो। तुम्हारे जड़ चित्रों द्वारा भी सारी दुनिया को शीतलता और शान्ति का दान मिलता रहता है। अभी तुम सारी सृष्टि को सैल्वेशन में लाए अन्त में अपना दिव्य तेज दिखाए, न्यु वैकुण्ठ गोल्डन गुलशन में जाकर विश्राम करेंगी। अच्छा।

वरदान:-
“बाबा'' शब्द की चाबी से सर्व खजाने प्राप्त करने वाली भाग्यवान आत्मा भव

चाहे और कुछ भी ज्ञान के विस्तार को जान नहीं सकते वा सुना नहीं सकते लेकिन एक शब्द “बाबा'' दिल से माना और दिल से औरों को सुनाया तो विशेष आत्मा बन गये, दुनिया के आगे महान आत्मा के स्वरूप में गायन योग्य बन गये क्योंकि एक “बाबा'' शब्द सर्व खजानों की वा भाग्य की चाबी है। चाबी लगाने की विधि है दिल से जानना और मानना। दिल से कहो बाबा तो खजाने सदा हाज़िर हैं।

स्लोगन:-
बापदादा से स्नेह है तो स्नेह में पुराने जहान को कुर्बान कर दो।